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बदलता भारत : जलधारा में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवायें  



        बदलता भारत अब कोई कोरी कल्पना नहीं। जी हां, देश में नित नये आयाम बन-बिगड़ रहे। कहीं जल यातायात प्रबंधन का खाका खिंच रहा है तो कहीं मेट्रो का नेटवर्क तैयार करने की कोशिशें आयाम लेती दिख रहीं। जर्मन हो या सिंगापुर या फिर थाईलैण्ड नदियों व जलाशयों में सैर-सपाटा से लेकर जल यातायात की खूबियां खास तौर से दिख जाती हैं।

        मौज-मस्ती व सैर-सपाटा के साथ जब जीवन की आवश्यकताओं की भी पूर्ति होने लगे तो सामाजिक सरोकार व विकास की गंगधारा दिखने लगती है। भारत में नदियों की लम्बी श्रंखलाएं हैं। देश में गंगा, यमुना व कावेरी सहित सैकड़ों बड़ी नदियों की श्रंखला देश में है तो वहीं वरुणा, असि, पाण्डु सहित हजारों छोटी नदियों की लम्बी श्रंखला का संजाल देश में फैला हुआ है। जर्मन हो या दुबई या फिर सिंगापुर जलधारा में तैरते आलीशान हाउस वोट मिल जायेंगे तो वहीं नौकायन का लुफ्त उठाने के लिए सुविधा सम्पन्न नौकाओं का संजाल भी मिलेगा।

            दुनिया की तरह अब देश में जल संसाधनों का अपेक्षित उपयोग करने की कोशिशें सार्थक आयाम लेते दिख रही हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि शीघ्र ही नदियों में चलते फिरते विद्यालय दिखें आैर फ्लोटिंग हास्पिटल भी मिलें। विशेषज्ञों की फौज जल प्रबंधन-जल संसाधनों का अपेक्षित उपयोग करने आैर उसमें उपयोग में आने वाले संसाधनों का विकास करने की नीति-रीति व रणनीति पर शोध से लेकर योजनायें आकार ले रही हैं। दक्षिण भारत के बाद अब उत्तर भारत में वाटर टैक्सी चलाने की कोशिशें हो रही हैं। विशेषज्ञों की कोशिश है कि काशी-बनारस की गंगधारा में वाटर टैक्सी चलें। समुद्रा संकट मोचन ने भारत सरकार के सामने इसका प्रस्ताव रखा है।

             इस प्रस्ताव में वाटर टैक्सी नेटवर्क बनाने की वकालत की गयी है। समुद्रा संकट मोचन ने फ्लोटिंग स्कूल व फ्लोटिंग हास्पिटल का डिजाइन भी तैयार किया है। संकट मोचन फाउण्डेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर विश्वम्भर नाथ मिश्र व समुद्रा शिपयार्ड के सीईओ डा. एस. जीवन की मानें तो फ्लोटिंग स्कूल व फ्लोटिंग हास्पिटल का कांसेप्ट देश में पहली बार लाया गया है। इस कांसेप्ट को भारत सरकार के विलेज हेल्थ मिशन ने अपनी सैद्धांतिक सहमति भी दे दी है। समुद्रा शिपयार्ड के सीईओ डा. एस जीवन का कथन है गंगा नदी के किनारे बसे इलाकों में शिक्षा व स्वास्थ्य सहूलियतों की दिक्कतें रहती हैं। समुद्रा शिपयार्ड ने फ्लोटिंग स्कूल व फ्लोटिंग हास्पिटल डिजाइन किया है।

