Friday, 24 February 2017

खरीफ की फसल : रिकॉर्ड 297 मिलियन टन

            राजग सरकार ने लोगों को एक व्‍यवहार्य कैरियर विकल्‍प के रूप में कृषि को अपनाने के लिए प्रोत्‍साहित करने के वास्‍ते स्‍थायी ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए योजनाएं शुरू की है।

   सरकार की योजना देश के सबसे पिछड़े जिलों में बदलाव कर इसे भारत में परिवर्तन का मॉडल बनाना है। इसमें कच्‍छ में गुजरात प्रयोग उपयोगी साबित हो रहा है। इस समय ध्‍यान देश के 100 सबसे पिछडे जिलों पर है, जिनमें से अधिकतर तीन राज्‍यों - बिहार, उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश में है। इन तीन राज्‍यों में ही पूरे देश के 70 सबसे अधिक पिछड़े जिले हैं। पूर्ववर्ती सरकारों ने कई योजनाएं विशेष रूप से सबसे पिछड़े जिलों के लिए शुरू की। वे शायद इसलिए असफल रही, क्‍योंकि उनमें अधिक ध्‍यान गरीबी उन्‍मूलन और अस्‍थायी रोजगार सृजन पर दिया गया था।

             उन्‍होंने ग्रामीण बुनियादी ढांचा तैयार नहीं किया था और सड़क‍ सिंचाई तथा संपर्क के अभाव में कृषि क्षेत्रों को भी लाभदायक नहीं बना सके। प्रधानमंत्री बनने से पहले मुख्‍यमंत्री के तौर पर नरेन्‍द्र मोदी ने भूकंप से तबाह हुए और निराश कच्‍छ के रन को आशावादी भूमि में परिवर्तित कर दिया। नरेन्‍द्र मोदी ने 2003 से 2014 तक गुजरात में दहाई के आंकड़े की कृषि वृद्धि का युग बनाने का नाबाद रिकॉर्ड कायम किया है, जबकि उस समय राष्‍ट्रीय औसत दो प्रतिशत से कम पर था। मोदी ने अगले चार वर्षों में भारतीय किसानों की आय को दोगुना करने की भी प्रतिज्ञा ली है। 

               गुजरात के कृषि क्षेत्र की इस सफल दास्‍तां से प्रेरित होकर मध्‍य प्रदेश छत्‍तीसगढ़ और महाराष्‍ट्र जैसे कई अन्‍य राज्‍यों ने एक ऐसे राज्‍य की तकनीकों को अपनाया है, जिसे कभी भी कृषि प्रधान राज्‍य नहीं माना जाता था। इसका सबसे बड़ा कारण राज्‍य का विशाल सौराष्‍ट्र क्षेत्र है जहां प्रतिवर्ष सूखा पड़ने से लोगों और जानवरों का पलायन होता था। कृषि क्षेत्र की वृद्धि की कार्यनीति बेहतर सिंचाई, खेती के आधुनिक उपकरण, किफायती कृषि ऋण की आसानी से उपलब्‍धता 24 घंटे बिजली और कृषि उत्‍पादों का तकनीक अनुकूल विपणन पर तैयार की गई थी। इन प्रत्‍येक पहलों में बड़ी संख्‍या में नवीन योजनाएं बनाई। उनका कार्यान्‍वयन किया गया था। 

            केंद्र की राजग सरकार उनके अनुभव को पूरे देश में दोहराने की कोशिश कर रही है। कृषि भूमि की स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति का पता लगाने के लिए मृदा जांच कृषि क्रांति की दिशा में एक प्रमुख कदम है, जबकि नीम लेपित यूरिया दूसरा कदम है। इस दिशा में अन्‍य कदम बांध निर्माण, जलाशयों और अन्‍य जल संरक्षण विधियों के जरिए जल संरक्षण, भू-जल स्‍तर बढ़ाना, टपक सिंचाई को बढ़ावा देकर पानी की बर्बादी कम करना, मृदा की उर्वरकता का अध्‍ययन कर फसलों के तरीकों में बदलाव करना, पानी की उपलब्‍धता और बाजार की स्थिति है।

           विद्युतीकरण, पंचायतों में कंप्‍यूटरीकरण, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के जरिए सड़क निर्माण के माध्‍यम से प्रौद्योगिकी उपलब्‍ध कराने से जमीनी स्‍तर पर विकास सुनिश्चित होगा। सड़क निर्माण से प्रत्‍येक गांव के लिए बाजार और इंटरनेट संपर्क उपलब्‍ध कराने में भी मदद मिलेगी। पहली बार देश के इतनी अधिक संख्‍या में गरीब बैंक खाताधारक बने है। जनधन योजना के अंतर्गत लगभग 35 करोड़ नए खाते खोले गए है। यह वित्‍तीय समावेशन गतिशील कृषि अर्थव्‍यवस्‍था का केंद्र है। वित्‍तीय वर्ष में सरकार ने सीधे नकद हस्‍तांतरण के जरिए 50,000 करोड़ रूपये की बचत की है। 50 मिलियन गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए नि:शुल्‍क रसोई गैस प्रदान करने से लाखों परिवारों के जीवन में बदलाव आ रहा है। 

             सबसे अधिक वार्षिक आवंटन और कृषि श्रमिकों की उपलब्‍धता सुनिश्चित कर ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को दोबारा तैयार किया गया है। इनसे श्रमिकों द्वारा अपनी पारंपरिक कृषि श्रम को छोड़कर शहरों की ओर पलायन भी कम होगा। कृषि क्षेत्र लाभदायक कैसे बन सकता है? इस दशक के अंत तक कृ‍षकों की आय दोगुनी कैसे हो सकती है? क्‍या इससे ग्रामीण ऋणग्रस्‍तता और किसानों की आत्‍म हत्‍या को  रोकना सुनिश्चित किया जा सकता है?  हां ये सब संभव हो सकता है अगर प्रधानमंत्री ने जो गुजरात में हासिल किया है उसे राष्‍ट्रीय स्‍तर पर दोहराने में सक्षम होते है तो। मोदी ने आम आदमी को अपने आर्थिक गाथा में महत्‍वपूर्ण स्‍थान पर रखा है। उन्‍होंने भारतीय किसानों के प्रति काफी विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है। 

            अपनी वृद्धि की परिकल्‍पना में कृषि को केंद्रीय मंच पर लाये हैं। कृषि क्षेत्र में परिवर्तन के लिए आवंटन की नई योजनाओं से इस आकर्षक कहानी का पता लगता है। कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के लिए अगले वर्ष 1.87 लाख करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। इसके लिए प्रमुख क्षेत्र मनरेगा तथा सरल कृषि ऋण और बेहतर सिंचाई की उपलब्‍धता है। सिंचाई कोष और डेयरी कोष में काफी वृद्धि की गई है। कृषि ऋण योजना के साथ फसल बीमा योजना के अंतर्गत फसल बीमा के लिए दस लाख करोड़ दिए गए है, जो पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक है। 

          अधिक ऋण से कृषि निवेश को बढ़ावा मिलेगा। खाद्य प्रसंस्‍करण औद्योगिकीकरण के लिए प्रेरणा मिलेगी। इससे किसानों को स्‍थायीत्‍व और बेहतर लाभ प्राप्‍त होगा। इससे ग्रामीण भारत  में रोजगार के अवसर भी बढ़ेगे। इस मौसम में रबी की आठ प्रतिशत से अधिक फसल लगाई गई है। खबरों में कहा गया है कि बेहतर वर्षा के कारण इस बार खरीफ की फसल रिकॉर्ड 297 मिलियन टन हो सकती है।

            बेहतर सड़क निर्माण, 2000 किलेमीटर की तटीय संपर्क सड़क और भारत नेट के अंतर्गत 130,000 पंचायतों को उच्‍च गति के ब्राडबैंड प्राप्‍त होने से निश्चित रूप से कृषि उत्‍पादों की मार्केटिंग में सुधार और बेहतर कीमतें मिलेंगी, जिसके कारण यह एक लाभदायक कैरियर विकल्‍प हो सकता है। इन नीति संचालित, लक्ष्‍य आधारित उपायों के कार्यान्‍वयन से कृषि उत्‍पादन में काफी उछाल आयेगा और सभी के लिए भोजन तथा देश से गरीबी पूर्ण रूप से समाप्‍त करने का सपना साकार होगा।

Thursday, 23 February 2017

भारत में 235 होम्‍योपैथिक अस्‍पताल, 8,000 क्‍लीनिक

                आयुष राज्‍य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने नई दिल्‍ली में ‘होम्‍योपैथिक औषध उत्‍पादों का नियमन : राष्‍ट्रीय एवं वैश्विक रणनीतियों’ पर विश्‍व एकीकृत चिकित्‍सा फोरम का उद्घाटन किया।

            इस अवसर पर आयुष मंत्री ने कहा कि भारत में होम्‍योपैथी ने काफी अच्‍छी तरह से संस्‍थागत स्‍वरूप हासिल कर लिया है। हमारे यहां सार्वजनिक क्षेत्र में 235 होम्‍योपैथिक अस्‍पताल और 8,000 से भी ज्‍यादा क्‍लीनिक हैं। उन्‍होंने कहा कि भारत में ज्‍यादातर उत्‍पादन संयंत्र जीएमपी के अनुरूप हैं। ये गुणवत्‍ता, पैकेजिंग एवं वितरण से संबंधित नीतियों का पालन करते हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि ये सभी उत्‍पादन इकाइयां औषधि और प्रसाधन सामग्री कानून के दायरे में आती हैं। उनके लाइसेंस का नवीकरण नियमित गुणवत्‍ता परीक्षण एवं व्‍यापक निरीक्षण पर निर्भर करता है। 

              श्रीपद नाइक ने कहा कि एक ऐसे उच्‍चस्‍तरीय रणनीतिक आदान-प्रदान प्‍लेटफॉर्म की निश्चित तौर पर जरूरत है, जहां हितधारक अपने मूल कार्य संबंधी संदर्भों से इतर आपस में एकजुट हो सकें। उन्‍होंने कहा कि इस फोरम से इस जरूरत की पूर्ति की जा सकती है। मंत्री ने कहा कि अन्‍य देशों में होम्‍योपैथिक दवाओं की अनुपलब्‍धता और इन दवाओं के लिए कठोर या नियामक प्रावधानों के अभाव के कारण होम्‍योपैथी का अब तक व्‍यापक रूप से उपयोग करना संभव नहीं हो पाया है। 

                 आयुष मंत्रालय में सचिव अजित एम.शरण ने भी इस बात पर खुशी जताई कि सीसीआरएच के जरिये मंत्रालय इस तरह के अनूठे कार्यक्रम का आयोजन करके वैश्विक स्‍तर पर अपनी अगुवाई का प्रदर्शन कर सकता है। सीसीआरएच के महानिदेशक डॉ. राज के.मनचंदा ने उम्‍मीद जताई कि इस फोरम से विश्‍वभर में नियामकीय ढांचे को मजबूत करने के लिए और ज्‍यादा परिचर्चाएं करने को बढ़ावा मिल सकता है। इसके साथ ही इस बात का आश्‍वासन दिया जा सकता है कि होम्‍योपै‍थी के उपयोगकर्ताओं की व्‍यापक पहुंच उच्‍च गुणवत्‍ता वाली होम्‍योपैथिक दवाओं तक संभव हो सकती है। 

             विश्‍व एकीकृत चिकित्‍सा फोरम (डब्‍ल्‍यूआईएमएफ) के निदेशक डॉ. रॉबर्ट वैन हेजलेन के साथ-साथ फोरम के अंतर्राष्‍ट्रीय सलाहकारों ने भी इतने सारे देशों के नियामकों और होम्‍योपैथिक उद्योगपतियों को अपनी चिंताओं एवं विभिन्‍न मसलों को साझा करने के लिए एक प्‍लेटफॉर्म उपलब्‍ध कराने के चुनौतीपूर्ण कार्य को बढि़या ढंग से निभाने के लिए भारत सरकार का धन्‍यवाद किया। इस अवसर पर होम्‍यो‍पैथिक दवाओं के क्षेत्र में सहयोग के लिए होम्‍योपैथिक फार्माकोपिया कन्‍वेंशन ऑफ द यूनाइटेड स्‍टेट्स और भारत के संगठनों अर्थात भारतीय औषधि एवं होम्‍योपैथी के औषधकोश आयोग (पीसीआईएमएंडएच) और केन्‍द्रीय होम्‍योपैथी अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) के बीच एक सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्‍ताक्षर किये गये। 

             इस दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन आयुष मंत्रालय और केन्‍द्रीय होम्‍योपैथी अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) द्वारा किया जा रहा है। जिसमें भारतीय औषधि एवं होम्योपैथी के औषधकोश आयोग और केन्‍द्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की ओर से सहायता दी जा रही है। होम्‍योपैथिक दवा उद्योग की प्रगति में भारत के एक महत्‍वपूर्ण देश के रूप में होने को लेकर बढ़ती अन्‍तर्राष्‍ट्रीय अवधारणा को ध्‍यान में रखते हुए यह अपनी तरह का पहला फोरम है।

