Monday, 22 May 2017

64 लाख नए बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन

           देश में सब्सिडी छोड़ने की पहल का डंका खूब गूंजा। 1.05 करोड़ परिवारों ने स्वैच्छिक रूप से एलपीजी सब्सिडी को त्याग दिया, ताकि सब्सिडी का लाभ ज़रूरतमंद उपभोक्ताओं को मिल सके। 

        वित्त वर्ष 2015-16 में करीब 64 लाख नए बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन जारी किए गए। वाराणसी को दो वर्षों में पाइप लाइन के जरिए रसोई गैस मुहैया कराने के उद्देश्य से सरकार द्वारा महत्वाकांक्षी गंगा ऊर्जा योजना की शुरुआत की गई। यह योजना वाराणसी के बाद, झारखंड, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लोगों की ज़रूरतों को भी पूरा करेगी। यह योजना पांच राज्यों के 40 ज़िलों और 26 गांवों की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करेगी। 

            यह योजना तीन बड़े उर्वरक संयंत्रों के पुनरुत्थान के लिए मार्ग प्रशस्त करेगी। यह 20 से अधिक शहरों में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देगी और 7 शहरों में गैस नेटवर्क का विकास करने में मदद करेगी, जिसके परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में नौकरियों की संभावना बढ़ेगी। पिछले कुछ सालों के दौरान देश में रिफाइनिंग क्षमता में काफी अधिक वृद्धि हुई है। पारादीप रिफाइनरी के चालू से वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान रिफाइनिंग क्षमता में 15 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) की क्षमता का विस्तार हुआ है। इस वृद्धि के साथ, अब रिफाइनिंग क्षमता 230.066 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष पर पहुंच गई है।

            सरकार ने घरेलू स्तर पर मांग को पूरा करने के लिए देश में तेल और गैस का उत्पादन बढ़ाने के लिए कई नीतिगत पहल और प्रशासनिक उपाय किए हैं। सरकार ने विभिन्न चरणों के अंतर्गत 01 अप्रैल 2017 से देशभर में बीएस-4 ऑटो ईंधन के कार्यान्वयन को अधिसूचित कर दिया है। यह निर्णय लिया गया है कि देश बीएस -4 से सीधे बीएस -6 ईंधन के मानकों पर पहुंचेगा और बीएस -6 मानकों को 1 अप्रैल, 2020 से लागू कर दिया जाएगा। इंडियन स्ट्रेटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व्स लिमिटेड (आईएसपीआरएल) ने विशाखापट्टनम, मैंगलोर और पादुर में तीन स्थानों पर 5.33 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) की भंडारण क्षमता के साथ स्ट्रेटेजिक क्रूड ऑयल के भंडारण का निर्माण किया है। 

             सरकार ने राष्ट्रीय तेल कम्पनियां ओएनजीसी और ओआईएल द्वारा किए गए 69 हाइड्रोकार्बन खोजों से मुनाफा कमाने और धन अर्जित करने के लिए खोजी लघु क्षेत्र नीति को भी मंजूरी दी है। ये वही परियोजनाएं हैं, जहां पृथक स्थान, भंडारण का छोटा आकार, उच्च विकास लागत, तकनीकी बाधाएं, वित्तीय व्यवस्था आदि विभिन्न कारणों से कई वर्षों से धन अर्जित नहीं किया जा सका है। यह गुवाहाटी, बोंगाइगांव और नुमालिगढ़ रिफाइनरी के विस्तार, नुमालिगढ़ में बायो-रिफाइनरी की स्थापना और राज्य में प्राकृतिक गैस, पीओएल एवं एलपीजी पाइपलाइन के नेटवर्क को विकसित करने का प्रस्ताव करता है। हाइड्रोकार्बन विजन डॉक्यूमेंट 2030, पूर्वोत्तर में तेल और गैस क्षेत्र में वर्ष 2030 तक 1.3 लाख करोड़ रुपये के निवेश का प्रस्ताव करता है।

Wednesday, 10 May 2017

भारत का निर्यात 500 बिलियन डॉलर

            भारत में व्यापार सफलता के मुख्य कारकों में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयास, निर्यात उन्मुख उद्योंगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना, व्यापार की प्रक्रिया को सरल करना, डिजिटल इंडिया और स्किल इंडिया शामिल हैं। 

