देश में वन सुरक्षा की चुनौतियाँ
भारत विभिन्न प्रकार के वनों के साथ दुनिया में अत्यधिक विविधता वाले
देशों में से एक है। देश का 20 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वन क्षेत्र में है।
राष्ट्रीय वन नीति (1988) का लक्ष्य भारत में वन क्षेत्र को कुल क्षेत्र
के एक तिहाई तक लेकर आना है। 2015 में जारी भारत राज्य वन रिपोर्ट के
मुताबिक, 2013-2015 के बीच कुल वन क्षेत्र में 5081 वर्ग किलोमीटर की
वृद्धि हुई है, जिससे की 103 मिलियन टन कार्बन सिंक की बढ़त दर्ज़ की गई है।
मिजोरम में सबसे अधिक 93 प्रतिशत वन क्षेत्र है, कई उत्तर पूर्वी
राज्यों में हरित आवरण में गिरावट दर्ज़ है। वनों की सुरक्षा और विकास के
लिए देश को अपनी नीतियों को लागू करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़
रहा है। भारत में जंगलों का संरक्षण वन संरक्षण अधिनियम (1980) के
कार्यान्वयन और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना के माध्यम से किया जाता है।
भारत सरकार ने 597 संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की है जिनमें से 95
राष्ट्रीय उद्यान और 500 वन्यजीव अभयारण्य हैं। उपरोक्त क्षेत्र देश के
भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5 प्रतिशत हैं।
विभिन्न प्रकार के वन और जंगली झाड़ियाँ बाघ, हाथियों और शेरों
सहित विभिन्न वन्य जीवों की मेजबानी करते हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण वन
आधारित उद्योगों एवं कृषि के विस्तार के लिए किये जाने वाले अतिक्रमण की
वजह से वन भूमि पर भारी दबाव है। पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के निर्माण के
लिए वन संरक्षण और विकास परियोजना के पथांतरण के बीच बढ़ते संघर्ष वन
संसाधनों के प्रबंधन की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
देश में लकड़ी की मांग तेजी से बढ़ रही है। 2005 में 58
मिलियन क्यूबिक मीटर से बढ़कर 2020 में 153 मिलियन क्यूबिक मीटर हो गई है।
वन भण्डार की वार्षिक वृद्धि केवल 70 मिलियन क्यूबिक मीटर की लकड़ी की
आपूर्ति ही कर सकती है, जिससे हमें अन्य देशों से कठोर लकड़ी आयात करने के
लिए बाध्य होना पड़ता है। भारत में 67 प्रतिशत ग्रामीण परिवार घर का खाना
पकाने के लिए जलाने की लकड़ी पर निर्भर करते हैं। जलाने वाली लकड़ी से निकलने
वाले धुएं से सालाना लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु की सूचना प्राप्त होती
है।
समस्या को हल करने के लिए, प्रधानमंत्री एलपीजी स्कीम 'उज्ज्वला
योजना' को पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय द्वारा लागू किया गया है जो कि
दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित बीपीएल परिवारों को मुफ्त एलपीजी
कनेक्शन प्रदान करता है। इसने ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में परिवारों
तक साफ और कुशल ऊर्जा पहुंचाई है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने 'वन और
ऊर्जा' थीम पर 2017 में विश्व वन दिवस मनाने का आह्वान किया है। इसका मुख्य
लक्ष्य लकड़ी को अक्षय ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में विकसित करना,
जलवायु परिवर्तन की रोकथाम करना और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना है।
सामुदायिक लकड़ी संग्रहों को विकसित करने के साथ स्वच्छ और ऊर्जा कुशल
लकड़ी के स्टोव उपलब्ध करवा कर, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में लाखों लोगों