             दवा कानून निर्माता, नियामक, निर्माता एवं विभिन्‍न नियामक प्राधिकरणों के फार्माकोपियल विशेषज्ञ, जाने-माने वैज्ञानिक संगठन और 25 देशों के दवा उद्योगों के प्रतिनिधि इस फोरम की दो दिवसीय बैठक में भाग ले रहे हैं, जिसमें होम्‍योपैथिक दवा उद्योग के कार्रवाई योग्‍य पहलुओं की रणनीति तैयार की जाएगी, जिससे इस क्षेत्र में वैश्विक स्‍तर पर अनुकूलन को बढ़ावा मिलेगा। फोरम की उपर्युक्‍त बैठक के दौरान अनेक मसलों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। विभिन्‍न देशों में मौजूदा नियाम‍कीय स्थिति, दुनिया के अनेक महत्‍वपूर्ण देशों में संभावित व्‍यापार अवसर, नियामकीय चुनौतियों के संभावित समाधान, राष्‍ट्रीय एवं वैश्विक स्‍तर पर चुनौतियों से कारगर ढंग से निपटने के लिए ज्ञान एवं नेटवर्क का निर्माण करना इत्‍यादि इन मसलों में शामिल हैं।


Wednesday, 22 February 2017

गर्भवती महिलाओं के लिए चिंता

           महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने बच्चों को जन्म देने के लिए  गर्भवती महिलाओं को सी-सेक्शन सर्जरी के लिए मजबूर करने की अस्पतालों की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में गहरी चिंता व्यक्त की है। 

         विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि सी-सेक्शन सर्जरी सामान्य रूप से कुल डिलिवरी की 10 से 15 प्रतिशत होनी चाहिए। हालांकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण परिवार-4 रिपोर्टों में इस प्रतिशतता को बहुत अधिक बताया गया है। तमिलनाडु में यह प्रतिशतता 34 प्रतिशत और तेलंगाना में 58 प्रतिशत पायी गयी है। निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में यह स्थिति चिंताजनक रूप से बहुत अधिक है। तेलंगाना में, निजी अस्पतालों में सी-सेक्शन डिलिवरी करवाने वाली  महिलाओं की संख्या कुल डिलिवरी की 75 प्रतिशत है। श्रीमती मेनका संजय गांधी को सुबर्णा घोष की एक याचिका प्राप्त हुई है। 

           इस याचिका पर एक लाख से अधिक महिलाओं ने हस्ताक्षर कर रखे हैं। श्रीमती मेनका संजय गांधी ने इस मामले को स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा के साथ उठाया है। उन्होंने सुझाव दिया गया है कि इस खतरनाक प्रवृत्ति में कटौती करने का एक तरीका यह है कि सभी अस्पतालों और नर्सिंग होम में होने वाले सामान्य प्रसवों की तुलना में सी-सेक्शन सर्जरियों के संबंध में जानकारी का सार्वजनिक खुलासा करने का आदेश दिया जाए है। उन्होने यह भी सुझाव दिया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से चिकित्सीय समुदाय के साथ भावी माताओं के साथ-साथ मिलकर एक अभियान चला सकता है। 

            स्वास्थ्य मंत्री को भेजे अपने संदेश में श्रीमती मेनका संजय गांधी ने इस ओर इशारा किया है कि सी-सेक्शन सर्जरी से न केवल माता के स्वास्थ्य पर बल्कि प्रसव के बाद उसके लगातार काम करने की क्षमता पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। अधिकांश मामलों में सी-सेक्शन सर्जरी ने महिला के प्रजनन स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है।

Monday, 20 February 2017

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट बाजार

            भारत ने प्रतिस्‍पर्धी कीमतों पर आसियान देशों को सुरक्षित आईसीटी उत्‍पाद देने की पेशकश की। इसके साथ ही ‘तकनीकी जानकारी’ एवं ‘वैज्ञानिक जानकारी’ साझा करने के अपने संकल्‍प को दोहराया। 

             असल में भारतीय दूरसंचार उत्‍पादों एवं सेवाओं को खरीदे जाने के लिए भारत दीर्घकालिक वित्‍त मुहैया कराने को इच्‍छुक है। यहां ‘भारत टेलीकॉम-2017’ का उद्घाटन करते हुए संचार मंत्री मनोज सिन्‍हा ने कहा कि भारतीय टेलीकॉम कंपनियां किसी भी मेजबान देश में समूचे दूरसंचार परितंत्र को विकसित करने के लिए प्रौद्योगिकियों को साझा करने और संयुक्‍त उत्‍पादन वाले उद्यमों की स्‍थापना करने की इच्‍छुक हैं। 

             आसियान-भारत संबंधों के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित किए गए इस कार्यक्रम में मंत्री ने प्रतिभागी देशों से यह सुनिश्‍चित करने का आग्रह किया कि भारतीय दूरसंचार उत्‍पाद एवं सेवाएं उनकी पहली पसंद होनी चाहिए, क्‍योंकि वे डिजिटल कनेक्‍टिविटी से जुड़े कदम तेजी से उठा रहे हैं। सिन्‍हा ने यह जानकारी दी कि नवंबर, 2015 में आयोजित किए गए 13वें आसियान-भारत शिखर सम्‍मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अरब अमेरिकी डॉलर की ऋण रेखा देने की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की थी, ताकि भारत और आसियान के बीच भौतिक एवं डिजिटल कनेक्‍टिविटी में सहायक परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा सके। 

                   मंत्री ने कहा कि लोगों की जरूरतों की पूर्ति के लिए नई प्रौद्योगिकी एवं उत्‍पाद विकसित करने हेतु दोनों ही पक्षों के पास पूरक कौशल, विशाल बाजार एवं आवश्‍यक क्षमता हैं। सिन्‍हा ने कहा कि भारत के संचार उद्योग ने पिछले दशक के दौरान उल्‍लेखनीय प्रगति की है। 88 के समग्र दूरसंचार घनत्‍व एवं 53 के ग्रामीण दूरसंचार घनत्‍व के साथ भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार नेटवर्क बन गया है।

               दुनिया में न्‍यूनतम मोबाइल दरें भारत में भी होने का उल्‍लेख करते हुए सिन्‍हा ने कहा कि भारत पहले ही अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट बाजार बन गया है, जहां 220 मिलियन से भी ज्‍यादा ब्रॉडबैंड ग्राहक और 450 मिलियन से भी अधिक उपयोगकर्ता (यूजर्स) हैं। इस मामले में भारत केवल चीन से ही पीछे है। दूरसंचार सचिव जे.एस. दीपक ने कहा कि भारत एवं आसियान के बीच साझेदारी की असीम संभावनाएं हैं। जीएसएम, ब्रॉडबैंड, ई-एजुकेशन, टेली-मेडिसिन, आपदा प्रबंधन और क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में इस तरह की विशिष्‍ट साझेदारी को तलाशा जा सकता है, जो दोनों ही पक्षों के लिए फायदेमंद साबित हो।

Sunday, 19 February 2017

‘साइंस एक्‍सप्रेस : देश के 6 लाख से अधिक गांवों तक पहुंच

                 संयुक्‍त रूप से सफदरजंग रेलवे स्‍टेशन से साइंस एक्‍सप्रेस क्‍लाइमेट एक्‍शन स्‍पेशल (एसईसीएएस) के 9वें चरण को हरी झंडी। जहां पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) अनिल माधव दवे एवं केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन रेलवे स्‍टेशन पर उपस्थित थे, केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये इस समारोह को हरी झंडी दिखाई। 

         पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) अनिल माधव दवे ने कहा कि भविष्‍य में साइंस एक्‍सप्रेस को देश के 6.5 लाख गांवों तक पहुंचना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि जब तक रेल गाड़ी जन आंदोलन एवं जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए व्‍यक्तिगत पहल करने एवं कदम उठाने के लिए लोगों को प्रोत्‍साहित करने के एक माध्‍यम के रूप में तब्‍दील नहीं हो जाती, यह जमीनी स्‍तर पर अपने प्रयासों में सफल नहीं होगी। केवल संगोष्ठियों में चर्चा के एक बिन्‍दु के रूप में ही सिमट कर रह जाएगी। दवे ने बताया कि ‘किसी व्‍यक्ति विशेष को क्‍या करना चाहिए, सरकारों को क्‍या करना चाहिए, समाज को क्‍या करना चाहिए, सभी की भूमिका निर्धारित की जानी चाहिए’।

                   मंत्री ने रेखांकित किया कि कार्यों में पारदर्शिता होनी चाहिए। करदताओं के पैसे का प्रत्‍येक हिस्‍सा स‍ही तरीके से उपयोग में लाया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित किए जाने के प्रयास जारी रखे जाना चाहिए कि लोगों तक पैसा पहुंच सके। रेल मंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने कहा कि जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए एक बड़ा खतरा है। इससे सहयोगात्‍मक प्रयासों के जरिये निपटा जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में भारत ने पेरिस सम्‍मेलन के दौरान जलवायु कार्ययोजना की पहल करने में एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

               उन्‍होंने यह भी कहा कि साइंस एक्‍सप्रेस न केवल जलवायु परिवर्तन के बारे में संदेश देगी बल्कि इस ज्‍वलंत मुद्दे पर बहस एवं परिचर्चाओं को भी जन्‍म देगी। साइंस एक्‍सप्रेस 8 सितंबर 2017 तक पूरे भारत में 68 स्‍थलों को कवर करने के लिए 19 हजार किलो मीटर से अधिक की अपनी यात्रा आरंभ करेगी एवं इसके 30 लाख आगंतुकों को आकर्षित करने की उम्‍मीद है। क्‍लाइमेट स्‍पेशल एक्‍शन इस प्रमुख मुद्दे पर जागरुकता का प्रयास करेगी। एक बेहतर भविष्‍य सुनिश्चित करने के हमारे प्रयासों को आगे बढ़ाएगी। 

              इस अवसर पर डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि ‘इसे और बड़ा आंदोलन बनाने के लिए आगे आने वाले वर्षों में 4 और रेल गाडि़यां अवश्‍य चलाई जानी चाहिए’। मंत्री ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन के महत्‍व का इस तथ्‍य से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह एक मात्र थीम है जिसे साइंस एक्‍सप्रेस के लिए दो लगातार वर्षों के लिए चुना गया है। 

            पिछले वर्ष मिशन इनोवेशन एवं स्‍वच्‍छ ऊर्जा पर दो मंत्री स्‍तरीय बैठकों में भारत का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए सैन फ्रांसिस्‍को की अपनी यात्रा का स्‍मरण करते हुए मंत्री ने कहा कि विश्‍व के 21 बड़े देशों ने स्‍वीकार किया कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के नेतृत्‍व में भारत ने स्‍वच्‍छ ऊर्जा, मिशन इनोवेशन के क्षेत्र में अद्वतीय पहल की है। भारत के पास विश्‍व का नेतृत्‍व करने की क्षमता एवं ताकत है। उन्‍होंने यह भी कहा कि सांइस एक्‍सप्रेस को लोगों का आंदोलन बनाने के लिए स्‍कूली छात्रों की भूमिका सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण है। 

        संख्‍याओं की गिनती करते हुए मंत्री ने कहा कि अभी तक 1.5 करोड़ आगंतुक एवं 33801 विद्यालयों के छात्र साइंस एक्‍सप्रेस की यात्रा कर चुके हैं। मंत्री ने केंद्र एवं राज्‍यों के सभी विभागों एवं एजेंसियों तथा साइंस एक्‍सप्रेस के संचालन में रेल गाड़ी में सवार शिक्षकों की भूमिका एवं योगदान की भी सराहना की। 

           इस अवसर पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में सचिव अजय नारायण झा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकीविभाग  में सचिव आशुतोष शर्मा, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में अपर सचिव डॉ. अमिता प्रसाद, रेलवे बोर्ड के मेम्‍बर रवीन्‍द्र गुप्‍ता भी उपस्थित थे। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में सचिव अजय नारायण झा ने स्‍वागत भाषण दिया।

Wednesday, 15 February 2017

भारत का विदेश व्‍यापार 22115.03 मिलियन डॉलर

              निर्यात में सुधार का रुख जनवरी, 2017 के दौरान भी बरकरार रहा। जनवरी, 2017 के दौरान 22115.03 मिलियन अमेरिकी डॉलर (150559.98 करोड़ रुपये) मूल्‍य की वस्‍तुओं का निर्यात किया गया, जो जनवरी, 2016 में हुए निर्यात के मुकाबले डॉलर के लिहाज से 4.32 फीसदी ज्‍यादा है और रुपये के लिहाज से भी 5.61 फीसदी ज्‍यादा है। 