           इन सभी ने न केवल नौकरी सृजन में वृद्धि, बल्कि विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि सुनिश्चित करने का काम किया। निर्यात दो अंकीय विकास में परिवर्तित हो गया । आने वाले सालों में भारत का व्यापारिक निर्यात 500 बिलियन डॉलर से अधिक और दोतरफा व्यापार 1 खरब डॉलर से अधिक होगा। यदि सेवाओं को निर्यात में शामिल किया जाता है, तो दोतरफा व्यापार एक खरब डॉलर से अधिक हो जाएगा। भारत के व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अन्य कारक अप्रत्यक्ष कर है, जो इस वर्ष जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर के रूप में लागू होने जा रहा है।

              एक राष्ट्र, एक कर और एक साझा बाज़ार व्यवस्था लेनदेन की लागत को कम करने के साथ-साथ लॉजिस्टिक में खपने वाले समय को कम करने जा रही है, ताकि व्यापार को कई गुणा बढ़ाया जा सके। वर्ष 2014-15 में 36 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 48 फीसद बढ़कर वर्ष 2015-16 में 53 बिलियन डॉलर पहुंच गया। इस प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के चलते व्यापार को भी गति मिली। वर्ष 2016-17 में दिसंबर माह तक भारत को 47 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि यह पिछले वर्ष के 53 बिलियन डॉलर के एफडीआई से आगे निकल जाएगा। 

                 विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2014 के 312 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2016 में 365 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है। नियमों का सरलीकरण, 1200 अप्रचलित कानूनों को खत्म करना, रियल एस्टेट नियामकों की स्थापना के लिए रियल एस्टेट विधेयक, एक मुख्य निर्यात वस्तु अर्थात् रत्न उद्योग के लिए ई-मार्केट की स्थापना और कई अन्य पहलों ने पिछले 2-03 वर्षों के दौरान व्यापार करने के प्रक्रिया को काफी सरल एवं बेहतर बनाया है। लोकप्रिय टार्गेट प्लस योजना को जारी रखने के संबंध में सर्वोच्च न्यायाल के फैसले को हाल ही में मंत्रिमंडल द्वारा मंज़ूरी दिए जाने से भी निर्यात को बढ़ाने में मदद मिलेगी। 

            टार्गेट प्लस योजना के अंतर्गत एफओबी मूल्य का 5-15 प्रतिशत ड्यूटी क्रेडिट निर्यातकों को प्रदान किया जाता है। मार्च महीने में 30 प्रमुख निर्यात उत्पादों में से 25 उत्पादों में सकारात्मक वृद्धि के साथ ही निर्यात निश्चित रूप से सही दिशा में वापस आ रहा है। वर्ष 2016-17 में यह 325 बिलियन डॉलर के निर्यात के लक्ष्य को वापस प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है, ताकि यह दो अंकों वाले उच्च विकास के रास्ते पर फिर से लौट आए। केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा मार्च में शुरू की गई निर्यात के लिए व्यापार अवसंरचना योजना (टीआईईएस) भी व्यापार को बढ़ावा देने में मदद करेगी। 

            बुनियादी ढांचे के स्तर पर निर्यातकों के सामने चुनौतियां काफी बड़ी हैं, ऐसे में प्रयोगशालाओं एवं प्रमाणीकरण केन्द्र के अलावा टीआईईएस, बंदरगाहों की अंतिम दूरी तक पहुंच जैसे आधुनिक आधारभूत ढांचे का निर्माण करने में मदद करेगा। यह विभिन्न लॉजिस्टिक बाधाओं को खत्म करने के अलावा, इससे जुड़ी कई अन्य समस्याओं का निपटान करेगा। भारत में लॉजिस्टिक लागत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सर्वोच्च स्तर पर है, ऐसे में केन्द्रीय मंत्री द्वारा शुरू की गई यह ईकाई लॉजिस्टिक लागत को कम करने में मदद करेगी। इसके अलावा, विश्व व्यापार संगठन में 21 वर्षों में पहली बार ट्रेड फैसिलिटेशन एग्रीमेंट नामक बहुपक्षीय समझौते, से व्यापार लगात औसतन 14.3 फीसद तक घटने की उम्मीद है।