          भारत सरकार जल परिवहन को प्रोत्साहित कर रही है। यह प्रस्ताव भारत सरकार के सामने रखा है। फ्लोटिंग स्कूल की लागत 1.22 करोड़ से 1.25 करोड़ आयेगी तो वहीं फ्लोटिंग हास्पिटल की लागत दो करोड़ के आसपास होगी। इस व्यवस्था से गंगा नदी से जुड़े ग्रामीण इलाकों के बाशिंदे व बच्चों को लाभ मिलेगा। फ्लोटिंग स्कूल में चार कक्ष होंगे तो वहीं फ्लोटिंग हास्पिटल में चिकित्सा संबंधी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होगी। हास्पिटल में सात से दस कक्ष होंगे तो वहीं 15 बेड़ होंगे। इलाहाबाद से लेकर हल्दिया तक एक बेहतर जल मार्ग भी दिखता है। जिससे इस इलााके में चाहे फ्लोटिंग स्कूल हो या फिर फ्लोटिंग हास्पिटल, सभी आवश्यक स्फूर्त चलेंगे। समुद्रा शिपयार्ड के सीईओ डा. एस जीवन ने बताया कि वाटर टैक्सी की लागत 65 से 70 लाख आयेगी जबकि हाउस बोट बनाने में 1.12 करोड़ धनराशि का खर्च आयेगी। इलाहाबाद से काशी-बनारस व आसपास के इलाकों में वाटर टैक्सी का संंचालन आसानी से किया जा सकता है। अब जल क्रीडा की बात करें या मौज मस्ती की बात करें तो मौसम कोई भी हो, जल क्रीड़ा-जल यातायात के मजे ही कुछ आैर होते हैं।

                जर्मन को जानना हो या सिंगापुर-थाईलैण्ड में सैरसपाटा करना हो तो जल यातायात का आनन्द लें। जर्मन में राइन सहित करीब आधा दर्जन नदियों की शानदार जल श्रंखला है। यह नदियां जल यातायात की एक बेहतरीन श्रंखला व कड़ी हैं। अधिसंख्य बाशिंदे जल यातायात का उपयोग करते हैं तो वहीं जलक्रीडा का आनन्द भी लेते हैं। करीब सात हजार किलोमीटर लम्बी नदियों की इस श्रंखला से सम्पूर्ण जर्मन के खास-खास इलाकों के दर्शन किये जा सकते हैं। इसी तरह से सिंगापुर में वॉटर पार्कों की बहुतायत है। सिंगापुर में जलधाराओं को मनोरंजन के साथ साथ यातायात के रूप में भी उपयोग किया जाता है। देश में भी जल यातायात के नये आयाम की खोज-बीन हो रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि देश में जल पार्कों, जल यातायात व नदियों की कहीं कोई कमी है। वैसे देखें तो जर्मन की तुलना में देश में कहीं अधिक लम्बे जल यातायात की व्यवस्थायें दिखती हैं।

              जल यातायात में घूमने-फिरने का भी आनन्द है आैर सफर भी आसान रहता है क्योंकि जल यातायात में कहीं कोई ट्रैफिक जाम का संकट नहीं होता। इसके साथ ही जल परिवहन व्यवस्था पर्यावरण के काफी कुछ अनुुकूल भी होती है। विशेषज्ञों की मानें तो देश में चौदह हजार पांच सौ किलोमीटर लम्बी जल परिवहन की व्यवस्थायें हैं। जल परिवहन की यह व्यवस्थायें खास तौर यात्रियों के आवागमन के साथ साथ माल ढ़ोने का काम भी जल क्षेत्र से होता है। जल परिवहन की व्यवस्थाओं वाले क्षेत्रों में खास तौर से असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, मुम्बई, गोवा व केरल आदि इलाके खास तौर से माने जाते हैं। दक्षिण भारत  में केरल सहित कई इलाकों में नौकायन के मजे लिये जा सकते हैं। इन इलाकों में नौकाओं की दौड़-प्रतियोगिताओं के आयोजन भी अक्सर होते रहते हैं। देश की बड़ी नदियों में सुमार होने वाली ब्राह्मपुत्र में भी सादिया से घाबरी तक करीब नौ सौ किलोमीटर लम्बी जल परिवहन व्यवस्था है। इसी तरह से दक्षिण भारत में कोल्लम से कोट्टापुरम तक करीब दो सौ पांच किलोमीटर लम्बा जल परिवहन क्षेत्र है। भारत सरकार जल परिवहन व्यवस्थाओं को एक नया आयाम देने पर विमर्श-मंथन कर रही है। जिससे जल परिवहन व्यवस्थाओं को विस्तार दिया जा सके।

            उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से हल्दिया तक गंगा नदी में करीब 1620 किलोमीटर लम्बा जल परिवहन मार्ग विकसित होने की संभावना है। इससे एक बार फिर गंगा की गोद में जल तरंगों का भरपूर आनन्द ले सकेंगे। विशेषज्ञों की मानें तो जल परिवहन मार्ग बनाने में करीब बीस हजार करोड़ से अधिक धनराशि खर्च की जायेगी। हालांकि ऐसा नहीं है कि गंगा नदी में कोई पहली बार जल परिवहन की व्यवस्था को आयाम देने की कोशिश की जा रही है क्योंकि ब्रिाटानिया हुकूमत में एशिया की आैद्योगिक राजधानी कानपुर से पश्चिम बंगाल तक जल परिवहन की व्यवस्थायें चलती थीं। चूंकि कानपुर में कपड़ा मिलें बहुतायत में थीं। गंगा नदी के जल मार्ग से कानपुर से कपड़ा कलकत्ता भेजा जाता था। काशी-बनारस में तो सैकड़ों नाव-स्टीमर्स का काफिला गंगा की गोद में अनवरत जल तरंगों के साथ अठखेलियां करता रहता है। देश-दुनिया के लाखों पर्यटक गंगा में नौकायन का आनन्द-लुफ्त उठाने सालों-साल से आते रहते हैं। नोएड़ा हो या लखनऊ, देश के सभी बड़े शहरों में वॉटर पार्कों में जलक्रीड़ा का आनन्द लिया जा सकता है। 01.01.2017
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पाण्डु नदी को अस्तित्व का खतरा 



          नदियों का सौन्दर्य, नदियों की आगोश, आबो-हवा.... मंद-मंद प्रवाहित शीतलता शनै-शनै लुप्त हो गयी। नदियों की शीतलता मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित कर देती थी लेकिन अब यह सब बीते कल की बातें हो गयीं क्योंकि अब तो नदियां खुद अपने अस्तित्व के लिए ही संघर्ष करने लगीं।

राष्ट्रीय नदी गंगा की सहोदरी 'पाण्डु नदी" को ही लें तो उसका अस्तित्व खतरे में दिख रहा है क्योंकि अब नदी का मार्ग तो दिखता है लेकिन नदी में जल का 'प्रवाह" नहीं रहा। राष्ट्रीय नदी गंगा की सहोदरी 'पाण्डु नदी" उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से प्रारम्भ होकर करीब एक सौ बीस किलोमीटर लम्बी यात्रा कर फतेहपुर में गंगा में विलीन हो जाती है। पाण्डु नदी का उद्गम भी गंगा की गोद से होता है आैर विलय भी गंगा की आगोश में होता है। दशकों से पाण्डु नदी का जल खेती-बारी को फलित-पुष्पित करता चला आ रहा था लेकिन उत्तर प्रदेश के ही कानपुर के आैद्योगिक क्षेत्र व बदइंतजामी ने पाण्डु नदी को कलुषित कर डाला क्योंकि कानपुर के पनकी, दादा नगर सहित कई आैद्योगिक क्षेत्रों की छह हजार से अधिक छोटे, बड़े व मंझोले श्रेणी के उद्योग, कल-कारखानों ने आैद्योगिक कचरा प्रवाहित कर नदी के जल को मैला-विषैला कर डाला। मेहरबान सिंह का पुरवा हो या कुंदौली या फिर बिनगंवा हो, इन सहित पचास से अधिक गांव-गिरांव की आबादी कभी पाण्डु नदी के जल से खेती-बारी को सिंचित-अभिसिंचित करती थी। पाण्डु नदी को कलुषित-दूषित-प्रदूषित करने में शासकीय व्यवस्थायें भी पीछे नहीं रहीं क्योंकि पनकी थर्मल पॉवर प्लांट की फ्लाई ऐश का एक बड़ा हिस्सा पाण्डु नदी की आगोश में हर दिन दफन किया जाता रहा। आप केवल परिकल्पना करें कि पॉवर प्लांट की गर्म फ्लाई ऐश पाण्डु नदी में फेंकी जाती होगी तो नदी के जल जन्तुओं का क्या हाल होता होगा....? क्योंकि गर्म फ्लाई ऐश से नदी का जल उबलने लगता है।

