Monday, 28 November 2016

गंगा की निर्मलता एवं अविरलता :
चाहिए एक अंजुरी इच्छाशक्ति
राजनीतिज्ञ लें संकल्प, साफ करेंगे 'मोक्षदायिनी"


      'हिमालय" को न बचा सके तो शायद काफी कुछ खो देंगे....?  जी हां, पर्यावरण प्रेमियों व गंगा सेवकों की कसक तो यही बयां कर रही है क्योंकि हिमालय क्षेत्र व गंगधारा कंक्रीट की चपेट में दिख रही है। सुरम्य जल घाटियों वाले हिमालय क्षेत्र में विद्युत उत्पादन के लिए एक नहीं बल्कि असंख्य परियोजनाएं आकार लेते दिख रही हैं। 

जिससे उत्तराखण्ड का एक बड़ा इलाका विकास एवं विनाश की द्वंद में फंसा दिखायी दे रहा है। गंगा व उसकी सहयोगी नदियों मसलन मंदाकिनी, अलकनन्दा, यमुना, टौंस, पिंडर, काली, धौली, गौरी, रामगंगा व शारदा सहित अन्य छोटी-बड़ी नदियों पर 70 से अधिक बांध परियोजनाएं बलवती होते दिख रही हैं तो वहीं विद्युत परियोजनाओं के लिए पांच सौ से अधिक स्थल चिह्नित किये जा चुके हैं। अब ऐसे में देखा जाये तो गंगा-यमुना सहित अन्य नदियों का अस्तित्व ही खतरों में होगा। गंगा-यमुना कंक्रीट की सुरंगों में कैद होंगी.... ? शायद यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी क्योंकि इतनी लम्बी श्रंखला में बांधों का बनना निश्चित रूप से नैसर्गिक सौन्दर्य को तो नष्ट करेगा ही प्राकृतिक संसाधनों कोे भी खत्म कर देगा। 

कंक्रीट का जंगल बढ़ेगा तो निश्चित मानिए कि पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि पेड़-पौधे कटेंगे तो पर्यावरण का एक गम्भीर संकट खड़ा होगा। कल्पना करें कि पेड़-पौधे खत्म हो जायेंगे तो परिवेश कैसा होगा....? नदियां कंक्रीट की सुरंग में कैद होंगी तो आक्सीजन का प्रवाह न्यूनतम हो जायेगा। यह स्थिति न तो बाशिंदों के लिए सुखकर होगी न जलीय जीवों के हित में होगी। हिमालय संरक्षण, गंगधारा की अस्तित्व रक्षा व पर्यावरण का हनन न होने देने के लिए पर्यावरण  मर्मज्ञ सुन्दर लाल बहुगुणा के संघर्ष को देश के बाशिंदे अभी भूले नहीं होंगे। गंगा रक्षा में स्वामी निगमानन्द के प्राण चले गये। गंगा सेवा अभियानम के गंगा रक्षा आंदोलन में प्रोफेसर जी. डी. अग्रवाल (स्वामी सानन्द), साध्वी पूर्णाम्बा, साध्वी शारदाम्बा, ब्राह्मचारी कृष्णप्रियानन्द सहित दर्जनों साधु-संतों ने लम्बे समय तक अनशन,उपवास एवं तप किया लेकिन आंदोलन के कोई सार्थक परिणाम नहीं दिखे जिससे गंगा की अविरलता एवं निर्मलता गोमुख से गंगासागर तक दिखती।

 हालांकि गंगा रक्षा का यह आंदोलन न तो खत्म हुआ आैर न शांत हुआ। हां, इतना अवश्य हुआ कि आंदोलन का स्वरूप अब कानूनी शिंकजा कसने की कोशिश करता दिख रहा है। गंगा सेवा अभियानम ने संकल्प लिया है कि व्यवस्था से जुड़े विभागों के खिलाफ एक हजार एक तहरीर देकर एफआईआर दर्ज करायेंगे। इसकी शुरूआत भी हुई। काशी के विभिन्न थानों में तहरीर दी गयीं। गंगा सेवक राम शंकर सिंह फोटोग्राफ्स के जरिए 'गंगा का दर्द " दो दशक से निरंतर बयां करते चले आ रहे कि गंगा कैसे मलिन व कलुषित होती जा रही है। इसकी रक्षा करो....। अब शायद यह कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी कि कहीं न कहीं गंगा रक्षा के लिए राजनीतिक क्षेत्र में चेतना आयी है क्योंकि कई राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं ने हस्ताक्षर कर देश के तत्कालीन (पूर्व) प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के सामने गंगा की व्यथा-कथा रखी भी। 

गंगा रक्षा के लिए आंदोलित गंगा सेवकों का मानना है कि टिहरी बांध को तोड़े बिना गंगा-यमुना व अन्य नदियों के अस्तित्व को नहीं बचाया जा सकता। भारत सरकार ने गंगा की मलिनता को खत्म करने का संकल्प लिया। गंगा पुर्नरुद्धार एवं जल संसाधन मंत्रालय ने योजनायें भी बनायीं लेकिन अभी तक कहीं कोई सार्थक परिणाम नहीं दिखे। गौरतलब है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना गंगा की निर्मलता एवं अविरलता लौटाना काफी कुछ मुश्किल नहीं बल्कि असंभव सा दिखता है। सामाजिक सोच में बदलाव भी गंगा की निर्मलता में अपना योगदान दे सकता है। कुल मिला कर एक समग्र प्रयास होना चाहिए जिससे गंगा की निर्मलता एवं अविरलता लौट सके।  प्रकाशन तिथि 28.11.2016  

                             

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