              भारत जैसे विकासशील देशों को इससे लाभ होगा, क्योंकि ये वस्तुओं की गतिविधि, निकासी और निवारण के वैश्विक नियमों के अनुरूप होगा। यह व्यापार संबंधी प्रशासनिक गतिविधियों को सरल एवं कम लागत वाला बनाएगा, जिससे वैश्विक आर्थिक विकास को महत्वपूर्ण एवं ज़रूरी बढ़ावा मिलेगा। यह वैश्विक वृद्धि को कम से कम 0.5 फीसद तक बढ़ाने में मदद करेगा, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। यह वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी को वर्तमान 1.9 फीसद से बढ़ाकर 5 फीसद तक लाने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों के साथ निर्यात को प्रोत्साहित करेगा। 

              विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ, तेज़ी के बढ़ते निर्यात का लाभ उठाने के लिए मोदी सरकार ने उलट आयात शुल्क संरचना को वापस पटरी पर लाने के लिए कई अहम उपाय किए हैं। सरकार द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे सुधार, 2020 तक अनुमानित 882 बिलियन डॉलर के भारत के व्यापार निर्यात के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करेंगे। विभिन्न सेवा निर्यातों के साथ, भारत का कुल निर्यात करीब 1.3-1.4 ट्रिलियन डॉलर होगा। ऐसी परिस्थितियों में कुल दो तरफा व्यापार 2.5 ट्रिलियन डॉलर की सीमा को पार कर सकता है।

               यह एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, मगर सुधारों के मद्देनज़र इसको हासिल करना संभव है। 1991 के आर्थिक उदारवाद के बाद, जीएसटी अपने आप में दूरगामी और अत्यंत प्रभावशाली सुधार है, जो व्यापार, निर्यात एवं अर्थव्यवस्था के स्तर पर देश की विकास की गति को और तेज़ करेगा।

Sunday, 30 April 2017

देश में वन सुरक्षा की चुनौतियाँ

           भारत विभिन्न प्रकार के वनों के साथ दुनिया में अत्यधिक विविधता वाले देशों में से एक है। देश का 20 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वन क्षेत्र में है। राष्ट्रीय वन नीति (1988) का लक्ष्य भारत में वन क्षेत्र को कुल क्षेत्र के एक तिहाई तक लेकर आना है। 2015 में जारी भारत राज्य वन रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-2015 के बीच कुल वन क्षेत्र में 5081 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है, जिससे की 103 मिलियन टन कार्बन सिंक की बढ़त दर्ज़ की गई है।

           मिजोरम में सबसे अधिक 93 प्रतिशत वन क्षेत्र है, कई उत्तर पूर्वी राज्यों में हरित आवरण में गिरावट दर्ज़ है। वनों की सुरक्षा और विकास के लिए देश को अपनी नीतियों को लागू करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।   भारत में जंगलों का संरक्षण वन संरक्षण अधिनियम (1980) के कार्यान्वयन और संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना के माध्यम से किया जाता है। भारत सरकार ने 597 संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की है जिनमें से 95 राष्ट्रीय उद्यान और 500 वन्यजीव अभयारण्य हैं। उपरोक्त क्षेत्र देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 5 प्रतिशत हैं।

             विभिन्न प्रकार के वन और जंगली झाड़ियाँ बाघ, हाथियों और शेरों सहित विभिन्न वन्य जीवों की मेजबानी करते हैं। बढ़ती जनसंख्‍या के कारण वन आधारित उद्योगों एवं कृषि के विस्तार के लिए किये जाने वाले अतिक्रमण की वजह से वन भूमि पर भारी दबाव है। पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के निर्माण के लिए वन संरक्षण और विकास परियोजना के पथांतरण के बीच बढ़ते संघर्ष वन संसाधनों के प्रबंधन की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

             देश में  लकड़ी की मांग तेजी से बढ़ रही है। 2005 में 58 मिलियन क्यूबिक मीटर से बढ़कर 2020 में 153 मिलियन क्यूबिक मीटर हो गई है। वन भण्डार की वार्षिक वृद्धि केवल 70 मिलियन क्यूबिक मीटर की लकड़ी की आपूर्ति ही कर सकती है, जिससे हमें अन्य देशों से कठोर लकड़ी आयात करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। भारत में 67 प्रतिशत ग्रामीण परिवार घर का खाना पकाने के लिए जलाने की लकड़ी पर निर्भर करते हैं। जलाने वाली लकड़ी से निकलने वाले धुएं से सालाना लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु की सूचना प्राप्त होती है।

