आस्था, श्रद्धा व विश्वास हो तो निश्चय ही मनोकामनायें पूर्ण होंगी। आस्था, श्रद्धा व विश्वास के कारण ही मां काली के दरबार में नित्य भारी संख्या में श्रद्धालुओं-भक्तों की भीड़ उमड़ती है। जी हां, उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के ह्मदय स्थल शिवाला बंगाली मोहाल में मां काली का दिव्य-भव्य प्राचीन मंदिर है। बंगाली मोहाल का मां काली का यह विशाल मंदिर पांच सौ वर्ष से भी अधिक पुराना है। शहर की घनी आबादी वाले इलाके बंगाली मोहाल स्थित इस मंदिर में मां काली अपने पूर्ण स्वरुप में प्रतिष्ठापित हैं। नवरात्र में मां काली का विशाल नवरात्र उत्सव का आयोजन होता है। मां काली के इस दिव्य-भव्य स्थान पर मनौती मानने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु, भक्त व जरुरतमंद आते हैं। मां काली के दर्शन-पूजन-अर्चन के साथ ही मान्यता व परम्परा है कि मनौती के लिए ताला (लॉक) लगायें। मान्यता है कि मंदिर में ताला लगाने-बंद करने से श्रद्धालुओं-भक्तों की मनौती निश्चय ही पूर्ण होती है। मनौती पूर्ण होने पर श्रद्धालुओं को ताला खोलने के लिए मंदिर आना पड़ता है। मां काली के इस विशाल मंदिर में चौतरफा छोटे-बड़े बंद ताले लगे-लटकते दिख जायेंगे।
खास बात यह है कि मंदिर परिसर में कहीं भी कोई ताला लगायें। ताला लगाने के बाद एक चाभी मंदिर में ही छोड़ दी जाती है जबकि एक अन्य चाभी को भक्त-श्रद्धालु अपने साथ ले जाते हैं। मनौती पूर्ण होने के बाद जब भक्त-श्रद्धालु आते हैं तो अपने साथ की चाभी से ताला खोलते हैं तो कोई न कोई ताला खुल जाता है। ताला खुलवाने के लिए मंदिर में मां काली का विधिवत पूजन-अर्चन होता है। इसके बाद ताला खोला जाता है। बताते हैं कि ताला के रुप में श्रद्धालु-भक्त की इच्छा या मनौती उस स्थान पर बंद हो जाती है। इस इच्छा या मनौती को मां काली अवश्य पूर्ण करती हैं। यह ताले श्रद्धालुओं ने अपनी मनौती के लिए लगाये हैं। बताते हैं कि वर्षों से यह मान्यता-परम्परा अनवरत चली आ रही है। मनौती के ताला लाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मंदिर परिसर के बाहर पूजन-अर्चन की सामग्री बेचने वाले दुकानदारों के पास ताला उपलब्ध हो जाता है। बताते हैं कि बंगाली मोहाल के इस मंदिर की स्थापना एक बंगाली परिवार ने की थी लेकिन अब इस मंदिर की देखरेख-देखभाल द्विवेदी परिवार करता है।
बंगाली मोहाल में आज भी बड़ी संख्या में बंगाली परिवार रहते हैं। मां काली जी का नित्य निर्धारित परम्परा के अनुसार पूजन-अर्चन किया जाता है। परिधान पहनाने से लेकर श्रंगार तक सभी आवश्यक पूजन व्यवस्थायें व आरती सभी कुछ समय से सुनिश्चित किया जाता है। बंगाली संस्कृति व परम्पराओं का पालन किया जाता है। नवरात्र में सप्तमी, अष्टमी व नवमी को मां काली जी का विशेष पूजन अर्चन होता है। दीपावली पर काली जी की महापूजा आयोजित होती है। बंगाली परिवारों के अलावा अन्य हिन्दू परिवार मां काली के इस दिव्य-भव्य स्थल पर बच्चों के मुण्डन संस्कार एवं कर्ण छेदन संस्कार सहित अन्य संस्कार भी कराते हैं। विशेष उत्सव पर मां काली के दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं-भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। 17.11.2016