ऐसे में जल जन्तुओं की मौत होना स्वाभाविक व लाजिमी है। पॉवर प्लांट से हर दिन आैसत चालीस टन फ्लाई ऐश नदी की आगोश में फेंकी जाती रही। इतना ही नहीं शहरी आबादी की गंदगी भी सीओडी नाला के जरिये सीधे पाण्डु नदी में गिरती है। मल-मूत्र व घरेलू गंदगी हर दिन आैसत बीस करोड़ लीटर नदी के जल को 'ब्लैक वॉटर" में तब्दील कर देता है। ऐसा नहीं है कि पाण्डु नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए कोई पहल नहीं की गयी लेकिन पहल कोई सार्थक परिणाम नहीं दे सकी। रमन मैगसेसे एवार्ड से अलंकृत जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने नदी को बचाने के लिए हरकोर्ट बटलर टेक्नीकल इंस्टीट्यूट (एचबीटीआई) के छात्रों को जागरुक भी किया लेकिन पाण्डु नदी बच न सकी। पाण्डु नदी को बचाने के लिए शासकीय प्रयास के साथ साथ आबादी को भी जागरुक होना चाहिए कि हम न तो नदी को गंदा करेंगे आैर न किसी को नदी गंदी करने देंगे क्योंकि भले ही विकास के अनेक आयाम विकसित हो गये हों लेकिन पाण्डु नदी लाखों गरीबों-गांव-गिरांव के बाशिंदों व गवंईयों की लाइफ लाइन आज भी है। नदी के जल से आसपास के खेतों की सिचाई होती है तो वहीं पशुओं को पीने का पानी भी नदी में उपलब्ध होता है। एक सार्थक कोशिश की आवश्यकता है जिससे पाण्डु नदी का अस्तित्व बच सके।
प्रकाशन तिथि 16.12.2016


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निर्मलता-अविरलता के लिए
गंगा मांगे 'भागीरथ" 
                            संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता.... बस मन में दृढ़इच्छाशक्ति हो.... विपरीत परिस्थितियों में कुछ कर गुजरने की लालसा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। मातश्री गंगा को धरती पर लाने के लिये भागीरथ का संकल्प था। तप बल से भागीरथ मातश्री गंगा को धरती पर लाने में सफल रहे। अफसोस मातश्री गंगा की निर्मलता-अविरलता को अब हम सब बरकरार न रख सके क्योंकि व्यवस्था गंगधारा को कलुषित-दूषित करती रही।

गोमुख से गंगासागर तक करीब 2525 किलोमीटर लम्बी गंगधारा में नित्य अरबों लीटर सीवरेज व अन्य गंदगी गिर रही है। राजनीतिक लंबरदार हों या संत समाज हो या फिर गंगा के हित चिंतक.... आंदोलन से लेकर बात तो गंगा निर्मलीकरण-अविरलता की करेंगे किन्तु हमारे सार्थक प्रयास क्या होने चाहिए जिससे गंगा जल अपना निर्मल स्वरूप हासिल कर सके.... इस पर चिंतन-मनन-विमर्श कम ही दिखता है। 'हम सुधरेंगे-जग सुधरेगा" का दर्शन शास्त्र कहीं नहीं दिखता। गंगा जल की निर्मलता के लिए खुद हमें भी तो कुछ-कतिपय साध्य-साधन करने चाहिए। जी हां, गंगा निर्मलीकरण के लिए केवल शासन-सत्ता के भरोसे नहीं रहा जा सकता।

इसके सार्थक उपाय समाज को भी खोजने चाहिये। 'बूंद-बूंद से सागर भरने..." की कहावत चरितार्थ हो सकती है बशर्ते कुछ सार्थक उपाय चिंतन-मनन-विमर्श में आयें। कुछ इसी तरह का संकल्प काशी में लिया गया। 'भागीरथी सेवार्चन" ने संकल्प लिया कि गंगा को निर्मल भी बनायेंगे आैर गंगा जल को श्रद्धालुओं तक पहंुचायेंगे भी। खास तौर से देश के दूरदराज के इलाकों के श्रद्धालुओं-बाशिंदों तक गंगा जल पहंुचायेंगे, जिनकी पहंुच से दूर है गंगा-जल। 'भागीरथी सेवार्चन" ने गंगा-जल को पैकिंग कर देश के बाशिंदों-श्रद्धालुओं तक निशुल्क पहंुचाने की व्यवस्था की है।