              अप्रैल-जनवरी 2016-17 के दौरान निर्यात कुल मिलाकर 220922.78 मिलियन अमेरिकी डॉलर (1484473.55 करोड़ रुपये) का हुआ, जो पिछले साल की समान अ‍वधि में हुए निर्यात के मुकाबले डॉलर के लिहाज से 1.09 फीसदी और रुपये के लिहाज से 4.50 फीसदी अधिक है। जनवरी, 2017 में गैर-पेट्रोलियम निर्यात 19422.86 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ, जबकि जनवरी, 2016 में इनका निर्यात 19111.38 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ था। इस तरह गैर-पेट्रोलियम निर्यात में इस दौरान 1.6 फीसदी की वृद्धि‍ दर्ज की गई। 

            अप्रैल-जनवरी 2016-17 के दौरान गैर पेट्रोलियम नि‍र्यात 196254.10 मिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ जो पिछले साल की समान अवधि में हुये निर्यात के मुकाबले 2.2 फीसदी अधिक है। विश्व व्यापार संगठन के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2016 के दौरान निर्यात में वृद्धि पिछले साल के समान महीने के मुकाबले संयुक्त राज्य अमेरिका (2.63 फीसदी), यूरोपीय संघ (5.47 फीसदी) और जापान (13.43 फीसदी) में दर्ज की गई है। वहीं, नवंबर 2016 के दौरान निर्यात में कमी पिछले साल के समान महीने के मुकाबले चीन (-1.51 फीसदी) में दर्ज की गई है। 

               आयात, जनवरी, 2017 के दौरान 31955.94 मिलियन अमेरिकी डॉलर (217557.32 करोड़ रुपये) मूल्‍य की वस्‍तुओं का आयात किया गया, जो जनवरी, 2016 में हुए आयात के मुकाबले डॉलर के लिहाज से 10.70 फीसदी ज्‍यादा है और रुपये के लिहाज से 12.07 फीसदी ज्‍यादा है। अप्रैल-जनवरी, 2016-17 के दौरान आयात कुल मिलाकर 307311.86 मिलियन डॉलर (2065656.42 करोड़ रुपये) का हुआ, जो पिछले साल की समान अवधि में हुए आयात के मुकाबले डॉलर के लिहाज से 5.81 फीसदी और रुपये के लिहाज से 2.57 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। 

            कच्‍चे तेल एवं गैर-तेल का आयात,  जनवरी, 2017 के दौरान 8140.83 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्‍य के तेल का आयात किया गया, जो पिछले साल के समान महीने में हुए आयात के मुकाबले 61.07 फीसदी ज्‍यादा है। इसी तरह जनवरी, 2017 के दौरान 23815.11 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्‍य का गैर-तेल आयात होने का अनुमान है, जो पिछले साल के समान महीने में हुए आयात के मुकाबले 0.01 फीसदी ज्‍यादा है। 

             समग्र व्‍यापार संतुलन, कुल मिलाकर व्‍यापार संतुलन में बेहतरी दर्ज की गई है। वाणिज्‍यि‍क वस्‍तुओं एवं सेवाओं को एक साथ ध्‍यान में रखते हुए समग्र व्‍यापार घाटा अप्रैल-जनवरी, 2016-17 के दौरान 38073.08 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रहने का अनुमान है, जो अप्रैल-जनवरी 2015-16 में दर्ज किए गए 54187.74 मिलियन अमेरिकी डॉलर के व्‍यापार घाटे से 29.7 फीसदी कम है।

Tuesday, 14 February 2017

दिल्ली वसंतोत्सव : 80 देशों के 6500 से अधिक विदेशी खरीददार

             दुनिया के सबसे बड़े हस्तशिल्प और उपहार मेले के 43वें संस्करण, आईएचजीएफ- 2017 के दिल्ली दिल्ली वसंतोत्सव का आरंभ 16 फरवरी, 2017 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित इंडिया एक्सपो सेंटर एंड मार्ट, ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे में होगा। 

          लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड ने इसे एक ही छत के नीचे लगने वाले हस्तकला प्रदर्शकों को दुनिया के सबसे बड़े समूह के रूप में मान्यता दी है। ईपीसीएच के कार्यकारी निदेशक राकेश कुमार ने बताया कि यह मेला 16 से 20 फरवरी, 2017, तक आयोजित होने वाला यह मेला 1,97,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला होगा। देश भर से 900 स्थायी बाजारों (मार्ट) सहित 3,000 से अधिक प्रदर्शक, चौदह उत्पाद श्रेणियों से संबंधित उत्पादों की एक विस्तृत श्रृंखला को प्रदर्शित करेंगे जिनमें घरेलू बर्तन, होम फर्निशिंग, फर्नीचर, उपहार और सजावटी समान, लैंप और लाइटिंग क्रिसमस और उत्सवी सजावटी समान, फैशन गहने और सामान, स्पा, कारपेट और कालीन, बाथरूम सामान, उद्यान उपकरण, शैक्षिक खिलौने और गेम्स, हस्तनिर्मित कागज उत्पाद और स्टेशनरी तथा चमड़े के बैग शामिल हैं।

                अपनी आवश्यकताओं के अनुसार इस मेगा मेले में 80 देशों से ज्यादा देशों के 6500 से अधिक विदेशी खरीददार, भारतीय घरेलू खरीददारों के आने की उम्मीद है। प्रदर्शनी के स्थान में बढोत्तरी और आगंतुकों की संख्या में वृद्धि से यह संकेत मिलता है कि यह मेला भारत के साथ साथ अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के खरीददारों के लिए भी कितना महत्तवपूर्ण है।

              यह मेला यह भी दर्शाता है कि विदेशी और देशी खरीददारों के लिए कितना महत्वपूर्ण है जहां उनके लिए एक छत के नीचे घरेलू संबंधी, लाइफस्टाइल, फैशन और कपड़ा उत्पाद उपलब्ध कराए जाते हैं। घर, जीवन शैली, फैशन और वस्त्र उद्योग के लिए दुनिया के सबसे बड़े शो में कच्चे माल से निर्मित 2,000 से अधिक उत्पादों की एक विस्तृत श्रृखंला पेश की जाएगी जिसमें  लकड़ी, धातु, बेंत और बांस, प्राकृतिक रेशों से बने वस्त्र, ऊन, रेशम, जूट, पत्थर, चमड़े, टेराकोटा, लाख और वनस्पति रंग शामिल हैं। 

            इस शो के मुख्य आकर्षणों के तहत उत्तर पूर्वी क्षेत्र और जोधपुर मेगा क्लस्टर के उत्पादों की एक विषयगत प्रदर्शनी प्रस्तुत की जाएगी। लकड़ी के उत्पादों, लकड़ी के हस्तशिल्प वस्तुओं पर एक मंडप इसमें लगा रहेगा। उत्पादन तकनीक, कौशल विकास, जीएसपी योजना, प्रवृत्तियां और पूर्वानुमान, केंद्रीय बजट और आगामी जीएसटी पर चर्चा करने के लिए संबंधित जानकारीपूर्ण सेमिनार भी इस दौरान आयोजित किए जाएंगे। घरेलू खुदरा बाजार में अभूतपूर्व वृद्धि को साकार करने के उद्देश्य से परिषद ने ऑटम 2014 के दौरान 

               घरेलू खुदरा व्यापारियों और ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए आईएचजीएफ -दिल्ली मेले के दरवाजे खोल दिये थे। तब से, प्रमुख खुदरा ब्रांड और ई कॉमर्स कंपनियां जैसे- गुड अर्थ, फर्नीचर रिपब्लिक, फैब इंडिया, वेस्ट साइड, आर्चीज लिमिटेड, डीएलएफ ब्रांड्स लिमिटेड, ऋहोम, शॉपर्स स्टॉप, लाइफस्टाइल ग्रुप, अरबन लैडर.कॉम, पीप्पेरफ्राई.कॉम, अजियो.कॉम, फैब फर्निश.कॉम, शॉपक्लूज.कॉम सहित अन्य दूसरी कंपनिया इस मेले में नियमित रूप से भाग ले रही हैं। इन कंपनियों ने मेले में भाग लेने के लिए खुद का पंजीकरण कराया है। मीडिया के साथ बातचीत में ईपीसीएच के ईडी राकेश कुमार ने बताया कि 1994 में अपनी स्थापना के बाद से, आईएचजीएफ- दिल्ली मेले ने भारत के हस्तशिल्प व्यापार मे एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 

          इसने मेले में न केवल बड़ी संख्या में भारतीय निर्यातकों को भाग लेने के लिए सक्षम बनाया है बल्कि विदेशी खरीदारों को भी एक ही स्थान पर एक ही छत के नीचे उनकी आवश्यकता की चीजें मुहैया करायी हैं। उन्होंने कहा कि आईएचजीएफ द्वारा निभायी गयी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका से देश की विदेशी मुद्रा आय में बढ़ोत्तरी हुई है और इससे रोजगार भी पैदा हुए हैं। 

          ईपीसीएच के चैयरमैन दिनेश कुमार ने कहा कि यह हकीकत है कि अमेरिका और यूरोप भारत के प्रमुख खरीददार हैं लेकिन इसके बावजूद ईपीसीएच अब अपना ध्यान लातिन अमेरिका, मध्य एशिया, अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे नए उभरते बाजारों पर केंद्रित कर रहा है।

              अप्रैल 2016 से दिसंबर 2016 के दौरान हस्तशिल्प के निर्यात में 12.10 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी, जो रूपये के संदर्भ में 17,939.05 रुपये करोड़ है। डॉलर के संदर्भ 2673.48 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात के साथ इसमें 8.25ऽ की वृद्धि दर्ज की गयी। ईडी, ईपीसीएच ने बताया कि वर्ष 2016-17 के लिए निर्यात लक्ष्य 3600 मिलियन डॉलर (23,560.00 करोड़ रुपये) का रखा गया है और परिषद को उम्मीद है कि यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाएगा। हस्तशिल्प निर्यात के विकास को बढ़ावा देने के लिए ईपीसीएच देश की एक नोडल एजेंसी है।

Monday, 13 February 2017

कोयला का 391.10 मिलियन टन उत्‍पादन, 1.6 प्रतिशत वृद्धि

                           कोयला मंत्रालय द्वारा पिछले वर्ष की प्रगति को और आगे बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं। 2015 में हुई कोयला खदानों की नीलामी के अनुरूप अब तक आवंटित 83 कोयला खदानों की नीलामी/आवंटन से खदान की जीवन अवधि/पट्टे की अवधि में 3.95 लाख करोड़ रूपये से अधिक की प्राप्‍ति होने का अनुमान है। 

           अक्‍टूबर, 2016 तक इन कोयला खदानों की वास्‍तविक राजस्‍व उगाही 2,779 करोड़ रूपये (रॉयल्‍टी, चुंगी तथा करों को छोड़कर) रही। 9 कोयला ब्‍लॉकों की विद्युत क्षेत्र को की गई नीलामी से उपभोक्‍ताओं को बिजली शुल्‍क में कमी के संदर्भ में लगभग 69,310.97 करोड़ रूपये के लाभ की संभावना है। देश में अप्रैल-नवंबर, 2016-17 के दौरान कच्‍चे कोयले का उत्‍पादन 391.10 मिलियन टन हुआ। पिछले वर्ष की इसी अवधि में कच्‍चे कोयले का उत्‍पादन 385.11 मिलियन टन हुआ था। अप्रैल-नवंबर ,2016 के दौरान कोयला उत्‍पादन में 1.6 प्रतिशत की समग्र वृद्धि दर्ज की गई। 30.11. 2016 को एनएलसीआईएल की लिग्‍नाइट खनन क्षमता 30.6 मिलियन टन वार्षिक रही।

                कंपनी ने अपनी विद्युत उत्‍पादन क्षमता 4275.50 मेगावाट (मार्च ,2016 में) से बढ़ाकर 4293.50 मेगावाट कर ली। इसमें 10 मेगावाट सौर विद्युत और 43.50 मेगावाट पवन विद्युत शामिल है। कोयला मंत्रालय ने देश में कोयला आयात में कमी लाने पर विशेष बल दिया है। सरकार ने 2015-16 में 20,000 करोड़ रूपये और चालू वर्ष के पहले 4 वर्षों में 4,844 करोड़ रूपये की बचत की है। इस मोर्चे पर किए जा रहे प्रयासों से मार्च 2017 तक आयातित कोयले की 15.37 एमटी मात्रा कम हो जाएगी। प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अनुरूप कोयला मंत्रालय ने अक्‍टूबर 2016 में ई-ऑफिस एप्‍लीकेशन को पूरी तरह लागू किया। अब मंत्रालय का फाइल कार्य इलेक्‍ट्रॉनिक तरीके से हो रहा है। 

