मनरेगा : ग्रामीण परिवारों की जीवनरेखा
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने अपनी
स्थापना के बाद से अब तक एक लंबा सफर तय कर लिया है। यह लाखों लोगों के लिए
एक जीवनरेखा बन गया है।
इस अधिनियम को 7 सितंबर 2005 को अधिसूचित किया गया था ताकि
प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार प्रदान
किया जा सके, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल दस्ती काम कर सकते थे। सामाजिक
समावेश, लिंग समानता, सामाजिक सुरक्षा और न्यायसंगत विकास महात्मा गांधी
नरेगा के संस्थापक स्तंभ हैं। वर्ष 2015-16 के दौरान, 235 करोड़ दिवस पैदा
किए गए, जोकि पिछले पांच वर्षों की तुलना में सबसे ज्यादा था। वर्ष
2016-17 के दौरान 4.8 करोड़ परिवारों को 142.64 लाख कार्य-क्षेत्रों में
रोजगार दिए गए।
इस प्रक्रिया में रोजगार के 200 करोड़ दिवस पैदा किए गए। कुल
रोजगार का 56 प्रतिशत हिस्सा महिलाओं के लिए पैदा किया गया। इस कार्यक्रम
की शुरुआत के बाद से अब तक महिलाओं की यह भागीदारी सबसे ज्यादा है। इस
कार्यक्रम के लिए अब तक 3,76,546 करोड़ रुपए दिए गए हैं। वित्त वर्ष
2017-18 के लिए 48,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जोकि मनरेगा के लिए
अभी तक आवंटित राशियों में सबसे अधिक है। वर्ष 2016-17 में 51,902 करोड़
रुपए खर्च किए गए जोकि इसकी शुरुआत के बाद से अब तक का सबसे अधिक खर्च है।
औसतन हर साल (वित्त वर्ष 2013-14 तक) 25 से 30 लाख कार्य पूरे किए गए थे,
वहीं मौजूदा वित्त वर्ष 2016-17 में 51.3 लाख काम पूरे किए गए।
इस कार्यक्रम की शुरुआत के बाद पहली बार, जल संरक्षण के लिए
समेकित दिशानिर्देश तैयार किए गए। मिशन जल संरक्षण - प्रधान मंत्री कृषि
सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) और इंटीग्रेटेड वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम
(आईडब्ल्यूएमपी) के साथ मिलकर मनरेगा के तहत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन
(एनआरएम) संबंधित कार्यों के लिए योजना और निगरानी फ्रेमवर्क तैयार किया
गया है। इनके लिए वैज्ञानिक नियोजन और नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करके
जल प्रबंधन का निष्पादन ही मंत्रालय का मुख्य ध्येय है। वित्त वर्ष
2016-17 में कुल खर्च का 63 प्रतिशत हिस्सा एनआरएम (प्राकृतिक संसाधन
प्रबंधन) कार्यों पर खर्च किए गए। वित्त वर्ष 2016-17 में कृषि और संबंधित
क्षेत्रों के कार्यों पर लगभग 70 प्रतिशत खर्च किया गया, जोकि वित्त वर्ष
2013-14 में सिर्फ लगभग 48 प्रतिशत था। भू-मनरेगा तो एक पथप्रदर्शक पहल
है, जो बेहतर नियोजन, प्रभावी निगरानी, बढ़ी हुई दृश्यता और अधिक
पारदर्शिता के लिए मनरेगा के तहत बनाई गई सभी संपत्तियों को भू-टैगिंग के
लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है।
इस पहल की शुरुआत वित्त वर्ष 2016-17 में की गई। लगभग 65 लाख संपत्तियों
को भू-टैग किया गया। इसे पब्लिक डोमेन में लाया गया। निधि प्रवाह तंत्र के
बेरोकटोक चलने और मजदूरी के भुगतान में देरी को कम करने के लिए ग्रामीण
विकास मंत्रालय ने 21 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रीय
इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (एनईएफएमएस) लागू किया है। इलेक्ट्रॉनिक
फंड मैनेजमेंट सिस्टम (ईएफएमएस) के द्वारा एमजीएनआरईजीए के कर्मचारियों के
बैंक/डाकघर खातों में मजदूरी का लगभग 96 प्रतिशत हिस्सा इलेक्ट्रॉनिक रूप
से भुगतान किया जा रहा है।
वित्त वर्ष 2013-14 में मजदूरी का सिर्फ 37 प्रतिशत भुगतान इलेक्ट्रॉनिक
रूप से किया गया था। अभी 8.9 करोड़ सक्रिय मजदूरों के एनआरईजीएसोफ्ट-एमआईएस
में आधार संख्या दर्ज है, जबकि जनवरी 2014 में यह संख्या मात्र 76 लाख थी।
अब तक 4.25 करोड़ मजदूरों को आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के लिए
सक्षम किया गया है। वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान जॉब कार्ड सत्यापन और
अद्यतन प्रक्रिया शुरू की गई थी। अभियान के रूप में चलाकर 75 प्रतिशत
सक्रिय जॉब कार्डों का सत्यापन किया गया। वर्ष 2016-17 के लिए पहले जारी
किए गए 1039 परिपत्रों/परामर्शों और वार्षिक मास्टर परिपत्र (एएमसी) जारी
करके मनरेगा को सरल बनाने के लिए पहल की गई। वित्त वर्ष 2017-18 के लिए
एएमसी जारी किया जाएगा।
ग्राम पंचायत स्तर पर रजिस्टरों की संख्या में कमी करने के लिए औसतन 22
रजिस्टरों की तुलना में 7 सरल रजिस्टरों की प्रक्रिया लागू की गई है। अब
तक, 2.05 लाख ग्राम पंचायतों ने इसे अपना लिया है। यह कार्यक्रम सामाजिक
ऑडिट और आंतरिक लेखा परीक्षा की एक अधिक स्वतंत्र और सशक्त प्रणाली की दिशा
में आगे बढ़ रहा है, ताकि महिला एसएचजी से लिए गए सामाजिक लेखा परीक्षकों
के एक प्रशिक्षित सामुदायिक काडरों के द्वारा जवाबदेही के साथ-साथ विकास
भी सुनिश्चित किया जा सके। मंत्रालय ने अंतरराज्यीय आदान-प्रदान कार्यक्रम
की शुरुआत की है, जिससे विचारों और पद्धतियों को साझा किया जा सके।
2016-17 के दौरान अब तक, तमिलनाडु, राजस्थान, मेघालय, झारखंड, आंध्र प्रदेश
और छत्तीसगढ़ राज्यों ने इस पहल को लागू किया है।
पहली बार, बुनियादी स्तर पर पीएमजीएसवाई दिशानिर्देशों के आधार पर
गैर-पीएमजीएसवाई सड़कों के लिए दिशानिर्देश बनाए गए हैं। इन संपत्तियों के
भविष्य में पीएमजीएसवाई मानकों के स्तर तक की गुणवत्ता की संभावना होगी।