           समस्या को हल करने के लिए, प्रधानमंत्री एलपीजी स्कीम 'उज्ज्वला योजना' को पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय द्वारा लागू किया गया है जो कि दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित बीपीएल परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान करता है। इसने ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में परिवारों तक साफ और कुशल ऊर्जा पहुंचाई है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने 'वन और ऊर्जा' थीम पर 2017 में विश्व वन दिवस मनाने का आह्वान किया है। इसका मुख्य लक्ष्य लकड़ी को अक्षय ऊर्जा के प्रमुख स्रोत के रूप में विकसित करना, जलवायु परिवर्तन की रोकथाम करना और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना है। 

           सामुदायिक लकड़ी संग्रहों को विकसित करने के साथ स्वच्छ और ऊर्जा कुशल लकड़ी के स्टोव उपलब्ध करवा कर, विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में लाखों लोगों को अक्षय ऊर्जा की सस्ती और विश्वसनीय आपूर्ति उपलब्ध कराई जा सकती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री के अनुसार "देश में दो प्रमुख वनीकरण योजनाएं हैं, एक तो राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (एनएपी) और दूसरी ग्रीन इंडिया राष्ट्रीय मिशन (जीआईएम)। इन दोनों ही योजनाओं को संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम के तहत सहभागिता स्वरुप में लागू किया गया है।" एनएपी का उद्देश्य अवक्रमित वनों का पर्यावरण से जुड़ा उत्थान करना और जीआईएम का लक्ष्य वनों की गुणवत्ता में सुधार करने के साथ-साथ खेत और कृषि वानिकी सम्बंधित वनों को बढ़ाना है। 

            जीआईएम के तहत प्रतिवर्ष छह मिलियन हेक्टेयर अवक्रमित वन भूमि पर वृक्षारोपण किया जाना है। विकास उद्देश्यों के लिए उपयोग में लाई गई वन भूमि को पुनः वनीकृत करना वनीकरण के मुख्य स्तंभों में से एक है। संसद के दोनों सदनों ने 2016 में वनीकरण क्षतिपूर्ति विधेयक को पारित कर दिया है। 42,000 करोड़ रुपयों के प्रावधान के साथ देश में वन संसाधनों के संरक्षण, सुधार और विस्तार हेतु राज्यों को 6000 करोड़ रुपये का वार्षिक परिव्यय उपलब्ध कराया जाएगा। यह अधिनियम वनीकरण क्षतिपूर्ति कार्यक्रम को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य दोनों ही स्तरों पर संस्थागत ढांचा उपलब्ध कराता है। 

            इसके अतिरिक्त यह लगभग 15 करोड़ दिवसों का प्रत्यक्ष रोज़गार उत्पन्न करेगा, जो देश के दूरदराज के वन क्षेत्रों में जनजातीय आबादी की सहायता भी करेगा। इन हरित योजनाओं को लागू करने में भारत को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन रोपे गए पौधों के अस्तित्व को सीधे तरीके से प्रभावित करता है। शुष्क क्षेत्रों एवं रेगिस्तान का विस्तार एक अन्य बड़ी चुनौती है जिसका उचित हस्तक्षेप द्वारा सामना करना एक प्रमुख आवश्यकता है। वनीकरण के लिए एक सहभागिता मॉडल की अत्यंत आवश्यकता है। आदिवासी ज्ञान प्रणालियों की ताकत को पहचानते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, "अगर कोई है जिन्होंने जंगलों की रक्षा की है, तो वह हमारा आदिवासी समुदाय है, उनके लिए जंगलों की रक्षा आदिवासी संस्कृति का एक प्रमुख हिस्सा है।"

              उन्होंने लोगों का आह्वान कर उनसे प्रतिज्ञा करने को कहा कि वे सामूहिक रूप से वनों के संरक्षण और वृक्ष आवरण को बढ़ाने की तरफ कार्य करें। अधिक वन का मतलब जल की अधिक उपलब्‍धता, जो किसानों और भविष्य की पीढ़ियों के लिए लाभप्रद होगा। प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार ऋषि-मुनि एवं अन्य विद्यान व्यक्ति वन से ऊर्जा ग्रहण करते हैं। रबींद्रनाथ टैगोर के अनुसार, वन पर आधारित जीवनशैली सांस्कृतिक विकास का उच्चतम स्वरूप है। ऋषि-मुनि वन में वृक्षों एवं पानी की धाराओं के पास रहते हुए उनसे बौद्धिक और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करते थे। यद्यपि संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस का मुख्य विषय 'वन से प्राप्त होने वाली लकड़ी ऊर्जा’ को बनाया है।