                     डिजिटीकरण प्रक्रिया से मंत्रालय के कामकाज में पारदर्शिता और दक्षता आई है। इससे फाइलों की गति में तेजी आएगी। तेजी से निर्णय लिए जा सकेंगे। इससे फाइलों/रिकॉर्डों की तेजी से वापसी हो सकेगी। फाइलों और रिकॉर्डों के गुम या लापता होने की गुंजाइश कम रहेगी। वर्ष के दौरान अनेक आईटी कार्यक्रम शुरू किए गए। इनमें प्रत्‍यक्ष लाभांतरण के माध्‍यम से सीएमपीएफओ में ई-सेवा लागू करना, सीएमपीएफ में कंप्‍यूट्रीकरण-ई-सेवाएं (आंतरिक विकास), आधार संख्‍या को सीएमपीएफ खाता संख्‍या मानना, सीएमपीएफ योजना के अंतर्गत ठेके के श्रमिकों को कवर करना, शिकायत निवारण प्रणाली का नवीकरण तथा बाधारहित पेंशन के लिए स्‍व-प्रमाणित जीवन प्रमाण-पत्र शामिल हैं। 

                 कोल इंडिया लिमिटेड  (सीआईएल) के छोटे एवं मझौले क्षेत्र के उपभोक्‍ताओं के लिए कोयला आवंटन निगरानी प्रणाली (सीएएमएस) तथा घरेलू कोयले के उपयोग में लचीलापन  लाने के लिए कोल मित्र वेब पोर्टल जैसे अनेक नए पोर्टल लांच किए गए ताकि छोटे तथा मझौले क्षेत्र के लिए कोयला वितरण में पारदर्शिता लाई जा सके। कारोबार सहज बनाया जा सके। वाणिज्‍यिक खनन की दिशा में पहले कदम के रूप में राज्‍य के सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों द्वारा कोयले की बिक्री/वाणिज्‍यिक खनन की आवंटन के लिए 16 कोयला खदानों की पेशकश की गई। इन 16 कोयला खदानों में से 8 कोयला संपदा को कोयला खदान वाले मूल राज्‍य के लिए निर्धारित किया गया जबकि शेष कोयला खदानों को गैर-अतिथि राज्‍यों की सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों के लिए रखा गया। 

                  बाद में 5 कोयला खदानों का कोयला वाले राज्‍यों के सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों को आवंटित किया गया। 2 कोयला खदान गैर-अतिथि राज्‍यों के सार्वजनिक प्रतिष्‍ठानों को कोयले की बिक्री के लिए आवंटित किया गया। जनवरी, 2016 से नवंबर, 2016 की अवधि के दौरान कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम 2015 के अंतर्गत विद्युत क्षेत्र के लिए 3 तथा गैर-नियमन क्षेत्र के लिए 2 यानी 5 कोयला खदानों के मामले में आवंटन समझौते पर हस्‍ताक्षर किए गए। एक कोयला खदान यानी अमेलिया कोयला खदान का आवंटन बिजली के अंतिम उपयोग के लिए किया गया है। अब तक आवंटित 83 कोयला खदानों की नीलामी और आवंटन से खदान जीवन अवधि/पट्टे की अवधि में 3.95 लाख करोड़ रूपये से अधिक की प्राप्‍ति होगी। यह राशि पूरी तरह कोयला संपदा संपन्‍न राज्‍यों को मिलेगी। अक्‍टूबर, 2016 तक इन कोयला खदानों से 2,779 करोड़ रूपये (रॉयल्‍टी,चुंगी शेष तथा करों को छोड़कर) 2,779 करोड़ रूपये की वास्‍तविक राजस्‍व की प्राप्‍ति हुई।

                   विद्युत क्षेत्र को 9 कोयला ब्‍लॉकों की नीलामी से विद्युत शुल्‍क में कमी आई और इस कमी से उपभोक्‍ताओं को 69,310.97 करोड़ रूपये की लाभ की संभावना है। देश में 2016-17 के अप्रैल-नवंबर के दौरान 391.10 मिलियन टन कच्‍चे कोयले का उत्‍पादन हुआ पिछले वर्ष की इसी अवधि में 385.11 मिलियन टन कच्‍चा कोयले का उत्‍पादन हुआ था। अप्रैल-नवंबर, 2016 के दौरान कोयले के उत्‍पादन में 1.6 प्रतिशत की समग्र वृद्धि हुई। 2015-16 के दौरान कोयले के उत्‍पादन में देखी गई उच्‍च वृद्धि के कारण 01 अप्रैल, 2016 को ताप विद्युत परियोजना में 27 दिनों का कोयला भंडार जमा हो गया। सीआईएल ने 57.7 एमटी के प्रारंभिक स्‍टॉक के साथ चालू वित्‍त वर्ष (2016-17) की शुरूआत की। इसके परिणाम स्‍वरूप खदान निकास पर कोयले भंडारों के एकत्रीकरण की समस्‍या उत्‍पन्‍न हुई है। 

              कोयले के एकत्रित स्‍टॉक को समाप्‍त करने के लिए स्‍पॉट ई-नीलामी और लिंकेज को तर्कसंगत बनाने जैसे विशेष उपाय किए गए हैं। इस तरह 323.64 मिलियन टन उत्‍पादन की तुलना में अप्रैल-नवंबर, 2016 के दौरान 340.03 मिलियन टन कोयला सीआईएल द्वारा रवाना किया गया। एमसीएल तथा सीसीएल में कानून और व्‍यवस्था की समस्‍या के कारण उत्‍पादन और उठाव पर असर पड़ा है। इस वर्ष कोयला खदान वाले अधिकतर क्षेत्रों में भारी वर्षा हुई और इससे जून और सितंबर के बीच उत्‍पादन में कमी आई। कोयला कम्‍पनियों का उत्‍पादन नौ प्रतिशत की दर से बढ़ा है और आत्‍मनिर्भर होने के लिए पर्याप्‍त कोयला उपलब्‍ध है। 

               आयातित कोयले का प्रतिस्‍थापन घरेलू कोयले से करने के कारण विदेशी मुद्रा की बचत होती है। देश ने वर्ष 2015-16 में बीस हजार करोड़ रुपये बचाया। चालू वर्ष के पहले चार महीनों 4,844 करोड़ रुपये की बचत हुई। इस मोर्चे पर किए गए प्रयास से मार्च 2017 तक 15.37 एमटी आयातित कोयले की जगह घरेलू कोयला लेगा। प्रति वर्ष 4200 टन से कम आवश्‍यकता वाले मझोले और छोटे उद्योगों के लिए नई कोयला वितरण नीति (एनसीडीपी), 2007 के अन्‍तर्गत राज्‍य नामित एजेंसियों से कोयला लेना होगा। नई कोयला वितरण नीति (एनसीडीपी), 2007 में 27.9.2016 को संशोधन किया गया। राज्‍य नामि‍त एजेंसियों से कोयला लेने की मात्रा प्रतिवर्ष 4200 टन से बढ़ाकर 10 हजार टन कर दी गई। एनसीडीपी, 2007 में दिए गए नाम छोटे  और मध्‍यम क्षेत्र को संशोधित कर छोटे, मध्‍यम तथा अन्‍य कर दिया गया है। 

               छोटे, मध्‍यम तथा अन्‍य उद्योगों को कोयला वितरण करने के लिए प्रतिवर्ष आठ मिलियन टन निर्धारित किया गया है। इस मात्रे का बंटवारा पिछले उपयोग को देखते हुए विभिन्‍न राज्‍यों और केन्‍द्रशासित प्रदेशों में किया गया है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के छोटे तथा मध्‍यम उपभोक्‍ताओं के लिए कोयला आवं‍टन निगरानी प्रणाली (सीएएमएस) से संबंधित वेब पोर्टल को कोयला, विद्युत, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) द्वारा 17 मार्च, 2016 को किया गया ताकि कारोबार में सहजता आए और एसएमई क्षेत्र को कोयला वितरण में पारदर्शिता लाई जा सके। कोल मित्र वेब पोर्टल की डिजाइन घरेलू कोयला उपयोग में लचीलापन के उद्देश्‍य से की गई है। 

               ऐसा सुरक्षित भंडार में से अधिक लागत सक्षम राज्‍यों/केन्‍द्र के स्‍वामित्‍व वाले या निजी क्षेत्र के उत्‍पादन स्‍टेशनों को कोयला अंतरण के माध्‍यम से किया जाता है। परिणाम स्‍वरूप उत्‍पादन लागत में कमी आती है। अन्‍तत: उपभोक्‍ताओं को बिजली की कम कीमत चुकानी पड़ती है। वेब पोर्टल का इस्‍तेमाल राज्‍य/केन्‍द्र की उत्‍पादन कम्‍पनियों द्वारा किया जाएगा ताकि तय मानक के बारे में सूचना तथा पिछले महीने के लिए बिजली के परिवर्तनीय शुल्‍क के साथ-साथ अतिरिक्‍त उत्‍पादन के लिए उपलब्‍ध मार्जिन प्रदर्शित हो। इसका उद्देश्‍य कोयल अंतरण के लिए उपयोग स्‍टेशनों की सहायता करना है। पोर्टल पर प्रत्‍येक कोयला आधारित स्‍टेशन को संचालन और वित्‍तीय मानकों, मात्रा तथा बिजली संयत्र को कोयला सप्‍लाई को स्रोत और खदान से बिजली संयंत्र की दूरी का डाटा होस्‍ट किया जाएगा।

                 कोयला लिंकेज को और तर्कसंगत बनाना तथा तीन फेज प्रगति को लागू करना। परिवहन लागत का अधिकतम लाभ लेने के उद्देश्‍य से वर्तमान कोयला संसाधनों तथा इन संसाधनों की संभाव्‍यता की विस्‍तृत समीक्षा के लिए जून 2014 में अंतर मंत्रालय कार्यबल का गठन किया गया। कार्यबल ने कोयला विद्युत, रेल, इस्‍पात, शिपिंग मंत्रालय तथा डीआईपीपी, सीईए, एनटीपीसी, सीआईएल, एससीसीएल, सहायक कोयला कम्‍पनियों तथा केपीएमजी के प्रतिनिधियों से अनेक दौर की बातचीत की। विद्युत क्षेत्र में कोयला लिंकेज को तर्कसंगत बनाने  से खदान से बिजली संयंत्र तक कोयला पहुंचाने की परिवहन लागत में कमी आई है और कोयला आधारित बिजली उत्‍पादन में सक्षमता बढ़ी है। विभिन्‍न खदानों से उपलब्‍धता के आधार पर कोयला लिंकेज आवंटन किया गया है। 

              तर्कसंगत बनाने की प्रक्रिया के भाग के रूप में 2015-16 के अंत तक 1,512.85 करोड़ रुपये की संभावित बचत की क्षमता वाले 29.818 एमटी कोयला लिंकेज को तर्कसंगत बनाया गया है। एनटीपीसी के आतंरिक संयंत्रों तथा इसकी संयुक्‍त उद्यम कम्‍पनियों को पुनर्गठित करने के लिए सीआईएल द्वारा एनटीपीसी के साथ कार्य किया गया। 8.05 एमटी रेल समर्थित टीपीपी से खदान टीपीपी के सुधार से 800 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत होगी। उत्‍तरप्रदेश राज्‍य के 1.459 एमटी कोयला को तर्कसंगत रूप दिया गया। इससे 60.15 करोड़ रुपये की सालाना बचत होने की संभावना है। 

             सीआईएल ने महाराष्‍ट्र राज्‍य (महाजेनको) की तीन इकाइयों की 1 एमटी कोयला को सुनयोजित रूप दिया गया। इससे 90.57 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत होगी। सरकार ने नवाचारी कदम उठाते हुए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उत्‍पादकों को ईंधन उपयोग सुनिश्चित करके बिजली की कीमत कम करने के लिए कोयले सप्‍लाई की अदला-बदली करने की अनुमति दे दी है। 

          यह सुविधा भविष्‍य में अन्‍य कोयला खपत वाले उद्योगों को भी मिल सकती है। निजी और सरकारी कम्‍पनियों के बीच सप्‍लाई अदला-बदली का उद्देश्‍य उद्योग द्वारा मुख्‍य रूप से बिजली क्षेत्र द्वारा घरेलू कोयले की खपत में सुधार करना है, क्‍योंकि उत्‍पादन अधिक हो रहा था और बिजली संयंत्रों के ट्रेक्‍शन के लिए मांग में कमी आ रही थी।

Sunday, 12 February 2017

2018 तक कुष्ठ रोग, 2020 तक खसरा व 2025 तक तपेदिक का उन्मूलन

             विकास लक्ष्यों के अनुसार दुनिया में मातृत्व मृत्यु दर अनुपात में एक लाख प्रसव के आधार पर 70 प्रतिशत तक की कमी लाई जाएगी। 1990 में 560 के मातृत्व मृत्यु के अनुपात की तुलना में देश ने 2011 में इसे घटाकर 167 कर दिया। 1990 में 5 साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 126 थी जो 2014 में 39 हो गई। 2017 के बजट के प्रकाश में सरकार ने शिशु मृत्यु दर 2014 में 39 से कम करके 2019 तक 28 तक लाने की योजना बनाई है। 

