भारतीय समाज की अद्भुत क्षमता : प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, हमारे देश का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। हजारों साल का इतिहास समेटे हुए हुए हमारे देश में समय के साथ परिवर्तन आते रहे हैं। व्यक्ति में परिवर्तन, समाज में परिवर्तन। लेकिन समय के साथ ही कई बार कुछ बुराइयां भी समाज में व्याप्त हो जाती हैं। ये हमारे समाज की विशेषता है कि जब भी ऐसी बुराइयां आई हैं, तो सुधार का काम समाज के बीच में ही किसी ने शुरू किया है। एक काल ऐसा भी आया जब इसका नेतृत्व हमारे देश के साधु-संत समाज के हाथ में था।
उन्होंने इस जनआंदोलन को भक्ति से जोड़ा। भक्ति का ये आंदोलन दक्षिण भारत
से चलकर महाराष्ट्र और गुजरात से होते हुए उत्तर भारत तक पहुंचा था। उस
भक्ति युग में, उस कालखंड में, हिंदुस्तान के हर क्षेत्र, पूर्व-पश्चिम
उत्तर-दक्षिण, हर दिशा, हर भाषा-भाषी में मंदिरों-मठों से बाहर निकलकर
हमारे संतों ने एक चेतना जगाने का प्रयास किया, भारत की आत्मा को जगाने का
प्रयास किया। भक्ति आंदोलन की लौ दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य,
वल्लभचार्य, रामानुजाचार्य, पश्चिम में मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, रामदास,
नरसी मेहता, उत्तर में रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु
नानकदेव, संत रैदास, पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, और शंकर देव जैसे संतों के
विचारों से सशक्त हुई।
इन्हीं संतों, इन्हीं महापुरुषों का प्रभाव था कि हिंदुस्तान उस दौर में
भी तमाम विपत्तियों को सहते हुए आगे बढ़ पाया, खुद को बचा पाया। आदि
शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में जाकर लोगों को सांसारिकता से ऊपर
उठकर ईश्वर में लीन होने का रास्ता दिखाया। रामानुजाचार्य ने विशिष्ट
द्वैतवाद की व्याख्या की। उन्होंने भी जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर ईश्वर को
प्राप्त करने का रास्ता दिखाया। वो कहते थे कर्म, ज्ञान और भक्ति से ही
ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। उन्हीं के दिखाए रास्ते पर चलते हुए संत
रामानंद ने सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अपना शिष्य बनाकर जातिवाद
पर कड़ा प्रहार किया। संत कबीर ने भी जाति प्रथा और कर्मकांडों से समाज को
मुक्ति दिलाने के लिए अथक प्रयास किया। वो कहते थे- पानी केरा बुलबुला- अस
मानस की जात...जीवन का इतना बड़ा सत्य उन्होंने इतने आसान शब्दों में हमारे
समाज के सामने रख दिया था। गुरु नानक देव कहते थे- मानव की जात सभो एक
पहचानबो।
संत वल्लभाचार्य ने स्नेह और प्रेम के मार्ग पर चलते हुए मुक्ति का रास्ता
दिखाया। चैतन्य महाप्रभु ने भी अस्पृश्यता के खिलाफ समाज को नई दिशा
दिखाई। संतो की ऐसी श्रंखला भारत के जीवंत समाज का ही प्रतिबिंब है, परिणाम
है। समाज में जो भी चुनौती आती है, उसके उत्तर आध्यात्मिक रूप में प्रकट
होते हैं। इसलिए पूरे देश में शायद ही ऐसा कोई जिला या तालुका होगा, जहां
कोई संत ना जन्मा हो। संत, भारतीय समाज की पीड़ा का उपाय बनकर आए,
अपने जीवन, अपने उपदेश और साहित्य से उन्होंने समाज को सुधारने का काम
किया। भक्ति आंदोलन के दौरान धर्म, दर्शन और साहित्य की एक ऐसी त्रिवेणी
स्थापित हुई, जो आज भी हम सभी को प्रेरणा देती है। इसी दौर में रहीम ने कहा
था, वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग, बांटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी
को रंग...मतलब जिस प्रकार मेहंदी बांटने वाले के हाथ पर मेहंदी का रंग लग
जाता है, उसी तरह से जो परोपकारी होता है, दूसरों की मदद करता है, उनकी
भलाई के काम करता है, उसका भी अपने आप भला हो जाता है। भक्ति काल के इस खंड
में रसखान, सूरदास, मलिक मोहम्मद जायसी, केशवदास, विद्यापति जैसी अनेक
महान आत्माएं हुईं जिन्होंने अपनी बोली से, अपने साहित्य से समाज को ना
सिर्फ आईना दिखाया, बल्कि उसे सुधारने का भी प्रयास किया।
मनुष्य की जिंदगी में कर्म, इंसान के आचरण की जो महत्ता है, उसे हमारे
साधु संत हमेशा सर्वोपरि रखते थे। गुजरात के महान संत नरसी मेहता कहते थे-
वाच-काछ-मन निश्चल राखे, परधन नव झाले हाथ रे। यानि व्यक्ति अपने शब्दों
को, अपने कार्यों को और अपने विचारों को हमेशा पवित्र रखता है। अपने हाथ से
दूसरों के धन को स्पर्श ना करे। आज जब देश कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ
इतनी बड़ी लड़ाई लड़ रहा है, तो ये विचार कितने प्रासंगिक हो गए हैं।
दुनिया को अनुभव मंटप या पहली संसद का मंत्र देने वाले महान समाज सुधारक
वसेश्वर भी कहते थे कि मनुष्य जीवन निस्वार्थ कर्मयोग से ही प्रकाशित होगा।
सामाजिक और व्यक्तिगत आचरण में स्वार्थ आना ही भ्रष्टाचार का पहला कारण
होता है।
निस्वार्थ कर्मयोग को जितना बढ़ावा दिया जाएगा, उतना ही समाज से भ्रष्ट
आचरण भी कम होगा। श्री मध्वाचार्य जी ने भी हमेशा इस बात पर जोर दिया कि
कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, पूरी ईमानदारी से किया गया कार्य, पूरी
निष्ठा से किया गया कार्य ईश्वर की पूजा करने की तरह होता है। वो कहते थे
कि जैसे हम सरकार को टैक्स देते हैं, वैसे ही जब हम मानवता की सेवा करते
हैं, तो वो ईश्वर को टैक्स देने की तरह होता है। हम गर्व के साथ कह सकते
हैं हिंदुस्तान के पास ऐसी महान परंपरा है, ऐसे महान संत-मुनि रहे हैं,
ऋषि-मुनि, महापुरुष रहे हैं जिन्होंने अपनी तपस्या, अपने ज्ञान का उपयोग
राष्ट्र के भाग्य को बदलने के लिए, राष्ट्र का निर्माण करने के लिए किया
है।
हमारे संतों ने पूरे समाज को:जात से जगत की ओर, स्व से समष्टि की ओर, अहम्
से वयम की ओर, जीव से शिव की ओर, जीवात्मा से परमात्मा की और, जाने के
लिए प्रेरित कियाप्र् स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, राजा राम
मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले, डॉक्टर भीम राव
अम्बेडकर, महात्मा गांधी, पांडुरंग शास्त्री आठवले, विनोबा भावे, जैसे
अनगिनत संत पुरुषों ने भारत की आध्यात्मिक धारा को हमेशा चेतनमय रखा। समाज
में चली आ रही कुरितियों के खिलाफ जनआंदोलन शुरू किया। जात-पात मिटाने से
लेकर जनजागृति तक; भक्ति से लेकर जनशक्ति तक; सती प्रथा को रोकने से लेकर
स्वच्छता बढ़ाने तक; सामाजिक समरसता से लेकर शिक्षा तक; स्वास्थ्य से लेकर
साहित्य तक अपनी छाप छोड़ी है, जनमन को बदला है। इन जैसी महान विभूतियों ने
देश को एक ऐसी शक्ति दी है, जो अद्भुत, अतुलनीय है।
उन्होंने कहा सामाजिक बुराइयों को खत्म करते रहने की ऐसी महान संत परंपरा
के कारण ही हम सदियों से अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेज पाए हैं। ऐसी
महान संत परंपरा के कारण ही हम राष्ट्रीय एकीकरण और राष्ट्रनिर्माण की
अवधारणा को साकार करते आए हैं। ऐसे संत किसी युग तक सीमित नहीं रहे हैं,