खास बात यह है कि मंदिर परिसर में कहीं भी कोई ताला लगायें। ताला लगाने के बाद एक चाभी मंदिर में ही छोड़ दी जाती है जबकि एक अन्य चाभी को भक्त-श्रद्धालु अपने साथ ले जाते हैं। मनौती पूर्ण होने के बाद जब भक्त-श्रद्धालु आते हैं तो अपने साथ की चाभी से ताला खोलते हैं तो कोई न कोई ताला खुल जाता है। ताला खुलवाने के लिए मंदिर में मां काली का विधिवत पूजन-अर्चन होता है। इसके बाद ताला खोला जाता है। बताते हैं कि ताला के रुप में श्रद्धालु-भक्त की इच्छा या मनौती उस स्थान पर बंद हो जाती है। इस इच्छा या मनौती को मां काली अवश्य पूर्ण करती हैं। यह ताले श्रद्धालुओं ने अपनी मनौती के लिए लगाये हैं। बताते हैं कि वर्षों से यह मान्यता-परम्परा अनवरत चली आ रही है। मनौती के ताला लाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मंदिर परिसर के बाहर पूजन-अर्चन की सामग्री बेचने वाले दुकानदारों के पास ताला उपलब्ध हो जाता है। बताते हैं कि बंगाली मोहाल के इस मंदिर की स्थापना एक बंगाली परिवार ने की थी लेकिन अब इस मंदिर की देखरेख-देखभाल द्विवेदी परिवार करता है।
बंगाली मोहाल में आज भी बड़ी संख्या में बंगाली परिवार रहते हैं। मां काली जी का नित्य निर्धारित परम्परा के अनुसार पूजन-अर्चन किया जाता है। परिधान पहनाने से लेकर श्रंगार तक सभी आवश्यक पूजन व्यवस्थायें व आरती सभी कुछ समय से सुनिश्चित किया जाता है। बंगाली संस्कृति व परम्पराओं का पालन किया जाता है। नवरात्र में सप्तमी, अष्टमी व नवमी को मां काली जी का विशेष पूजन अर्चन होता है। दीपावली पर काली जी की महापूजा आयोजित होती है। बंगाली परिवारों के अलावा अन्य हिन्दू परिवार मां काली के इस दिव्य-भव्य स्थल पर बच्चों के मुण्डन संस्कार एवं कर्ण छेदन संस्कार सहित अन्य संस्कार भी कराते हैं। विशेष उत्सव पर मां काली के दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं-भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। 17.11.2016
सौन्दर्य की अनुपम छटा : राधा कृष्ण मंदिर
धवल श्वेत सौन्दर्य.... संगमरमर का सौन्दर्य.... जलक्रीडा की अठखेलियां.... रोशनी की इन्द्रधनुषी अदाओं से लबरेज परिवेश.... जी हां, लालित्य, सौन्दर्य एवं माधुर्य मन-मस्तिष्क को आकर्षित करे। ह्मदय आनन्द से प्रफुल्लित हो जाए। कानपुर का राधा कृष्ण मंदिर लालित्य-सौन्दर्य एवं माधुर्य का अद्भुत संगमन। जी हां, राधा कृष्ण मंदिर में सौन्दर्य के अद्भुत दिग्दर्शन होंगे तो वहीं उसका लालित्य मन को लुभायेगा। कर्णप्रिय संगीत की स्वरलहरियां मन-मस्तिष्क को पुलकित कर देंगी। राधा कृष्ण मंदिर को जे के मंदिर के रुप में जाना-पहचाना जाता है। उत्तर प्रदेश के गौरव के तौर पर अपना खास स्थान रखने वाले इस दिव्य-भव्य मंदिर में जहां एक ओर वास्तुकला की प्राचीनतम शैली दिखती है तो वहीं आधुनिक कला भी अपने अलग ही रंग जमाते दिखती है।