            इसी प्रकार 2011 की मातृत्व मृत्यु दर 167 को कम करके 2020 तक 100 तक करने का लक्ष्य है। देश के 6 राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में आज भी यह चुनौती बनी हुई है। इन राज्यों में देश की कुल आबादी का 42 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है और वार्षिक आबादी वृद्धि में 56 प्रतिशत हिस्सा इन राज्यों का है। भारत के जनस्वास्थ्य सुविधा और प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं का एक विशाल संगठन विकसित किया है। 

                 प्राथमिक और दूसरे स्तर के अस्पतालों के लिए बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन विकास पर जोर दिया जा रहा है। 2017 के बजट में 1.5 लाख स्वास्थ्य उप केंद्रों को स्वास्थ्य केंद्रों में उन्नत करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा देशभर में गर्भवती महिलाओं के लिए एक योजना चलाई जाएगी जिसके तहत प्रत्येक गर्भवती महिला को 6 हजार रुपये प्रदान किए जायेंगे। ये योजनाएं मुफ्त दवा, मुफ्त निदान और मुफ्त आपातकालीन सेवाओं के साथ चलेंगी। यदि प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली बेहतर रूप से काम करे तो ऊपर के अस्पतालों पर बोझ कम होता है। 2017 के बजट में इस पर ध्यान दिया गया है। 

                  सरकार देशभर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे कई संस्थान खोलने पर विशेष जोर दे रही है। 2017 के बजट में झारखंड और गुजरात में 2 नए आयुर्विज्ञान संस्थान खोले जाने का प्रस्ताव किया गया है। इस कदम से सार्वजनिक क्षेत्र में शानदार चिकित्सा सेवा संभव हो जाएगी। पहले, दूसरे और तीसरे स्तर की चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों का प्रावधान किया जा रहा है। इसके तहत सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने का रोडमैप तैयार होगा। 

            अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे अस्पताल खोलना काफी जटिल है क्योंकि इसके तहत सर्वोच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। वरिष्ठ विशेषज्ञों और सक्षम व्यक्तियों को खोजना और उन्हें संस्थान से जोड़े रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान देश और विदेश में जाना-माना संस्थान है जिसकी स्थापना 6 दशकों पहले हुई थी। स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्र में यह एक शानदार संस्थान है जिसकी मिशाल अन्यत्र नहीं मिलती। यह संस्थान चिकित्सा के अलावा शिक्षा और अनुसंधान में भी अग्रणी है। 

                   मौजूदा बजट में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का विशेष उल्लेख किया गया है। इसके विस्तार के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि भारतीय समाज के कल्याण का महान कार्य किया जा सके। उल्लेखनीय है कि तमाम रोगों का इलाज कराते – कराते लाखों लोग गरीब हो जाते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान इस दिशा में महत्वपूर्ण सहायता कर सकता है। भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं में मानव संसाधन अत्यंत महत्वपूर्ण घटक है। 2017 के बजट में प्रति वर्ष स्नात्कोत्तर की 5 हजार सीटों की व्यवस्था बनाए जाने का प्रस्ताव है ताकि दूसरे और तीसरे स्तर की स्वास्थ्य सुविधा को मजबूत करने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक मिल सकें। 

                 भारत सरकार ने चिकित्सा सुविधा और अभ्यास संबंधी नियमों में बदलाव लाने के लिए भी आवश्यक कदम उठाने का संकेत दिया है। देश में बढ़ी हुई स्नात्कोत्तर सीटों की उपलब्धता और एक केंद्रीय प्रवेश प्रणाली जैसे सुधारों ने चिकित्सा सुविधा की गुणवत्ता बढ़ाई है। स्नात्कोत्तर चिकित्सा शिक्षा का विस्तार सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि इनकी कमी के कारण देश में न सिर्फ विशेषज्ञ चिकित्सों का अभाव हो जाता है बल्कि मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी हो जाती है। स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए नीति बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरा काम है। इसकी पृष्ठ भूमि में यह बात उजागर होती है कि लोगों के पास स्वास्थ्य पर पैसा खर्च करने की क्षमता कम है और स्वास्थ्य सेवाएं बहुत महंगी हैं। 

               स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति मासिक आय के अनुपात में ग्रामीण इलाकों में 6.9 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 5.5 प्रतिशत लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। भारत में सरकारी अस्पतालों में प्रसव, नवजात और शिशुओं की देखभाल जैसी सेवाएं मुफ्त दी जाती हैं लेकिन इसके बावजूद अपनी जेब से भी बहुत पैसा देना पड़ता है। स्वास्थ्य नीति के तहत अगले पांच सालों में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत जनस्वास्थ्य पर खर्च किया जाएगा जो मौजूदा 1 प्रतिशत के स्तर से अधिक है। 2017 के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उल्लेखनीय इजाफा किया गया है। इसमें 2016-17 में 3706.55 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 47352.51 करोड़ रुपये कर दिया गया है। 

             इस प्रकार इसमें 27 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की गई है। इसके अलावा सरकार ने 2017 तक काला-अजार और फाइलेरिया, 2018 तक कुष्ठ रोग, 2020 तक खसरा और 2025 तक तपेदिक का उन्मूलन करने की कार्ययोजना तैयार की है। मेडिकल कॉलेजों और चिकित्सा अनुसंधान के बीच सहयोग को मजबूत किया गया है। भारत में सरकार द्वारा वित्त पोषित 32 स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग संस्थान हैं। इस संबंध में नीति, चिकित्सा उपकरणों में अभिनव प्रयोग, बुनियादी अनुसंधान, सस्ते अभिनव प्रयोग, नई दवाओं की खोज, अनुसंधान में भागीदारी और डेटाबेस का सृजन पर जोर दिया जा रहा है। 1970 के दशक में सबसे लिए स्वास्थ्य नामक नीति शुरू की गई थी, जो आज भी प्रासांगिक है।

Tuesday, 7 February 2017

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान : एक सींग वाले गैंडे की जनसंख्या में वृद्धि

                काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना वन्य जीव संरक्षण क्षेत्र है। 1905 में इसे पहली बार अधिसूचित किया गया था। 1908 में इसका गठन संरक्षित वन के रूप में किया गया, जिसका क्षेत्रफल 228.825 वर्ग किलोमीटर था।

             इसका गठन विशेष रूप से एक सींग वाले गैंडे के लिए किया गया था, जिसकी संख्या तब यहां लगभग 24 जोड़ी थी। 1916 में काजीरंगा को एक पशु अभयारण्य घोषित किया गया था। 1938 में इसे आगंतुकों के लिए खोला गया था। 1950 में इसे एक वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया। 429.93 वर्ग किलोमीटर के साथ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत 1974 में काजीरंगा को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गया, जो फिलहाल बढ़कर अब 899 वर्ग किमी. हो गया है।

                 काजीरंगा राष्ट्रीय पांच बड़े नामों के लिए प्रसिद्ध है, जिनमें गैंडा (2,401), बाघ (116), हाथी (1,165), एशियाई जंगली भैंस और पूर्वी बारहसिंघा (1,148) शामिल हैं। यह दुनिया में एक सींग वाले गैंडों की सबसे बड़ी आबादी वाला निवास स्थान है। विश्व में एक सींग वाले गैंडे की पूरी आबादी का लगभग 68ऽ  भाग यहां मौजूद है। बाघों की बात की जाए तो यहां उनका घनत्व विश्व में सबसे सर्वाधिक घनत्वों में से एक है। यहां पूर्वी बारहसिंघा हिरण की लगभग पूरी आबादी रहती है। 

              इन पांच बड़े नामों के अलावा, काजीरंगा विशाल पुष्प और जीव जैव विविधता का समर्थन करता है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान उत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी पर है, जिसके पूर्व में गोलाघाट जिले की सीमा से लेकर पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी पर कालीयाभोमोरा पुल स्थित है। एक तरफ नदी में आने वाली वार्षिक बाढ़ का पानी पोषण लाता है जो एक उच्च उत्पादक बायोमास के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाता है, लेकिन दूसरी तरफ बाढ़ से हुए कटाव के कारण मूल्यवान और प्रमुख निवास स्थानों का काफी नुकसान हो जाता है। 

               काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के क्षेत्रों में कई अधिसूचित जंगली और संरक्षित क्षेत्र हैं, जिनमें पनबारी रिजर्व फॉरेस्ट और दियोपहर प्रस्तावित रिजर्व फॉरेस्ट  गोलाघाट जिले में, नगांव जिले में कुकुराकाता हिल रिजर्व फॉरेस्ट, बागसेर रिजर्व फॉरेस्ट, कामाख्या हिल रिजर्व फॉरेस्ट और दियोसुर हिल प्रस्तावित रिजर्व फॉरेस्ट, सोनितपुर जिले में भूमुरागौरी रिजर्व फॉरेस्ट, कार्बी आंगलोंग जिले में उत्तर कर्बी आंगलोंग वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। काजीरंगा में गैंडों का अवैध शिकार हमेशा से ही एक गंभीर खतरा रहा है। लेकिन, स्थानीय लोगों के साथ समन्वय स्थापित करके पार्क के अधिकारियों द्वारा उठाए गए उत्कृष्ट संरक्षण उपायों की वजह से गैंड़ों की वर्तमान आबादी 2401 में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

                  काजीरंगा में गैंडे के अवैध शिकार का प्रमुख कारण पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैंडे के सींगों की कीमत में आई वृद्धि है। दीमापुर-मोरेह इसके लिए एक आसान मार्ग है जहां से इस क्षेत्र में अवैध हथियारों की उपलब्धता से गैंड़े का अवैध शिकार किया जाता है। राष्ट्रीय उद्यान देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। वर्ष 2015-16 के दौरान राष्ट्रीय उद्यान में कुल 1,62,799 पर्यटकों ने दौरा किया, जिनमें 11,417 विदेशी पर्यटक शामिल थे। पर्यटकों की इस संख्या से 4.19 करोड़ रुपये का प्रवेश शुल्क राजस्व के रूप में अर्जित किया गया।

             शिकार रोकने के उपाय, पार्क के अधिकारियों ने अवैध शिकार को रोकने के लिए सभी प्रयास किए हैं जिनमें कठोर गश्त और फील्ड ड्यूटी भी शामिल हैं। बुनियादी ढांचे की कमी, उपकरणों की कमी, स्टाफ की कमी, एक बहुत ही असुरक्षित सीमा, एक बहुत ही प्रतिकूल इलाका होने के बावजूद भी अवैध शिकार को रोकने के हरसंभव प्रयास किए गए हैं। 

                  काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क को वर्ष 2007 में एक टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। तभी से इसे भारत सरकार के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के अधीन आने वाले "सीएसएस प्रोजेक्ट टाइगर" के तहत पर्याप्त रूप में वित्तीय सहायता मिल रही है। वर्ष 2016-17 के दौरान प्राधिकरण को 1662.144 लाख (केंद्रीय हिस्सेदारी 1495.03 लाख रूपये) की मंजूरी दी गयी। काजीरंगा में 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत एनटीसीए द्वारा प्रदान की गयी निधि से इलेक्ट्रॉनिक आई के रूप में एक इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली को स्थापित किया गया है। 

                   इस योजना के तहत सात लंबे टावरों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया गया है और नियंत्रण कक्ष से 24न्7 निगरानी रखने वाले थर्मल इमेंजिक कैमरे भी लगाएं हैं। असम की राज्य सरकार द्वारा गैंडों के अवैध शिकार सहित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिए नीति और विधायी परिवर्तन कड़ाई से लागू करने हेतु वन्यजीव (संरक्षण) (असम संशोधन) अधिनियम, 2009 पेश किया गया। अपराध के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत सजा में बढ़ोत्तरी कर इसे न्यूनतम 7 साल कर दिया गया है। न्यूनतम जुर्माना 50 हजार से कम नहीं है। 

                वर्ष 2010 में सरकार ने 1973 सीआरपीसी की की 197 (2) धारा के तहत वन कर्मचारियों को प्रतिरक्षा के लिए  हथियारों के इस्तेमाल करने की अनुमति प्रदान की। काजीरंगा नेशनल पार्क में अवैध शिकार को रोकने के लिए अतिरक्त सहायता प्रदान की गयी है जिसमें असम वन सुरक्षा बल के 423 कर्मी और 125 होमगार्डों की तैनाती की गई है।

            सीमावर्ती कर्मचारियों को और अधिक आधुनिक हथियार मुहैया कराने की प्रक्रिया जारी है। राज्य सरकार के संबंधित विभागों के सदस्यों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ काजीरंगा जैव विविधता और विकास समिति का गठन किया गया है जो काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान सीमावर्ती क्षेत्रों में बेहतर संरक्षण के लिए विस्तृत रूप से ढांचागत विकास प्रदान करने में सहायता प्रदान करेंगे।

