Tuesday, 22 November 2016

 अब 'नीली क्रांति" की कोशिश
  
     'हरित क्रांति" के बाद अब 'नीली क्रांति" लाने की कोशिश।  जी हां, अब देश के नीति-नियंता मछली पालन को बढ़ावा देने की कोशिश में हैं। लिहाजा जल कृषि उत्पादन में वृद्धि की रणनीति बनने लगी। भारत सरकार को विश्वास है कि मछली पालकों व किसानों को आर्थिक फायदा के रास्ते भविष्य में तेजी से खुलेंगे। भारत सरकार ने रणनीति तैयार की है। इसी रणनीति के तहत केन्द्रीय बजट में इसके लिए 1700 करोड़ धनराशि का प्रावधान किया गया है। विशेषज्ञों की मानें तो अब उचित खर्च-उचित आय। 

इसके तीन फायदे गिनाये जा रहे हैं। मछली पालन से किसानों को 'आय" का प्रत्यक्ष फायदा होगा तो वहीं देश का निर्यात बढ़ेगा। साथ ही देश की विकास दर में इजाफा होगा। विशेषज्ञों की मानें तो मछली पालन का व्यवसाय तेजी से नया आकार ले रहा है। फिलहाल देश में 150 लाख से अधिक किसान-काश्तकार मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हैं। भारत विश्व में झींगा मछली पालन में पहला स्थान रखता है। झींगा मछली का विश्व के अनेक देशों को निर्यात किया जाता है। कृषि मंत्रालय की मानें तो वर्ष 2015-2016 में 10.8 मिलियन टन मछली उत्पादन हुआ। यह मछली उत्पादन विश्व के मछली उत्पादन का 6.4 प्रतिशत रहा। भारत जल कृषि उत्पादन में लगभग 6.3 प्रतिशत योगदान करता है।

 विश्व में मछली एवं मत्स्य उत्पादन में निर्यात दर आैसत 7.5 प्रतिशत रही जबकि भारत का यह प्रतिशत 14.8 रहा। विकास दर में भारत विश्व में पहले स्थान पर रहा। कृषि मंत्रालय ने 'नीली क्रांति" का संदेश दिया है। मंत्रालय ने विभिन्न योजनाओं का विलय कर तीन हजार करोड़ की एक छत्र योजना नीली क्रांति का एलान किया है। कोशिश है कि 2020 तक मत्स्य उत्पादन पन्द्रह मिलियन टन हो। जल कृषि के लिए लगभग 26869 हेक्टेयर क्षेत्र विकसित किया गया। इससे करीब 63372 मछुआरों को लाभ मिलेगा। इतना ही नहीं मछुआरा कल्याण के तहत 9603 मछुआरा आवास का निर्माण भी किया गया। कल्याण एवं व्यवसाय के लिए 20705 मछुआरों को प्रशिक्षण भी दिया गया। इतना ही नहीं पचास लाख मछुआरों को बीमा सहायता भी दी गयी।  
                                                          प्रकाशन तिथि 22.11.2016


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