 देश के किसी भी कोने के बाशिंदे-श्रद्धालु 'भागीरथी सेवार्चन" की वेबसाइट 'डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू भागीरथी सेवार्चन डॉट ओआरजी" का उपयोग कर गंगा जल निशुल्क हासिल कर सकते हैं। संस्था की मानें तो अब तक आठ हजार से अधिक श्रद्धालुओं-बाशिंदों को गंगा जल निशुल्क भेजा जा चुका है। श्रद्धालुओं-बाशिंदों को सिर्फ कोरियर या डाक खर्च का भुगतान गंगा जल प्राप्त होने पर करना होगा। संस्था की मानें तो अब तक मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक व उडीसा सहित देश के विभिन्न इलाकों में निर्मल गंगा जल पैक कर भेजा जा चुका है।

गंगा जल का निर्मलीकरण भी बिना मशीनीकरण से किया जाता है। 'भागीरथी सेवार्चन" ने गंगा को प्रदूषण से बचाने का भी संकल्प लिया है। पूजा-अर्चना में गंगा में बड़ी तादाद में फूल-मालाओं-पत्तियों का विसर्जन होता है। संस्था इस फूल-माला-पत्तियों को गंगा जल से संग्रहित कर जैविक खाद बनायेगी। इस जैविक खाद को किसानों को लागत मूल्य पर उपलब्ध कराया जायेगा। इससे गंगा जल में फूल-मालायें व पत्तियां नहीं सड़ेंगे आैर गंगा जल में प्रदूषण नहीं होगा भले ही यह प्रदूषण आशिंक हो लेकिन यह सार्थक कोशिश कहीं न कहीं अपना रचनात्मक प्रभाव डालेगी। सभ्य समाज को गंगा का अमृत्व जल निर्मल बनाने के लिए खुद को संकल्पि करना होगा कि कम से कम हम गंगा में कचरा व गंदगी फेंक कर गंदा नहीं करेंगे। कोई बड़ी बात नहीं कि यह संकल्प एक बड़े अभियान की शक्ल ले ले जिससे गंगा का अमृत जल निर्मल हो जाये। सोचना तो यही चाहिये कि हम सुधरेंगे-जग सुधरेगा।
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जल यात्रा :
सफर के साथ आनन्द भी

  
    मौसम कोई भी हो, जल क्रीड़ा-जल यातायात के मजे ही कुछ आैर होते हैं। जर्मन को जानना हो या सिंगापुर में सैरसपाटा करना हो तो जल यातायात का आनन्द लें। जर्मन में राइन सहित करीब आधा दर्जन नदियों की शानदार जल श्रंखला है। यह नदियां यातायात की एक बेहतरीन कड़ी हैं। करीब सात हजार किलोमीटर लम्बी नदियों की इस श्रंखला से जर्मन के दर्शन किये जा सकते हैं। इसी तरह से सिंगापुर में वॉटर पार्कों की बहुतायत है। सिंगापुर में जलधाराओं को मनोरंजन के साथ साथ यातायात के रूप में भी उपयोग किया जाता है। देश में भी जल यातायात के नये आयाम की खोज-बीन हो रही है। हालांकि ऐसा नहीं है कि देश में जल पार्कों, जल यातायात व नदियों की कहीं कोई कमी है। वैसे देखें तो जर्मन की तुलना में देश में कहीं अधिक लम्बे जल यातायात की व्यवस्थायें दिखती हैं। जल यातायात में घूमने-फिरने का भी आनन्द है आैर सफर भी आसान रहता है क्योंकि जल यातायात में कहीं कोई ट्रैफिक जाम का संकट नहीं होता। 