Monday, 6 February 2017

आदित्य नौका: स्वच्छ ऊर्जा का नया आयाम


                 20वीं शताब्‍दी की शुरुआत के दौरान (1925 से 1930 के बीच) वाईकॉम को सत्‍याग्रह आयोजन स्‍थल के लिए जाना जाता था, जिसका उद्देश्‍य समाज के सभी वर्गों को वाईकॉम मंदिर तक मुक्‍त आवाजाही प्रदान करना था। यह केरल के इतिहास में एक महान सामाजिक क्रांति थी। 9 मार्च, 1925 को वाईकॉम नौका घाट का प्रयोग राष्‍ट्रपति महात्‍मा गांधी द्वारा सत्‍याग्रह के लिए वाईकॉम तक पहुंचने के लिए किया गया था।

             हाल ही में यहां भारत की पहली सौर ऊर्जा संचालित नौका का उद्घाटन केन्‍द्रीय ऊर्जा, कोयला और नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) पीयूष गोयल तथा केरल के मुख्‍यमंत्री पिनारई विजयन द्वारा किया गया। प्रदूषण मुक्‍त सौर ऊर्जा चालित नौका का सफल प्रक्षेपण सौर ऊर्जा के उपयोग की दिशा में भारत की यात्रा का एक ऐतिहासिक कदम है। यह स्‍वच्‍छ ऊर्जा को बेहतर बनाने के लिए किए गए प्रयासों को दर्शाता है। केरल में कोट्टायम जिले के उत्‍तर-पूर्व जिले में स्थित सत्‍याग्रह की धरती वाईकॉम ने 12 जनवरी, 2017 को एक बार फिर इतिहास रचा। आदित्‍य भारत की पहली सौर ऊर्जा संचालित नौका सेवा को वाईकॉम और थवंक्‍काडावू के बीच शुरू किया गया है, जो कोट्टायम और अलाप्‍पुझा जिलों को आपस में जोड़ेगी।

                    इस सौर ऊर्जा चालित नौका को केरल राज्‍य परिवहन विभाग द्वारा निर्मित किया गया है, जिसे केद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के द्वारा वित्‍तीय सहायता के रूप में सब्सिडी प्रदान की गई है। सामान्‍य दिनों में सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली यह नौका 5-6 घंटे की यात्रा कर सकती है। यह परियोजना केरल जैसे राज्‍य के लिए वास्‍तव में एक वरदान है, जहां राज्‍य भर में बड़ी मात्रा में जल परिवहन का इस्‍तेमाल किया जाता है। आदित्‍य भारत की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा संचालित नौका है, जिसकी क्षमता 75 सीटों की है। इस पोत को केरल के इंजीनियर सांदिथ थंडाशेरी द्वारा डिजाइन किया गया है, जो सौर ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित एक निजी कंपनी के प्रबंध निदेशक हैं। 

                नौका के विकास और डिजाइन के लिए प्रमुख प्रौद्योगिकी और सहायता फ्रांसीसी फर्म द्वारा प्रदान की गई है। नौका को केरल के नवगाथी मरीन डिजाइन और कंस्‍ट्रक्‍शन की इकाई थवंक्‍काडावू में निर्मित किया जा रहा है। यह नौका 20 मीटर लंबी और 7 मीटर बीम के साथ 3.7 मीटर ऊंची है। इसकी एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण विशेषता यह है कि यह लकड़ी और इस्‍पात की जगह फाइबर से निर्मित है। नाव की छत पर 78 सोलर पैनल लगाए गए हैं, जो सौर ऊर्जा और बिजली पैदा करते हैं। सोलर पैनल को 20 किलोवाट की 2 इलेक्ट्रिक मोटरों के साथ जोड़ा गया है। नाव में 700 किलोग्राम की लीथियम आईएन बैटरी लगाई गई है, जिसकी क्षमता 50 किलोवाट की है। नौका के ढांचे को इस तरह से विकसित किया गया है जिससे इसकी रफ्तार 7.5 नॉटिकल/घंटा तक पहुंच जाती है।

                    इसे भारत सरकार की जहाजरानी सर्वेक्षक और केरल पोत सर्वेक्षक के तकनीकी समिति द्वारा सत्‍यापित किया गया है। इसकी सामान्‍य संचालन गति 5.5 नॉटिकल/घंटा  (10 किलोमीटर प्रति घंटा) है, जो वाईकॉम थवंक्‍काडावू के बीच की 2.5 किलोमीटर की दूरी को 15 मिनट में तय करती हैं। इस गति को प्राप्‍त करने के लिए 16 किलोवाट ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। इसकी अन्‍य प्रमुख विशेषता यह है कि यह नौका यात्रा के दौरान सामान्‍य डीजल से चलने वाले क्रूज के मुकाबले कम कंपन्‍न करती है। यह एक सस्‍ता विकल्‍प भी हो सकता है। यह नाव भारत सरकार के शिपिंग विभाग द्वारा निर्धारित सुरक्षा मानकों को भी पूरा करती है।केरल में कहीं भी संचालन के लिए यह बेहद सुरक्षित है। राज्‍य में जल परिवहन प्रणाली में तेजी से विस्‍तार हो रहा है। इसलिए इसका महत्‍व और भी अधिक बढ़ जाता है। 

                  इसी तरह की कार्यात्‍मक सुविधाओं और सुरक्षा मानकों से सु‍सज्जित डीजल से चलने वाली पारंपरिक नाव के मुकाबले इसकी तुलना की जाए तो इसकी लागत 1.58 करोड़ रुपये है, जबकि सौर ऊर्जा संचालित नौका की लागत 2.35 करोड़ रुपये है। इस्‍पात से निर्मित एक सामान्‍य नाव की यात्री क्षमता 75 यात्रियों की होती है। इसकी कीमत लगभग 1.9 करोड़ रुपये है। एक कुशल पारंपरिक नाव पर प्रतिदिन 120 लीटर तेल (12 लीटर प्रतिघंटा) या 3500 लीटर प्रति माह और 42000 लीटर प्रति वर्ष डीजल खर्च होता है। यह राशि डीजल के लिए 26.55 लाख रुपये (63.32 रुपये/लीटर प्रति लीटर) तथा ल्‍यूब ऑयल एवं अन्‍य रखरखाव लागत सहित कुल परिचालन लागत 30.37 लाख रुपये प्रति वर्ष आती है। जबकि, सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली नौका में 40 यूनिट बिजली या 422.13 रुपये प्रतिदिन खर्च हैं, जो लगभग 12,596 रुपये प्रति माह तथा 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष होते हैं। 

               सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली नौकाओं से किसी भी प्रकार का न तो शोरगुल होता है और न ही प्रदूषण, जैसा कि डीजल से संचालित होने वाली नौकाओं में होता है। पारंपरिक नौकाएं वायुमंडल में बड़ी मात्रा में सीओ 2 छोड़ती हैं, जो हमेशा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक होती हैं। इसके अलावा तेल का फैलना भी जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक है। लेकिन सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली नौकाएं न तो वायुमंडल में प्रदूषण फैलाती हैं और न ही जलीय वातावरण को प्रदूषित करती हैं। अंतर्देशीय जल परिवहन को केरल में परिवहन का सबसे कुशल, सस्‍ता और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन साधन माना जाता है। अंतर्देशीय जल नेविगेशन प्रणाली केरल में परिवहन का अभिन्न हिस्सा होने के साथ-साथ परिवहन का सबसे सस्ता साधन भी है। केरल की 44 में 41 नदियां, कई झीलें, नहरें यात्रा और माल ढुलाई के लिए राज्य में स्थित जलमार्गों का अच्छा नेटवर्क प्रदान कराते हैं। अष्टमुडी और वेमांनाडू जैसी झीलें केरल के पर्यटन क्षेत्र के लिए अंतर्देशीय नेविगेशन का एक अच्छा साधन उपलब्ध कराती हैं। 

               प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार इस ग्रीन परियोजना की बहुत सहायता कर रही है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भी इस परियोजना को प्रायोजित करने पर सहमत हो गया है। यह परियोजना भारत में इस तरह की पहली परियोजना है। प्रायोजन के लाभ का मतलब है कि केरल के राज्य जल परिवहन विभाग को भारत सरकार द्वारा नौका लगभग मुफ्त में मिल जाएगी। 

           वर्तमान में केरल राज्य के जल परिवहन विभाग के पास 49 नौकाएं हैं जो लकड़ी और स्टील से बनी हैं। इन लकड़ी की नावों की परिचालन लागत को कम करने के लिए, विभाग ने हाल ही में इसका निर्माण फाइबर ग्लास से करने की संभावनाओं को तलाशा है। पहली सौर ऊर्जा नाव की शुरूआत के बाद, केरल का राज्य जल परिवहन विभाग राज्य की परिवहन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई अन्य सौर ऊर्जा से संचालित होने वाले नावों को उतारने की तैयारी कर रहा है।    

भारतीय समाज की अद्भुत क्षमता : प्रधानमंत्री


                          प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, हमारे देश का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। हजारों साल का इतिहास समेटे हुए हुए हमारे देश में समय के साथ परिवर्तन आते रहे हैं। व्यक्ति में परिवर्तन, समाज में परिवर्तन। लेकिन समय के साथ ही कई बार कुछ बुराइयां भी समाज में व्याप्त हो जाती हैं। ये हमारे समाज की विशेषता है कि जब भी ऐसी बुराइयां आई हैं, तो सुधार का काम समाज के बीच में ही किसी ने शुरू किया है। एक काल ऐसा भी आया जब इसका नेतृत्व हमारे देश के साधु-संत समाज के हाथ में था।

      जगद्गुरू श्री माधवाचार्य, उडुपी के 7वीं शताब्‍दी समारोह पर वीडियो कांफ्रेस के माध्‍यम से प्रधानमंत्री ने कहा, ये भारतीय समाज की अद्भुत क्षमता है कि समय-समय पर हमें ऐसे देवतुल्य महापुरुष मिले, जिन्होंने इन बुराइयों को पहचाना, उनसे मुक्ति का रास्ता दिखाया। श्री मध्वाचार्य जी भी ऐसे ही संत थे, समाज सुधारक थे, अपने समय के अग्रदूत थे। उनेक ऐसे उदाहरण हैं जब उन्होंने प्रचलित कुरीतियों के खिलाफ, अपने विचार रखे, समाज को नई दिशा दिखाई। यज्ञों में पशुबलि बंद कराने का सामाजिक सुधार श्री मध्वाचार्य जी जैसे महान संत की ही देन है। हमारा इतिहास गवाह है कि हमारे संतों ने सैकड़ों वर्ष पहले, समाज में जो गलत रीतियां चली आ रही थीं, उन्हें सुधारने के लिए एक जनआंदोलन शुरू किया।

                   उन्होंने इस जनआंदोलन को भक्ति से जोड़ा। भक्ति का ये आंदोलन दक्षिण भारत से चलकर महाराष्ट्र और गुजरात से होते हुए उत्तर भारत तक पहुंचा था। उस भक्ति युग में, उस कालखंड में, हिंदुस्तान के हर क्षेत्र, पूर्व-पश्चिम उत्तर-दक्षिण, हर दिशा, हर भाषा-भाषी में मंदिरों-मठों से बाहर निकलकर हमारे संतों ने एक चेतना जगाने का प्रयास किया, भारत की आत्मा को जगाने का प्रयास किया। भक्ति आंदोलन की लौ दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभचार्य, रामानुजाचार्य, पश्चिम में मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, रामदास, नरसी मेहता, उत्तर में रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास, पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, और शंकर देव जैसे संतों के विचारों से सशक्त हुई। 

                   इन्हीं संतों, इन्हीं महापुरुषों का प्रभाव था कि हिंदुस्तान उस दौर में भी तमाम विपत्तियों को सहते हुए आगे बढ़ पाया, खुद को बचा पाया। आदि शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में जाकर लोगों को सांसारिकता से ऊपर उठकर ईश्वर में लीन होने का रास्ता दिखाया। रामानुजाचार्य ने विशिष्ट द्वैतवाद की व्याख्या की। उन्होंने भी जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर ईश्वर को प्राप्त करने का रास्ता दिखाया। वो कहते थे कर्म, ज्ञान और भक्ति से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। उन्हीं के दिखाए रास्ते पर चलते हुए संत रामानंद ने सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अपना शिष्य बनाकर जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया। संत कबीर ने भी जाति प्रथा और कर्मकांडों से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए अथक प्रयास किया। वो कहते थे- पानी केरा बुलबुला- अस मानस की जात...जीवन का इतना बड़ा सत्य उन्होंने इतने आसान शब्दों में हमारे समाज के सामने रख दिया था। गुरु नानक देव कहते थे- मानव की जात सभो एक पहचानबो। 