बल्कि वे युगों-युगों तक अपना प्रभाव डालते रहे हैं। हमारे देश के संतों ने
हमेशा समाज को इस बात के लिए प्रेरित किया कि हर धर्म से ऊपर अगर कोई धर्म
है तो वो मानव धर्म है। आज भी हमारे देश, हमारे समाज के सामने चुनौतियां
विद्यमान हैं। इन चुनौतियों से निपटने में संत समाज और मठ बड़ा योगदान दे
रहें हैं। जब संत समाज कहता है कि स्वच्छता ही ईश्वर है, तो उसका प्रभाव
सरकार के किसी भी अभियान से ज्यादा होता है।
आर्थिक रूप से शुचिता की प्रेरणा भी इसी से मिलती है।
भ्रष्ट आचरण यदि आज के समाज की चुनौती है, तो उसका उपाय भी आधुनिक संत समाज
दे सकता है। पर्यावरण संरक्षण में भी संत समाज की बड़ी भूमिका है। हमारी
संस्कृति में तो पेड़ों को चेतन माना गया है, जीवनयुक्त माना गया है। बाद
में भारत के ही एक सपूत और महान वैज्ञानिक डॉक्टर जगदीश चंद्र बोस ने इसे
दुनिया के सामने साबित भी किया। वरना पहले दुनिया इसे मानती ही नहीं थी,
हमारा मजाक उड़ाती थी। हमारे लिए प्रकृति मां है, दोहन के लिए नहीं, सेवा
के लिए है। हमारे यहां पेड़ के लिए अपनी जान तक देने की परंपरा रही है,
टहनी तोड़ने से भी पहले प्रार्थना की जाती है। जीव-जंतु और वनस्पति के
प्रति संवेदना हमें बचपन से सिखाई जाती है। हम रोज़ आरती के बाद के शांति
मंत्र में वनस्पतय: शांति आप: शांति कहते है। लेकिन ये भी सत्य है कि समय
के साथ इस परंपरा पर भी आंच आई है।
आज संत समाज को इस ओर भी अपना प्रयास बढ़ाना होगा। जो हमारे ग्रंथों में
है, हमारी परंपराओं का हिस्सा रहा है, उसे आचरण में लाने से ही
ड़थ्त्थ्र्ठ्ठद्यड्ढ ड़ण्ठ्ठदढ़ड्ढ की चुनौती का सामना किया जा सकता है। आज भी
आप देखिए, सम्पूर्ण विश्व के देशों में जीवन जीने के मार्ग में जब भी किसी
प्रकार की बाधा आती है तब दुनिया की निगाहें भारत की संस्कृति और सभ्यता
पर आकर टिक जाती हैं। एक तरह से विश्व की समस्त समस्याओं का उत्तर भारतीय
संस्कृति में है। ये भारत में सहज स्वीकार्य है कि एक ईश्वर को अनेक रूपों
में जाना पूजा जा सकता है।
ऋगवेद में कहा गया है- एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति... एक ही परमसत्य को
अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है। विविधता को हम केवल स्वीकार नहीं करते
उसका उत्सव मनाते है। हम वसुधैव कुटुंबकम... पूरी पृथ्वी को एक परिवार
मानने वाले लोग हैं। हम कहते हैं- सहनाववतु-सह नौ भुनक्तु... सभी का पोषण
हो, सभी को शक्ति मिले, कोई किसी से द्वेश ना करे। कट्टरता का यही समाधान
है। आतंक के मूल में ही ये कट्टरता है की मेरा ही मार्ग सही है। जबकि भारत
में केवल सिद्धांत रूप में नहीं पर व्यवहार में भी अनेक उपासना के लोग
सदियों से साथ रहते आए हैं। हम सर्वपंथ समभाव को मानने वाले लोग हैं।
उन्होंने कहा मेरा मानना है कि आज के इस युग में हम सभी साथ मिलकर रह रहे
हैं, समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं, देश के
विकास के लिए प्रयत्नशील हैं, तो इसकी एक बड़ी वजह साधु-संतों द्वारा
दिखाई गयी ज्ञान कर्म और भक्ति की प्रेरणा है। आज समय की मांग है पूजा के
देव के साथ ही राष्ट्रदेव की भी बात हो, पूजा में अपने ईष्टदेव के साथ ही
भारतमाता की भी बात हो। अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, कालाधन, भष्टाचार जैसी
जिन बुराइयों ने भारतमाता को जकड़ रखा है, उससे हमारे देश को मुक्त कराने
के लिए संत समाज देश को रास्ता दिखाता रहे`।
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