Saturday, 19 November 2016

 जल परिवहन के मजे लें

      मौसम कोई भी हो, जल क्रीड़ा-जल यातायात के मजे ही कुछ आैर होते हैं। जर्मन को जानना हो या सिंगापुर में सैरसपाटा करना हो तो जल यातायात का आनन्द लें। जर्मन में राइन सहित करीब आधा दर्जन नदियों की शानदार जल श्रंखला है। यह नदियां यातायात की एक बेहतरीन कड़ी हैं। करीब सात हजार किलोमीटर लम्बी नदियों की इस श्रंखला से जर्मन के दर्शन किये जा सकते हैं। इसी तरह से सिंगापुर में वॉटर पार्कों की बहुतायत है। सिंगापुर में जलधाराओं को मनोरंजन के साथ साथ यातायात के रूप में भी उपयोग किया जाता है। देश में भी जल यातायात के नये आयाम की खोज-बीन हो रही है।

 हालांकि ऐसा नहीं है कि देश में जल पार्कों, जल यातायात व नदियों की कहीं कोई कमी है। वैसे देखें तो जर्मन की तुलना में देश में कहीं अधिक लम्बे जल यातायात की व्यवस्थायें दिखती हैं। जल यातायात में घूमने-फिरने का भी आनन्द है आैर सफर भी आसान रहता है क्योंकि जल यातायात में कहीं कोई ट्रैफिक जाम का संकट नहीं होता। इसके साथ ही जल परिवहन व्यवस्था पर्यावरण के काफी कुछ अनुुकूल भी होती है। विशेषज्ञों की मानें तो देश में चौदह हजार पांच सौ किलोमीटर लम्बी जल परिवहन की व्यवस्थायें हैं। जल परिवहन की यह व्यवस्थायें खास तौर यात्रियों के आवागमन के साथ साथ माल ढ़ोने का काम भी जल क्षेत्र से होता है। जल परिवहन की व्यवस्थाओं वाले क्षेत्रों में खास तौर से असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, मुम्बई, गोवा व केरल आदि इलाके खास तौर से माने जाते हैं। दक्षिण भारत  में केरल सहित कई इलाकों में नौकायन के मजे लिये जा सकते हैं। इन इलाकों में नौकाओं की दौड़-प्रतियोगिताओं के आयोजन भी अक्सर होते रहते हैं। देश की बड़ी नदियों में सुमार होने वाली ब्राह्मपुत्र में भी सादिया से घाबरी तक करीब नौ सौ किलोमीटर लम्बी जल परिवहन व्यवस्था है। इसी तरह से दक्षिण भारत में कोल्लम से कोट्टापुरम तक करीब दो सौ पांच किलोमीटर लम्बा जल परिवहन क्षेत्र है। भारत सरकार जल परिवहन व्यवस्थाओं को एक नया आयाम देने पर विमर्श-मंथन कर रही है। जिससे जल परिवहन व्यवस्थाओं को विस्तार दिया जा सके। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से हल्दिया तक गंगा नदी में करीब 1620 किलोमीटर लम्बा जल परिवहन मार्ग विकसित होने की संभावना है।

 इससे एक बार फिर गंगा की गोद में जल तरंगों का भरपूर आनन्द ले सकेंगे। विशेषज्ञों की मानें तो जल परिवहन मार्ग बनाने में करीब बीस हजार करोड़ से अधिक धनराशि खर्च की जायेगी। हालांकि ऐसा नहीं है कि गंगा नदी में कोई पहली बार जल परिवहन की व्यवस्था को आयाम देने की कोशिश की जा रही है क्योंकि ब्रिाटानिया हुकूमत में एशिया की आैद्योगिक राजधानी कानपुर से पश्चिम बंगाल तक जल परिवहन की व्यवस्थायें चलती थीं। चूंकि कानपुर में कपड़ा मिलें बहुतायत में थीं। गंगा नदी के जल मार्ग से कानपुर से कपड़ा कलकत्ता भेजा जाता था। काशी-बनारस में तो सैकड़ों नाव-स्टीमर्स का काफिला गंगा की गोद में अनवरत जल तरंगों के साथ अठखेलियां करता रहता है। देश-दुनिया के लाखों पर्यटक गंगा में नौकायन का आनन्द-लुफ्त उठाने सालों-साल से आते रहते हैं। नोएड़ा हो या लखनऊ, देश के सभी बड़े शहरों में वॉटर पार्कों में जलक्रीड़ा का आनन्द लिया जा सकता है।

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