                   संत वल्लभाचार्य ने स्नेह और प्रेम के मार्ग पर चलते हुए मुक्ति का रास्ता दिखाया। चैतन्य महाप्रभु ने भी अस्पृश्यता के खिलाफ समाज को नई दिशा दिखाई। संतो की ऐसी श्रंखला भारत के जीवंत समाज का ही प्रतिबिंब है, परिणाम है। समाज में जो भी चुनौती आती है, उसके उत्तर आध्यात्मिक रूप में प्रकट होते हैं। इसलिए पूरे देश में शायद ही ऐसा कोई जिला या तालुका होगा, जहां कोई संत ना जन्मा हो। संत, भारतीय समाज की पीड़ा का उपाय बनकर आए,

              अपने जीवन, अपने उपदेश और साहित्य से उन्होंने समाज को सुधारने का काम किया। भक्ति आंदोलन के दौरान धर्म, दर्शन और साहित्य की एक ऐसी त्रिवेणी स्थापित हुई, जो आज भी हम सभी को प्रेरणा देती है। इसी दौर में रहीम ने कहा था, वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग, बांटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग...मतलब जिस प्रकार मेहंदी बांटने वाले के हाथ पर मेहंदी का रंग लग जाता है, उसी तरह से जो परोपकारी होता है, दूसरों की मदद करता है, उनकी भलाई के काम करता है, उसका भी अपने आप भला हो जाता है। भक्ति काल के इस खंड में रसखान, सूरदास, मलिक मोहम्मद जायसी, केशवदास, विद्यापति जैसी अनेक महान आत्माएं हुईं जिन्होंने अपनी बोली से, अपने साहित्य से समाज को ना सिर्फ आईना दिखाया, बल्कि उसे सुधारने का भी प्रयास किया। 

             मनुष्य की जिंदगी में कर्म, इंसान के आचरण की जो महत्ता है, उसे हमारे साधु संत हमेशा सर्वोपरि रखते थे। गुजरात के महान संत नरसी मेहता कहते थे- वाच-काछ-मन निश्चल राखे, परधन नव झाले हाथ रे। यानि व्यक्ति अपने शब्दों को, अपने कार्यों को और अपने विचारों को हमेशा पवित्र रखता है। अपने हाथ से दूसरों के धन को स्पर्श ना करे। आज जब देश कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ इतनी बड़ी लड़ाई लड़ रहा है, तो ये विचार कितने प्रासंगिक हो गए हैं। दुनिया को अनुभव मंटप या पहली संसद का मंत्र देने वाले महान समाज सुधारक वसेश्वर भी कहते थे कि मनुष्य जीवन निस्वार्थ कर्मयोग से ही प्रकाशित होगा। सामाजिक और व्यक्तिगत आचरण में स्वार्थ आना ही भ्रष्टाचार का पहला कारण होता है। 

                निस्वार्थ कर्मयोग को जितना बढ़ावा दिया जाएगा, उतना ही समाज से भ्रष्ट आचरण भी कम होगा। श्री मध्वाचार्य जी ने भी हमेशा इस बात पर जोर दिया कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, पूरी ईमानदारी से किया गया कार्य, पूरी निष्ठा से किया गया कार्य ईश्वर की पूजा करने की तरह होता है। वो कहते थे कि जैसे हम सरकार को टैक्स देते हैं, वैसे ही जब हम मानवता की सेवा करते हैं, तो वो ईश्वर को टैक्स देने की तरह होता है। हम गर्व के साथ कह सकते हैं हिंदुस्‍तान के पास ऐसी महान परंपरा है, ऐसे महान संत-मुनि रहे हैं, ऋषि-मुनि, महापुरुष रहे हैं जिन्‍होंने अपनी तपस्‍या, अपने ज्ञान का उपयोग राष्ट्र के भाग्‍य को बदलने के लिए, राष्ट्र का निर्माण करने के लिए किया है। 

                    हमारे संतों ने पूरे समाज को:जात से जगत की ओर, स्व से समष्टि की ओर, अहम् से वयम की ओर,  जीव से शिव की ओर, जीवात्मा से परमात्मा की और, जाने के लिए प्रेरित कियाप्र् स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, राजा राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले, डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर, महात्मा गांधी, पांडुरंग शास्त्री आठवले, विनोबा भावे, जैसे अनगिनत संत पुरुषों ने भारत की आध्यात्मिक धारा को हमेशा चेतनमय रखा। समाज में चली आ रही कुरितियों के खिलाफ जनआंदोलन शुरू किया। जात-पात मिटाने से लेकर जनजागृति तक; भक्ति से लेकर जनशक्ति तक; सती प्रथा को रोकने से लेकर स्वच्छता बढ़ाने तक; सामाजिक समरसता से लेकर शिक्षा तक; स्वास्थ्य से लेकर साहित्य तक अपनी छाप छोड़ी है, जनमन को बदला है। इन जैसी महान विभूतियों ने देश को एक ऐसी शक्ति दी है, जो अद्भुत, अतुलनीय है। 

               उन्‍होंने कहा सामाजिक बुराइयों को खत्म करते रहने की ऐसी महान संत परंपरा के कारण ही हम सदियों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेज पाए हैं। ऐसी महान संत परंपरा के कारण ही हम राष्ट्रीय एकीकरण और राष्ट्रनिर्माण की अवधारणा को साकार करते आए हैं। ऐसे संत किसी युग तक सीमित नहीं रहे हैं, बल्कि वे युगों-युगों तक अपना प्रभाव डालते रहे हैं। हमारे देश के संतों ने हमेशा समाज को इस बात के लिए प्रेरित किया कि हर धर्म से ऊपर अगर कोई धर्म है तो वो मानव धर्म है। आज भी हमारे देश, हमारे समाज के सामने चुनौतियां विद्यमान हैं। इन चुनौतियों से निपटने में संत समाज और मठ बड़ा योगदान दे रहें हैं। जब संत समाज कहता है कि स्वच्छता ही ईश्वर है, तो उसका प्रभाव सरकार के किसी भी अभियान से ज्यादा होता है।

                    आर्थिक रूप से शुचिता की प्रेरणा भी इसी से मिलती है। भ्रष्ट आचरण यदि आज के समाज की चुनौती है, तो उसका उपाय भी आधुनिक संत समाज दे सकता है। पर्यावरण संरक्षण में भी संत समाज की बड़ी भूमिका है। हमारी संस्कृति में तो पेड़ों को चेतन माना गया है, जीवनयुक्त माना गया है। बाद में भारत के ही एक सपूत और महान वैज्ञानिक डॉक्टर जगदीश चंद्र बोस ने इसे दुनिया के सामने साबित भी किया। वरना पहले दुनिया इसे मानती ही नहीं थी, हमारा मजाक उड़ाती थी। हमारे लिए प्रकृति मां है, दोहन के लिए नहीं, सेवा के लिए है। हमारे यहां पेड़ के लिए अपनी जान तक देने की परंपरा रही है, टहनी तोड़ने से भी पहले प्रार्थना की जाती है। जीव-जंतु और वनस्पति के प्रति संवेदना हमें बचपन से सिखाई जाती है। हम रोज़ आरती के बाद के शांति मंत्र में वनस्पतय: शांति आप: शांति कहते है। लेकिन ये भी सत्य है कि समय के साथ इस परंपरा पर भी आंच आई है। 

             आज संत समाज को इस ओर भी अपना प्रयास बढ़ाना होगा। जो हमारे ग्रंथों में है, हमारी परंपराओं का हिस्सा रहा है, उसे आचरण में लाने से ही ड़थ्त्थ्र्ठ्ठद्यड्ढ ड़ण्ठ्ठदढ़ड्ढ की चुनौती का सामना किया जा सकता है। आज भी आप देखिए, सम्पूर्ण विश्व के देशों में जीवन जीने के मार्ग में जब भी किसी प्रकार की बाधा आती है तब दुनिया की निगाहें भारत की संस्कृति और सभ्यता पर आकर टिक जाती हैं। एक तरह से विश्व की समस्त समस्याओं का उत्तर भारतीय संस्कृति में है। ये भारत में सहज स्वीकार्य है कि एक ईश्वर को अनेक रूपों में जाना पूजा जा सकता है। 

               ऋगवेद में कहा गया है- एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति... एक ही परमसत्य को अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है। विविधता को हम केवल स्वीकार नहीं करते उसका उत्सव मनाते है। हम वसुधैव कुटुंबकम... पूरी पृथ्वी को एक परिवार मानने वाले लोग हैं। हम कहते हैं- सहनाववतु-सह नौ भुनक्तु... सभी का पोषण हो, सभी को शक्ति मिले, कोई किसी से द्वेश ना करे। कट्टरता का यही समाधान है।  आतंक के मूल में ही ये कट्टरता है की मेरा ही मार्ग सही है। जबकि भारत में केवल सिद्धांत रूप में नहीं पर व्यवहार में भी अनेक उपासना के लोग सदियों से साथ रहते आए हैं। हम सर्वपंथ समभाव को मानने वाले लोग हैं।  

             उन्‍होंने कहा मेरा मानना है कि आज के इस युग में हम सभी साथ मिलकर रह रहे हैं, समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं, देश के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं, तो इसकी एक बड़ी वजह साधु-संतों द्वारा दिखाई गयी ज्ञान कर्म और भक्ति की प्रेरणा है। आज समय की मांग है पूजा के देव के साथ ही राष्ट्रदेव की भी बात हो, पूजा में अपने ईष्टदेव के साथ ही भारतमाता की भी बात हो। अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, कालाधन, भष्टाचार जैसी जिन बुराइयों ने भारतमाता को जकड़ रखा है, उससे हमारे देश को मुक्त कराने के लिए संत समाज देश को रास्ता दिखाता रहे`।

Sunday, 5 February 2017

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन जाएगा


                   इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि लगभग डेढ़ वर्ष पहले मैंने अपने योग्य पूर्ववर्ती से इस्पात मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। मेरा मानना है कि नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के तहत हमारी सरकार एक, एकजुट सहयोगी और प्रगतिशील टीम के रूप में कार्य कर रही है। प्रधानमंत्री का एकमात्र लक्ष्य 21वीं सदी को भारत की सदी बनाना है और हम सबका ध्यान भारत के स्वर्णिम युग को वापस लाने पर केंद्रित है और इस एकीकृत मिशन को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

          इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि रेलवे ने कच्चे माल के परिवहन में कम लागत और समय की बचत के लिए रेलवे ट्रैक पर स्लरी लाइन क्रॉसिंग के हमारे प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। इस्पात मंत्रालय ने इस्पात उत्पादों के लिए टैरिफ और गैर टैरिफ समर्थन उपायों के मुद्दों को भी उठाया है जिसके परिणास्वरूप निश्चित समय अवधि में न्यूनतम आयात मूल्य, एंटी डंपिंग शुल्क, माल ढुलाई की दरों को समायोजित किया गया। इन कदमों ने भारतीय इस्पात उद्योग को आगे बढ़ाने तथा अंतरराष्ट्रीय इस्पात कंपनियों के साथ समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक ही स्तर का मार्ग सुनिश्चित किया है। इसके अलावा, भारत की नीतिगत पहलों के परिणामस्वरूप भारत चालू वित्त वर्ष में इस्पात का शुद्ध निर्यातक बनने की राह पर अग्रसर है।

                    परियोजनाओं के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी से संबंधित मुद्दों पर कार्य किया गया है और परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। यहाँ कुछ ही मामले लंबित हैं और केंद्र एवं राज्य स्तर पर उनका हल निकाला जा रहा है, लेकिन लंबित मामलों की संख्या में काफी कमी आई है। ये सभी निर्णय विकास के रास्ते में आ रहीं बाधाओं को दूर कर इस्पात उद्योग सक्षम बना रहे हैं और ऊंची उड़ान भरने के लिए अपने पंख फैला रहे हैं। जल्दी ही भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में राउरकेला और बर्नपुर में आधुनिक और विस्तारित सुविधाओं से सुसज्जित सेल के दो एकीकृत इस्पात संयंत्रों को राष्ट्र को समर्पित किया।

             इस प्रकार भारत दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक होने के अपने लक्ष्य के करीब आ रहा है। यह हमारी सरकार के तहत हो रहा है। आज भारत अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक वाला देश है। इस्पात मंत्रालय के अधीन आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एमएसटीसी ने भारत के पहले बड़े ऑटो-श्रेडिंग संयंत्र की स्थापना के लिए एक संयुक्त उद्यम पर हस्ताक्षर किए हैं। इस विचार को आगे करते हुए मैंने मंत्रालय से उत्तरी और पश्चिमी भारत, दोनों में एक-एक स्क्रैप आधारित इस्पात संयंत्रों की स्थापना करने की संभावनाओं का पता लगाने को कहा है।