             भारतीय परंपरा वनों की जीवित ऊर्जा को अत्यंत महत्वपूर्ण दर्ज़ा और मूल्य प्रदान करती है, जो जीवन के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जनन को प्राप्त करने में सहयोगी होती है। यह वनों और ऊर्जा के बीच के संबंधों को समझने का एक अधिक समग्र दृष्टिकोण लगता है।

Saturday, 22 April 2017

मनरेगा में 2.82 करोड़ की परिसंपत्तियां सृजित

              महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम ने एक करोड़ परिसंपत्तियों को भू-चिन्हित करते हुए एक नई उपलब्धि हासिल की। 

      मनरेगा के अंतर्ग‍त सृजित परिसंपत्तियों का आकार अत्‍यन्‍त विशाल हो चुका है। वित्‍तीय वर्ष 2006-07 में प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक करीब 2.82 करोड़ रुपये मूल्य की परिसंपत्तियां सृजित की जा चुकी हैं। इसके अंतर्गत हर वर्ष औसतन करीब 30 लाख परिसंपत्तियों का निर्माण किया जाता है, जिनमें अनेक कार्य शामिल होते हैं, जैसे जल संरक्षण ढांचों का निर्माण, वृक्षारोपण, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का सृजन, बाढ़ नियंत्रण के उपाय, स्‍थायी आजीविका के लिए व्‍यक्तिगत परिसंपत्तियों का निर्माण, सामुदायिक ढांचा और ऐसी ही अन्‍य परिसंपत्तियां शामिल होती हैं। 

             मनरेगा परिसं‍पत्तियों को भू-चिन्हित यानी जिआ-टैग करने की प्रक्रिया जारी है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सृजित सभी परिसंपत्तियां जिआ-टैग की जाएंगी। राष्‍ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन कार्यों, विशेष रूप से जल संबंधी कार्यों को भू-चिन्हित यानी जिआ-टैग करने पर विशेष ध्‍यान केन्द्रित किया जा रहा है। जिआ-मनरेगा ग्रामीण विकास मंत्रालय का एक बेजोड़ प्रयास है, जिसे राष्‍ट्रीय दूर संवेदी केन्‍द्र (एनआरएससी), इसरो और राष्‍ट्रीय सुचना विज्ञान केन्‍द्र के सहयोग से अंजाम दिया जा रहा है। इसके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 24 जून 2016 को एनआरएससी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किए थे। इसके अंतर्गत प्रत्‍येक ग्राम पंचायत के अंतर्गत सृजित परिसंपत्तियों को जिओ-टैग किया जाना है।

            इस समझौते के फलस्‍वरूप राष्‍ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्‍थान की सहायता से देशभर में 2.76 लाख कार्मिकों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया। उम्‍मीद की जा रही है कि भू-चिन्हित करने की प्रकिया से फीड स्‍तर पर जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकेगी।

देश के 91 प्रमुख जलाशयों के जलस्तर में कमी 

              देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 46.06 बीसीएम (अरब घन मीटर) जल का संग्रहण आंका गया। यह इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 29 प्रतिशत है। 13 अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताह के अंत में यह दर 31 प्रतिशत थी। यह पिछले वर्ष की इसी अवधि के कुल संग्रहण का 133 प्रतिशत तथा पिछले दस वर्षों के औसत जल संग्रहण का 106 प्रतिशत है। 

           इन 91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 157.799 बीसीएम है, जो समग्र रूप से देश की अनुमानित कुल जल संग्रहण क्षमता 253.388 बीसीएम का लगभग 62 प्रतिशत है। इन 91 जलाशयों में से 37 जलाशय ऐसे हैं जो 60 मेगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता के साथ पनबिजली संबंधी लाभ देते हैं। उत्तरी क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान आते हैं। इस क्षेत्र में 18.01 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले छह जलाशय हैं, जो केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्यूसी) की निगरानी में हैं। 

             इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 4.50 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 25 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 22 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 30 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण बेहतर है, लेकिन पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से यह कमतर है।

               पूर्वी क्षेत्र में झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा आते हैं। इस क्षेत्र में 18.83 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 15 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 8.68 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 46 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 32 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 32 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण बेहतर है। यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी बेहतर है। 

               पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात तथा महाराष्ट्र आते हैं। इस क्षेत्र में 27.07 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 27 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 9.81 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 36 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 19 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 35 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण बेहतर है। यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी बेहतर है।

              मध्य क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ आते हैं। इस क्षेत्र में 42.30 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 12 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 17.43 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 41 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 29 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 26 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण बेहतर है। यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी बेहतर है।

               दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश (एपी), तेलंगाना (टीजी), एपी एवं टीजी (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं), कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु आते हैं। इस क्षेत्र में 51.59 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 31 जलाशय हैं, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 5.61 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 11 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 14 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 26 प्रतिशत था। इस तरह चालू वर्ष में संग्रहण पिछले वर्ष की इसी अवधि में हुए संग्रहण से कमतर है, और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कमतर है। 

         पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण बेहतर है उनमें पंजाब, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश,  उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, एपी एवं टीजी (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं), और तेलंगाना शामिल हैं। इसी अवधि के लिए पिछले साल की तुलना में कम संग्रहण करने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु शामिल हैं।

Friday, 24 March 2017

मनरेगा : ग्रामीण परिवारों की जीवनरेखा

           महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने अपनी स्थापना के बाद से अब तक एक लंबा सफर तय कर लिया है। यह लाखों लोगों के लिए एक जीवनरेखा बन गया है।

            इस अधिनियम को 7 सितंबर 2005 को अधिसूचित किया गया था ताकि प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार प्रदान किया जा सके, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल दस्‍ती काम कर सकते थे। सामाजिक समावेश, लिंग समानता, सामाजिक सुरक्षा और न्यायसंगत विकास महात्मा गांधी नरेगा के संस्थापक स्तंभ हैं। वर्ष 2015-16 के दौरान, 235 करोड़ दिवस पैदा किए गए, जोकि पिछले पांच वर्षों की तुलना में सबसे ज्‍यादा था। वर्ष 2016-17 के दौरान 4.8 करोड़ परिवारों को 142.64 लाख कार्य-क्षेत्रों में रोजगार दिए गए।

             इस प्रक्रिया में रोजगार के 200 करोड़ दिवस पैदा किए गए। कुल रोजगार का 56 प्रतिशत हिस्‍सा महिलाओं के लिए पैदा किया गया। इस कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से अब तक महिलाओं की यह भागीदारी सबसे ज्‍यादा है। इस कार्यक्रम के लिए अब तक 3,76,546 करोड़ रुपए दिए गए हैं। वित्‍त वर्ष 2017-18 के लिए 48,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जोकि मनरेगा के लिए अभी तक आवंटित राशियों में सबसे अधिक है। वर्ष 2016-17 में 51,902 करोड़ रुपए खर्च किए गए जोकि इसकी शुरुआत के बाद से अब तक का सबसे अधिक खर्च है। औसतन हर साल (वित्‍त वर्ष 2013-14 तक) 25 से 30 लाख कार्य पूरे किए गए थे, वहीं मौजूदा वित्‍त वर्ष 2016-17 में 51.3 लाख काम पूरे किए गए।

             इस कार्यक्रम की शुरुआत के बाद पहली बार, जल संरक्षण के लिए समेकित दिशानिर्देश तैयार किए गए। मिशन जल संरक्षण - प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) और इंटीग्रेटेड वाटरशेड मैनेजमेंट प्रोग्राम (आईडब्ल्यूएमपी) के साथ मिलकर मनरेगा के तहत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) संबंधित कार्यों के लिए योजना और निगरानी फ्रेमवर्क तैयार किया गया है। इनके लिए वैज्ञानिक नियोजन और नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करके जल प्रबंधन का निष्पादन ही मंत्रालय का मुख्‍य ध्‍येय है। वित्‍त वर्ष 2016-17 में कुल खर्च का 63 प्रतिशत हिस्‍सा एनआरएम (प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन) कार्यों पर खर्च किए गए। वित्‍त वर्ष 2016-17 में कृषि और संबंधित क्षेत्रों के कार्यों पर लगभग 70 प्रतिशत खर्च किया गया, जोकि वित्‍त वर्ष 2013-14 में सिर्फ लगभग 48 प्रतिशत था। भू-मनरेगा तो एक पथप्रदर्शक पहल है, जो बेहतर नियोजन, प्रभावी निगरानी, बढ़ी हुई दृश्यता और अधिक पारदर्शिता के लिए मनरेगा के तहत बनाई गई सभी संपत्तियों को भू-टैगिंग के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करती है। 