को अक्षय ऊर्जा की सस्ती और विश्वसनीय आपूर्ति उपलब्ध कराई जा सकती है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री के
अनुसार "देश में दो प्रमुख वनीकरण योजनाएं हैं, एक तो राष्ट्रीय वनरोपण
कार्यक्रम (एनएपी) और दूसरी ग्रीन इंडिया राष्ट्रीय मिशन (जीआईएम)। इन
दोनों ही योजनाओं को संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम के तहत सहभागिता स्वरुप
में लागू किया गया है।" एनएपी का उद्देश्य अवक्रमित वनों का पर्यावरण से
जुड़ा उत्थान करना और जीआईएम का लक्ष्य वनों की गुणवत्ता में सुधार करने के
साथ-साथ खेत और कृषि वानिकी सम्बंधित वनों को बढ़ाना है।
जीआईएम के तहत प्रतिवर्ष छह मिलियन हेक्टेयर अवक्रमित वन भूमि पर
वृक्षारोपण किया जाना है। विकास उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाई गई वन
भूमि को पुनः वनीकृत करना वनीकरण के मुख्य स्तंभों में से एक है। संसद के
दोनों सदनों ने 2016 में वनीकरण क्षतिपूर्ति विधेयक को पारित कर दिया है।
42,000 करोड़ रुपयों के प्रावधान के साथ देश में वन संसाधनों के संरक्षण,
सुधार और विस्तार हेतु राज्यों को 6000 करोड़ रुपये का वार्षिक परिव्यय
उपलब्ध कराया जाएगा। यह अधिनियम वनीकरण क्षतिपूर्ति कार्यक्रम को लागू करने
के लिए केंद्र और राज्य दोनों ही स्तरों पर संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराता
है।
इसके अतिरिक्त यह लगभग 15 करोड़ दिवसों का प्रत्यक्ष रोज़गार उत्पन्न
करेगा, जो देश के दूरदराज के वन क्षेत्रों में जनजातीय आबादी की सहायता भी
करेगा। इन हरित योजनाओं को लागू करने में भारत को भारी चुनौतियों का सामना
करना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन रोपे गए पौधों के अस्तित्व को सीधे तरीके
से प्रभावित करता है। शुष्क क्षेत्रों एवं रेगिस्तान का विस्तार एक अन्य
बड़ी चुनौती है जिसका उचित हस्तक्षेप द्वारा सामना करना एक प्रमुख आवश्यकता
है। वनीकरण के लिए एक सहभागिता मॉडल की अत्यंत आवश्यकता है। आदिवासी ज्ञान
प्रणालियों की ताकत को पहचानते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "अगर कोई है
जिन्होंने जंगलों की रक्षा की है, तो वह हमारा आदिवासी समुदाय है, उनके लिए
जंगलों की रक्षा आदिवासी संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है।"
उन्होंने लोगों का आह्वान कर उनसे प्रतिज्ञा करने को कहा कि
वे सामूहिक रूप से वनों के संरक्षण और वृक्ष आवरण को बढ़ाने की तरफ कार्य
करें। अधिक वन का मतलब जल की अधिक उपलब्धता, जो किसानों और भविष्य की
पीढ़ियों के लिए लाभप्रद होगा। प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार ऋषि-मुनि
एवं अन्य विद्यान व्यक्ति वन से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। रबींद्रनाथ टैगोर के
अनुसार, वन पर आधारित जीवनशैली सांस्कृतिक विकास का उच्चतम स्वरूप है।
ऋषि-मुनि वन में वृक्षों एवं पानी की धाराओं के पास रहते हुए उनसे बौद्धिक
और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते थे। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र खाद्य और
कृषि संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस का मुख्य विषय 'वन से प्राप्त होने
वाली लकड़ी ऊर्जा’ को बनाया है।
भारतीय परंपरा वनों की जीवित ऊर्जा को अत्यंत महत्वपूर्ण दर्ज़ा और मूल्य
प्रदान करती है, जो जीवन के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जनन को प्राप्त
करने में सहयोगी होती है। यह वनों और ऊर्जा के बीच के संबंधों को समझने का
एक अधिक समग्र दृष्टिकोण लगता है।