कभी एशिया के मैनचेस्टर के तौर पर ख्याति रखने वाले कानपुर स्थित इस राधा कृष्ण मंदिर की एक झलक पाने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में आस्थावान श्रद्धालुओं के अलावा पर्यटक भी भारी तादाद में आते हैं। राधा कृष्ण मंदिर में मुख्यत: आराध्य राधा कृष्ण के दर्शन होते हैं तो वहीं प्रभु लक्ष्मी नारायण, प्रभु अर्धनारीश्वर, प्रभु नरमदेश्वर व भगवान हनुमान के दर्शन होते हैं। प्राचीन एवं आधुनिक वास्तुकला के इस अनूठे व विलक्षण मिश्रण को देखते ही बनता है। मंदिर का आकार-प्रकार ऐसा है कि पर्याप्त हवा व पर्याप्त रोशनी की उपलब्धता रहती है। वेंटीलेशन को ध्यान में रख कर मंदिर की छत की ऊंचाई अपेक्षाकृत कहीं अधिक है जिससे श्रद्धालु एवं पर्यटक भारी भीड़ होने के बावजूद असहज महसूस नहीं करते। वास्तु एवं प्राचीन स्थापत्य कला का यह विशिष्ट एवं अनूठा मिश्रण है। देश के आैद्योगिक घराना जे के समूह के जे के ट्रस्ट ने इस दिव्य एवं भव्य मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर की सभी व्यवस्थाओं व रखरखाव का खर्च न्यास से ही किया जाता है। सिंघानिया परिवार इस न्यास के माध्यम से राधा कृष्ण मंदिर (जे. के. मंदिर) को कुछ खास रखने-बनाने में कोई कोर-कसर नहीं रखता। धर्म, आस्था, विश्वास एवं पर्यटन केन्द्र के साथ ही राधा कृष्ण मंदिर को यदि उत्तर प्रदेश का गौरव स्थल कहा जाये तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। दिल्ली-हावड़ा मुख्य रेल मार्ग पर स्थित कानपुर में राधा कृष्ण मंदिर का दिग्दर्शन करने आने-जाने के लिए हवाई सेवा से लेकर रेल व सड़क परिवहन उपलब्ध हैं।
शहर के ह्मदय स्थल पर जी. टी. रोड (ग्राण्ड ट्रंक रोड) के निकट स्थित राधा कृष्ण मंदिर परिसर सांझ होते ही अपनी विशिष्ट अलौकिक छटा से निखर उठता है। कहा जाये कि राधा कृष्ण मंदिर की खूबसूरती श्रद्धालुओं-भक्तों व पर्यटकों के लिए प्रकृति का विशेष उपहार है तो शायद कोई अतिश्योक्ति न होगी। खास बात यह है कि राधा कृष्ण मंदिर परिसर का हर कोना पर्यावरण से आच्छादित है। कहीं सुगंधित फूलों की श्रंखला वाले पौधे हैं तो कहीं पर्यावरणीय हेज की बनावट पशु-पक्षियों का एहसास कराती है। परिसर में भव्य-दिव्य फव्वारों की श्रंखला भी अपनी अलग छटा बिखेरते हैं। फव्वारों की रंग-बिरंगी जल तरंगों की श्रंखला सर्दी हो या ग्रीष्मकाल अपनी विशिष्टता से लुभाते हैं। ग्रीष्मकाल में मन-तन की शीतलता से लबरेज कर देते हैं। मंद-मंद प्रवाहित संगीत की सुर लहरियां मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित कर देती हैं। राधा कृष्ण मंदिर के विशाल परिसर में छोटे-बड़े पार्कों की एक लम्बी श्रंखला है। बताते हैं कि सिंघानिया परिवार की देख-रेख में विकसित राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण कार्य वर्ष 1960 में पूर्ण हुआ लेकिन अभी भी विकास कार्य पर विराम नहीं लगा। मंदिर के सौन्दर्य में चार-चांद लगते रहें, इसको लेकर राधा कृष्ण मंदिर को रचने-गढ़ने का कार्य आज भी अनवरत जारी रहता है। 17.11.2016
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