                   इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि इन सभी को "भारत निर्मित इस्पात" की रणनीति के तहत शामिल किया जा रहा है जिसमें हम इस्पात उद्योग में "मेक इन इंडिया" पहल को अपनाने पर ध्यान दे रहे हैं। रक्षा, जहाज निर्माण और अन्य विनिर्माण क्षेत्रों में, "मेक इन इंडिया" पहल में काफी निवेश होने की उम्मीद है, जो स्टील की मांग को प्रोत्साहित करेगा। भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री ने हमारे अभिनव तरीकों से कार्य करने और लीक से हटकर रणनीतियां बनाने के संकल्प को मजबूत किया है। यह हमें साफ, पर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात बनाने के में मदद करेगा। कुछ महीने पहले एमएसटीसी ने भी एमएसटीसी मेटल मंडी की शुरूआत की थी जो एक डिजिटल इंडिया संबंधी पहल है और इसके तहत बीआईएस स्टील के खरीदारों और विक्रेताओं को एक इलेक्ट्रॉनिक मंच प्रदान किया गया है।
 

            इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि मेरा यह प्रयास है कि इस्पात ग्राहकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भारतीय इस्पात उद्योग में एक सख्त गुणवत्ता वाला शासन होना चाहिए, चाहे यह स्टेनलेस स्टील, निर्माण ग्रेड स्टील से संबंधी हो या अन्य इस्पात उत्पादों से संबंधित हो। गुणवत्ता नियंत्रण क्रम के तहत हमने कुछ उत्पादों को पेश किया है और धीरे-धीरे बीआईएस प्रमाणन के तहत हम अधिक से अधिक उत्पादों को लाकर इसके दायरे का विस्तार कर रहे हैं।
 

              इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि इस्पात मंत्रालय आत्मनिर्भरता और आयात प्रतिस्थापन के उद्देश्य के साथ बिजली और ऑटो ग्रेड जैसे विशेष ग्रेड स्टील्स बनाने की क्षमता पर कार्य कर रहा है। मेरा मानना है कि अनुसंधान और विकास इस्पात उद्योग के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस्पात कंपनियों को उनके प्रदर्शन और लाभप्रदता के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क प्राप्त करने के लिए लक्ष्य दिए गए हैं। इन निर्णयों से हमारी इस्पात कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने के साथ-साथ भारत से उच्च गुणवत्ता, मूल्य वर्धित उत्पादों का निर्यात करने में सक्षम होंगी। जनवरी 2017 में, हमने "राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017" का मसौदा जारी कर विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रिया और टिप्पणियों मांगी है।

                   इसका लक्ष्य भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात खपत को बढ़ाकर 160 किलोग्राम करना है और वर्ष 2030-31 तक इस्पात उत्पादन क्षमता को 300 मिलियन टन करना है। हमें स्टील की मांग में वृद्धि करने के लिए एक रणनीति की भी आवश्यकता है जिसके तहत स्टील का उपयोग बढ़ाने के लिए मंत्रालय से सहयोग जरूरी है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण घरों में इस्पात के उपयोग अनिवार्य कर दिया है, वहीं शहरी विकास मंत्रालय द्वारा निर्माण कार्य में इस्पात के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। रेल मंत्रालय स्टील का उपयोग करने पर सहमत हो गया है तथा सड़क मंत्रालय परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय हमारे प्रस्तावों के जवाब में सड़क पुलों, राजमार्गों आदि में इस्पात का प्रयोग करने पर विचार कर रहा है।
 

                  इस्पात मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने कहा कि इस्पात मंत्रालय ने स्टील पुलों और सड़कों के साथ-साथ स्टील क्रैश बैरियर के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भी संबंधित विभागों से बात की है। हम पहाड़ी राज्यों में अलग-अलग राज्य सरकारों के साथ क्रैश बैरियरों का प्रयोग कर सड़कों पर होनी वाली दुर्घटनाओं को कम करने के तरीकों पर बातचीत कर रहे हैं। राज्य के विशेष कारकों के आधार पर दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए क्रैश बैरियरों का विस्तृत तकनीकी और भौगोलिक अध्ययन किया जा रहा है। कम लागत, जल्दी स्थापना और लंबी अवधि का लाभ लेने के लिए इस्पात का प्रयोग पारंपरिक आरसीसी पुलों के स्थान पर भी किया जा सकता है। 

               सुझाव दिया है कि भारतीय रेल, रेलवे स्टेशनों, फुट ओवर ब्रिज, रेल डिब्बों, इस्पात आधारित रेलवे कॉलोनी के भवन निर्माण कार्यों में इस्पात का उपयोग बढ़ाया जा सकता है। माय गोव प्लेटफॉर्म में आ रहे नए विचार इस्पात की खपत बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं जिनमें से कुछ वास्तव में उन्नत और अपनाने योग्य हैं। हम इन विचारों पर कार्य कर रहे हैं। हम लघु अवधि की योजनाओं पर कार्य कर रहे हैं। और तेजी से निगरानी और कार्यान्वयन के लिए अर्द्धवार्षिक, वार्षिक और 3 साल के आधार पर लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं। 

             इन सभी प्रयासों की बदौलत भारत विश्व में प्रमुख इस्पात उत्पादक देशों के बीच उत्पादन और इस्पात की खपत में वृद्धि के मामले में लगातार आगे बढ़ रहा है। पिछले साल  वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन (डब्ल्यूएसए) के महानिदेशक एडविन बॉसन ने कहा था कि मौजूदा वैश्विक इस्पात बाजार में मंदी के बावजूद भी केवल एक स्थान है ऐसा है जिसके पास लंबी अवधि तक वैश्विक स्टील बाजार में अपनी छाप छोड़ने की क्षमता है और वह भारत है। 

              मंत्रालय की सभी पहलों, रणनीतियों, निर्णय और प्रस्तावों की सफलता के पीछे एक प्रमुख योगदान कारक के रूप में साथी मंत्रालय हैं जिनसे लगातार समर्थन मिला है। आइए एक कदम आगें चलें, और मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में इस साझेदारी और समझ की बदौलत प्रत्येक मंत्रालय की अलग पहचान बनी है।

Thursday, 2 February 2017

महिलाओं की सुरक्षा, घर में शौचालय  


          हौसले को सलाम करना चाहिए क्योंकि हौसला बुलंद हो तो कोई भी काम या रास्ता आसान हो जाता है। जी हां, बात चाहे शौचालय बनवाने की हो या फिर बिजली-पानी की हो। 
 
             घर में शौचालय न होने से बिहार के कटिहार जनपद के नवाबगंज पूर्वी टोला निवासी श्रीमती पूजा देवी ने सिर्फ इसलिये ससुराल जाने से इंकार कर दिया क्योंकि उसकी ससुराल में शौचालय नहीं था। हालांकि कोई नवयुवती इतना साहस व हौसला नहीं जुटा पाती कि वह सिर्फ शौचालय न होने से ससुराल जाने से इंकार कर दे, वह भी जब शादी को छह माह हुये हों लेकिन पूजा ने शौचालय न होने पर ससुराल की चौखट पर जाने से साफ इंकार कर दिया। हालांकि घर में शौचालय न होने से विरोध की यह कोई पहली घटना नहीं थी। बिहार के ही पटना के अदालतगंज की श्रीमती पार्वती ने घर में शौचालय की व्यवस्था न होने पर महिला हेल्प लाइन में शिकायत दर्ज करायी कि उसे तलाक दिलायें क्योंकि उसके घर में शौचालय नहीं है। 
 
          जिससे उसे शौच जाने में दिक्कत होती है। यह स्थिति उसके लिए अपमानजनक महसूस होती है। पार्वती के इस हौसले व साहस को सुलभ इंटरनेशनल के प्रणेता डा. बिन्देश्वर पाठक ने न केवल सराहा बल्कि पार्वती के घर में शौचालय बनवाया बल्कि सुलभ स्वच्छता सम्मान से अलंकृत किया। इस सम्मान में सुलभ इंटरनेशनल की ओर से डेढ़ लाख की धनराशि बतौर पुरस्कार दी गयी। शौचालय की समस्या केवल पूजा व पार्वती के सामने ही नहीं है बल्कि देश में करोड़ों महिला-युवतियों के सामने है। देश के गांव-गिरांव में साठ प्रतिशत आबादी के सामने शौचालय न होने की गम्भीर समस्या खड़ी है। 
 
            विशेषज्ञों की मानें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 59.4 प्रतिशत व शहरी क्षेत्र में 8.80 प्रतिशत आबादी के पास शौचालय नहीं है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपनी नीतियों-रीतियों में शौचालय निर्माण को प्राथमिकता पर रखा है। 'पहले शौचालय फिर देवालय" की रीति-नीति को पसंद किया गया। ऐसा नहीं कि शासकीय स्तर पर शौचालय बनाने-बनवाने की कोशिशें नहीं की गयीं या नहीं की जा रहीं। केन्द्र सरकार ने शौचालय निर्माण की योजनाओं के लिए अरबों की धनराशि खर्च की। अब तो मनरेगा के तहत भी गांव-गिरांव में शौचालय बनाये जा सकेंगे। निर्मल भारत अभियान के तहत शौचालय का निर्माण कराने पर नौ हजार एक सौ की आर्थिक सहायता केन्द्र सरकार से उपलब्ध होती है तो लाभार्थी को नौ सौ ƒ की धनराशि खुद खर्च करनी होती है। 
 
            हालांकि अार्थिक संकट से परेशान गांव-गिरांव के बाशिंदों के सामने शौचालय बनाने-बनवाने की दिक्कत एकबारगी हो सकती है लेकिन ऐसा नहीं है कि शौचालय का निर्माण नहीं करा सकते। इसके लिए आवश्यक है कि शासकीय योजनाओं की जानकारी हो आैर शौचालय की आवश्यकता को शासन-प्रशासन के सामने बेहतर तौर-तरीके से रख सकें। शौचालय स्वच्छता अभियान का एक हिस्सा होने के साथ साथ एक सभ्य व सुन्दर समाज की आवश्यकता भी है। महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान के लिए घर-परिवार में शौचालय होना आवश्यक भी है।  ऐसा नहीं है कि शौचालय न होने की समस्या केवल हिन्दुस्तान में ही है। अभी हाल में दक्षिण अफ्रीका के बाशिंदों ने शौचालय की अपेक्षित व्यवस्थायें न होने पर विरोध प्रदर्शन किया था। इससे साफ जाहिर है कि देश दुनिया में शौचालय न होना एक गम्भीर समस्या है। इसका समाधान सभी को मिल कर करना चाहिए।

Wednesday, 1 February 2017

राष्ट्रपति भवन का वार्षिक ‘उद्यानोत्सव’


       राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी 04 फरवरी, 2017 को राष्‍ट्रपति भवन के वार्षिक ‘उद्यानोत्‍सव’ को खोलेंगे। 

            मुगल गार्डन आम जनता के लिए 05 फरवरी से 12 मार्च, 2017 (सोमवार को छोड़कर जोकि रखरखाव दिवस है) तक सुबह साढ़े नौ बजे से शाम चार बजे तक खुला रहेगा। लोग स्प्रिचुअल गार्डन, हर्बल गार्डन, बोनसाई गार्डन एवं म्‍यूजिकल गार्डन का आनन्‍द भी उठा सकेंगे। आम जनता के लिए प्रवेश तथा निकास नॉर्थ एवन्‍यू के समीप प्रेसिडेंट एस्‍टेट के गेट नम्‍बर 35 से होगा। आगंतुकों से पानी की बोतल, ब्रीफकेस, हैंडबैग/लेडीज पर्स, कैमरा, रेडियो/ट्रांजिस्‍टर, बक्‍से, छाता, खाद्य सामग्री आदि न लाने का अनुरोध है।

            ऐसी वस्‍तुएं लाने पर उन्‍हें प्रवेश बिन्‍दु पर जमा कर दिया जाएगा। बहरहाल, गार्डन का भ्रमण करने के लिए आने वाले लोगों के लिए पीने के पानी, शौचालय, प्राथमिक चिकित्‍सा/चिकित्‍सकीय सुविधा ; वरिष्‍ठ नागरिकों, महिलाओं तथा बच्‍चों के लिए विश्राम कक्ष की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। 

            मुगल गार्डन विशिष्‍ट रूप से किसानों, दिव्‍यांगों, सैन्‍य/अर्द्धसैन्‍य बलों तथा दिल्‍ली पुलिस के जवानों जैसे विशेष वर्ग के आगंतुकों के लिए 10 मार्च, 2017 को सुबह साढ़े नौ बजे से शाम चार बजे तक खुला रहेगा। प्रवेश तथा निकास गेट नम्‍बर 35 के जरिए होगा। टेक्‍टाइल गार्डन 10 मार्च, 2017 को 11 बजे से शाम चार बजे तक दृष्टिबाधित लोगों के लिए खुला रहेगा। प्रवेश तथा निकास चर्च रोड पर स्थित गेट नम्‍बर 12 से होगा।