इसके साथ ही जल परिवहन व्यवस्था पर्यावरण के काफी कुछ अनुुकूल भी होती है। विशेषज्ञों की मानें तो देश में चौदह हजार पांच सौ किलोमीटर लम्बी जल परिवहन की व्यवस्थायें हैं। जल परिवहन की यह व्यवस्थायें खास तौर यात्रियों के आवागमन के साथ साथ माल ढ़ोने का काम भी जल क्षेत्र से होता है। जल परिवहन की व्यवस्थाओं वाले क्षेत्रों में असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, मुम्बई, गोवा व केरल आदि इलाके खास तौर से माने जाते हैं। दक्षिण भारत  में केरल सहित कई इलाकों में नौकायन के मजे लिये जा सकते हैं। इन इलाकों में नौकाओं की दौड़-प्रतियोगिताओं के आयोजन भी अक्सर बड़ी तादाद में होते रहते हैं। देश की बड़ी नदियों में ब्राह्मपुत्र में भी सादिया से घाबरी तक करीब नौ सौ किलोमीटर लम्बे जल यातायात की व्यवस्था है। दक्षिण भारत में कोल्लम से कोट्टापुरम तक दो सौ पांच किलोमीटर लम्बा जल यातायात क्षेत्र है। भारत सरकार जल यातायात व्यवस्थाओं को एक नया आयाम देने पर विमर्श-मंथन कर रही है। जिससे जल परिवहन व्यवस्थाओं को विस्तार दिया जा सके। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से हल्दिया तक गंगा नदी में करीब 1620 किलोमीटर लम्बा जल यातायात व्यवस्था बनाने की कोशिश की जा रही हैै। इससे एक बार फिर गंगा की गोद में जल तरंगों का भरपूर आनन्द ले सकेंगे। 

विशेषज्ञों की मानें तो जल यातायात मार्ग बनाने में बीस हजार करोड़ से अधिक धनराशि खर्च की जायेगी। हालांकि ऐसा नहीं है कि गंगा नदी में कोई पहली बार जल यातायात की व्यवस्था को आयाम देने की कोशिश की जा रही है क्योंकि ब्रिाटानिया हुकूमत में एशिया की आैद्योगिक राजधानी कानपुर से पश्चिम बंगाल तक जल परिवहन की व्यवस्थायें चलती थीं। चूंकि कानपुर में कपड़ा मिलें बहुतायत में थीं। गंगा नदी के जल मार्ग से कानपुर से कपड़ा कलकत्ता भेजा जाता था। काशी-बनारस में तो सैकड़ों नाव-स्टीमर्स का काफिला गंगा की गोद में अनवरत जल तरंगों के साथ अठखेलियां करता रहता है। देश-दुनिया के लाखों पर्यटक गंगा में नौकायन का आनन्द-लुफ्त उठाने सालों-साल से आते रहते हैं। नोएड़ा हो या लखनऊ, देश के सभी बड़े शहरों में वॉटर पार्कों में जलक्रीड़ा का आनन्द लिया जा सकता है।                                                                             प्रकाशन तिथि 20.11.2016






गंगा की निर्मलता एवं अविरलता : 
चाहिए एक अंजुरी इच्छाशक्ति
राजनीतिज्ञ लें संकल्प, 
साफ करेंगे 'मोक्षदायिनी"      

                                   
'हिमालय" को न बचा सके तो शायद काफी कुछ खो देंगे....?  जी हां, पर्यावरण प्रेमियों व गंगा सेवकों की कसक तो यही बयां कर रही है क्योंकि हिमालय क्षेत्र व गंगधारा कंक्रीट की चपेट में दिख रही है। सुरम्य जल घाटियों वाले हिमालय क्षेत्र में विद्युत उत्पादन के लिए एक नहीं बल्कि असंख्य परियोजनाएं आकार लेते दिख रही हैं। जिससे उत्तराखण्ड का एक बड़ा इलाका विकास एवं विनाश की द्वंद में फंसा दिखायी दे रहा है। गंगा व उसकी सहयोगी नदियों मसलन मंदाकिनी, अलकनन्दा, यमुना, टौंस, पिंडर, काली, धौली, गौरी, रामगंगा व शारदा सहित अन्य छोटी-बड़ी नदियों पर 70 से अधिक बांध परियोजनाएं बलवती होते दिख रही हैं तो वहीं विद्युत परियोजनाओं के लिए पांच सौ से अधिक स्थल चिह्नित किये जा चुके हैं।