              इस पहल की शुरुआत वित्‍त वर्ष 2016-17 में की गई। लगभग 65 लाख संपत्तियों को भू-टैग किया गया। इसे पब्लिक डोमेन में लाया गया। निधि प्रवाह तंत्र के बेरोकटोक चलने और मजदूरी के भुगतान में देरी को कम करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 21 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (एनईएफएमएस) लागू किया है। इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (ईएफएमएस) के द्वारा एमजीएनआरईजीए के कर्मचारियों के बैंक/डाकघर खातों में मजदूरी का लगभग 96 प्रतिशत हिस्‍सा इलेक्ट्रॉनिक रूप से भुगतान किया जा रहा है। 

              वित्त वर्ष 2013-14 में मजदूरी का सिर्फ 37 प्रतिशत भुगतान इलेक्ट्रॉनिक रूप से किया गया था। अभी 8.9 करोड़ सक्रिय मजदूरों के एनआरईजीएसोफ्ट-एमआईएस में आधार संख्या दर्ज है, जबकि जनवरी 2014 में यह संख्या मात्र 76 लाख थी। अब तक 4.25 करोड़ मजदूरों को आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के लिए सक्षम किया गया है। वित्‍त वर्ष 2016-17 के दौरान जॉब कार्ड सत्‍यापन और अद्यतन प्रक्रिया शुरू की गई थी। अभियान के रूप में चलाकर 75 प्रतिशत सक्रिय जॉब कार्डों का सत्‍यापन किया गया। वर्ष 2016-17 के लिए पहले जारी किए गए 1039 परिपत्रों/परामर्शों और वार्षिक मास्टर परिपत्र (एएमसी) जारी करके मनरेगा को सरल बनाने के लिए पहल की गई। वित्‍त वर्ष 2017-18 के लिए एएमसी जारी किया जाएगा। 

                 ग्राम पंचायत स्तर पर रजिस्टरों की संख्या में कमी करने के लिए औसतन 22 रजिस्टरों की तुलना में 7 सरल रजिस्टरों की प्रक्रिया लागू की गई है। अब तक, 2.05 लाख ग्राम पंचायतों ने इसे अपना लिया है। यह कार्यक्रम सामाजिक ऑडिट और आंतरिक लेखा परीक्षा की एक अधिक स्वतंत्र और सशक्त प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ताकि महिला एसएचजी से लिए गए सामाजिक लेखा परीक्षकों के एक प्रशिक्षित सामुदायिक काडरों के द्वारा जवाबदेही के साथ-सा‍थ विकास भी सुनिश्चित किया जा सके। मंत्रालय ने अंतरराज्‍यीय आदान-प्रदान कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिससे विचारों और पद्धतियों को साझा किया जा सके। 2016-17 के दौरान अब तक, तमिलनाडु, राजस्थान, मेघालय, झारखंड, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों ने इस पहल को लागू किया है। 

           पहली बार, बुनियादी स्‍तर पर पीएमजीएसवाई दिशानिर्देशों के आधार पर गैर-पीएमजीएसवाई सड़कों के लिए दिशानिर्देश बनाए गए हैं। इन संपत्तियों के भविष्‍य में पीएमजीएसवाई मानकों के स्‍तर तक की गुणवत्‍ता की संभावना होगी।

Wednesday, 8 March 2017

महिलाएं परिवर्तन की वाहक

           राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नारी शक्ति पुरुस्कार प्रदान किए। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है।

            भारत में हम अपने दैनिक जीवन में अनेक तरीकों से अपनी महिलाओं को स्वीकार करते है। याद करते है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम समाज के प्रति महिलाओं के निःस्वार्थ उपहार के लिए उन्हें विश्व द्वारा नमन करने में शामिल हो रहे है। नारी शक्ति पुरुस्कार प्राप्त करने वाली महिलाओं और संगठनों को बधाई देता हूं। उन्होंने चुनौतियों को स्वीकार करके तथा उच्च आकांक्षाओं को पूरा करने का उत्कृष्ठ कार्य किया है। प्रत्येक सफलता के पीछे संकल्प और दृढ़ता की कहानी होती है। 

          प्रत्येक सफलता हजारों अन्य महिलाओं के प्रयासों का प्रतिनिधित्व करती है। इनका समान रूप से आदार किया जाना चाहिए। भारत के स्वतंत्र गणराज्य बनने से पहले अपने देश में महिलाओं की सशक्तिकरण पर विचार-विमर्श शुरू हुआ। हमारे संविधान और नीति निर्देशक तत्वों में नीति और नियोजन के लिए सरकार को स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए है। महिलाएं अब केवल कल्याण लाभों को प्राप्त करने वाली नहीं बल्कि समान अधिकार, समान सहभागी और देश की सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक प्रक्रियाओं में परिवर्तन की वाहक के रूप में मान्य दी जाती हैं। 

            राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं का प्रयास सराहनीय रहा है। उन्होंने सामाजिक और आर्थिक असमानता को कम करने में प्रभावी रूप से योगदान दिया है। निःस्वार्थ भाव से विकास तथा राष्ट्र निर्माण के लक्ष्यों के लिए कार्य कर रही है। स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में ग्रामीण भारत में एक मिलियन से अधिक, निर्धारित 33 प्रतिशत से अधिक- महिलाओं ने अधिकार प्राप्त किए हैं। प्रभावी रूप से अपने दायित्व को निभा रही हैं। रक्षा सेवाओं, पुलिस तथा सुरक्षा बलों, खेल, शिक्षा, अंतरिक्ष अनुसंधान और नवाचार जैसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में महिलाएं कमजोर और शोषित लोगों के लिए काम कर रही हैं, समुदाय तक पहुंच रही है। 

           स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भागीदारी कर रही हैं। अच्छे टीम कार्य और सफलता के लिए महिलाएं अपरिहार्य हैं। हमें यह स्वीकार करना होगा कि प्रायः महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि महिलाएं ऐसी कठिनाइय़ों को पार कर जाती है और प्रेरित करती हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर यह दोहराना आवश्यक है कि प्रत्येक लड़की और महिला को यह आवश्स्त किया जाना चाहिए कि भारत सरकार उन्हें ऐसा सक्षम वातावरण उपलब्ध कराने के लिए संकल्पबद्ध है, जिसमें उन्हें को बराबरी का अवसर मिले। महिलाओं को आत्मविश्वासी महसूस होना चाहिए, उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि जिस क्षेत्र को वह चुनती हैं उन क्षेत्रों में वह उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति कर सकती है। 

             देश के अनेक हिस्सों में बाल लिंग अनुपात में गिरावट को देखते हुए प्रधानमंत्री का ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान लांच किया गया है। यह अभियान इस तरह बनाया गया है ताकि देश के प्रत्येक हिस्सें में लड़की प्राथमिक शिक्षा में नामांकन के लिए प्रेरित हो सके। इस कार्यक्रम के अंतर्गत 2015 तक देश के 100 जिलों को चुना गया। 2016 में इसमें 61 अतिरिक्त जिले जोड़े गए। सरकार महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा को लेकर चिंतित है। यह अक्षमय बात है कि भारत में महिला उतनी सुरक्षित महसूस नहीं करतीं, जितनी सुरक्षा होनी चाहिए।  

               राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, आधुनिक भारत में लैंगिंक असमानता और भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है। भारत का प्रमुख लक्ष्य समावेशी विकास है। इस बारे में स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को संवेदी बनाने से महिलाओं को उचित सम्मान मिलेगा। यह कार्य हमारे ग्रामीण और शहरी आबादी के बीच उचित उपायों के जरिए और समेकित सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि महिलाओं में अनेक कार्य संपन्न करने की आपार क्षमता होती है। अपने परिवारों तथा घरों से लेकर खेतों, व्यवसायों और विभिन्न कार्यों में महिलाओं का संकल्प किसी से कम नहीं है। गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की कृति घरे बायरे में पढ़ी हुई पंक्ति मुझे याद आती है कि, ‘हम महिलाएं घर के चिराग की केवल देवियां नहीं, बल्कि इसकी ज्योति और आत्मा है।’ 

            महिलाओं को आदार देते समय यह पंक्तियां हमारे दिमाग में होनी चाहिए। यह कठिन नहीं है क्योंकि यह बुनियादी मूल्य हमारी महान विरासत का हिस्सा रहे हैं। हमारी चेतना में हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमें इन बुनियादी मूल्यों की रक्षा और प्रसार के प्रति अपने आप को समर्पित करना चाहिए। इन शब्दों के साथ मैं एक बार फिर नारी शक्ति पुरुस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। उनके प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं। महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी को इन पुरुस्कारों के गठन के लिए मैं हृदय से धन्यवाद देता हूं। यह पुरुस्कार महिलाओं के सशक्तिकरण और अपने देश की प्रगति के लिए व्यक्तियों, संस्थानों और संगठनों को छोटा-बड़ा योगदान करने के लिए प्रेरित करेगे।