अब ऐसे में देखा जाये तो गंगा-यमुना सहित अन्य नदियों का अस्तित्व ही खतरों में होगा। गंगा-यमुना कंक्रीट की सुरंगों में कैद होंगी.... ? शायद यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी क्योंकि इतनी लम्बी श्रंखला में बांधों का बनना निश्चित रूप से नैसर्गिक सौन्दर्य को तो नष्ट करेगा ही प्राकृतिक संसाधनों कोे भी खत्म कर देगा। कंक्रीट का जंगल बढ़ेगा तो निश्चित मानिए कि पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पेड़-पौधे कटेंगे तो पर्यावरण का एक गम्भीर संकट खड़ा होगा। कल्पना करें कि पेड़-पौधे खत्म हो जायेंगे तो परिवेश कैसा होगा....? नदियां कंक्रीट की सुरंग में कैद होंगी तो आक्सीजन का प्रवाह न्यूनतम हो जायेगा। यह स्थिति न तो बाशिंदों के लिए सुखकर होगी न जलीय जीवों के हित में होगी।

हिमालय संरक्षण, गंगधारा की अस्तित्व रक्षा व पर्यावरण का हनन न होने देने के लिए पर्यावरण  मर्मज्ञ सुन्दर लाल बहुगुणा के संघर्ष को देश के बाशिंदे अभी भूले नहीं होंगे। गंगा रक्षा में स्वामी निगमानन्द के प्राण चले गये। गंगा सेवा अभियानम के गंगा रक्षा आंदोलन में प्रोफेसर जी. डी. अग्रवाल (स्वामी सानन्द), साध्वी पूर्णाम्बा, साध्वी शारदाम्बा, ब्राह्मचारी कृष्णप्रियानन्द सहित दर्जनों साधु-संतों ने लम्बे समय तक अनशन,उपवास एवं तप किया लेकिन आंदोलन के कोई सार्थक परिणाम नहीं दिखे जिससे गंगा की अविरलता एवं निर्मलता गोमुख से गंगासागर तक दिखती। हालांकि गंगा रक्षा का यह आंदोलन न तो खत्म हुआ आैर न शांत हुआ। हां, इतना अवश्य हुआ कि आंदोलन का स्वरूप अब कानूनी शिंकजा कसने की कोशिश करता दिख रहा है।

 गंगा सेवा अभियानम ने संकल्प लिया है कि व्यवस्था से जुड़े विभागों के खिलाफ एक हजार एक तहरीर देकर एफआईआर दर्ज करायेंगे। इसकी शुरूआत भी हुई। काशी के विभिन्न थानों में तहरीर दी गयीं। गंगा सेवक राम शंकर सिंह फोटोग्राफ्स के जरिए 'गंगा का दर्द " दो दशक से निरंतर बयां करते चले आ रहे कि गंगा कैसे मलिन व कलुषित होती जा रही है। इसकी रक्षा करो....। अब शायद यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि कहीं न कहीं गंगा रक्षा के लिए राजनीतिक क्षेत्र में चेतना आयी है क्योंकि कई राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं ने हस्ताक्षर कर देश के तत्कालीन (पूर्व) प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के सामने गंगा की व्यथा-कथा रखी भी।

गंगा रक्षा के लिए आंदोलित गंगा सेवकों का मानना है कि टिहरी बांध को तोड़े बिना गंगा-यमुना व अन्य नदियों के अस्तित्व को नहीं बचाया जा सकता। भारत सरकार ने गंगा की मलिनता को खत्म करने का संकल्प लिया। गंगा पुर्नरुद्धार एवं जल संसाधन मंत्रालय ने योजनायें भी बनायीं लेकिन अभी तक कहीं कोई सार्थक परिणाम नहीं दिखे। गौरतलब है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना गंगा की निर्मलता एवं अविरलता लौटाना काफी कुछ मुश्किल नहीं बल्कि असंभव सा दिखता है। सामाजिक सोच में बदलाव भी गंगा की निर्मलता में अपना योगदान दे सकता है। कुल मिला कर एक समग्र प्रयास होना चाहिए जिससे गंगा की निर्मलता एवं अविरलता लौट सके।
                                                                                                          प्रकाशन तिथि 28.11.2016 




























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