महिलाओं की सुरक्षा, घर में शौचालय
हौसले को सलाम करना चाहिए क्योंकि हौसला बुलंद हो तो कोई भी काम या रास्ता आसान हो जाता है। जी हां, बात चाहे शौचालय बनवाने की हो या फिर बिजली-पानी की हो।
घर में
शौचालय न होने से बिहार के कटिहार जनपद के नवाबगंज पूर्वी टोला निवासी
श्रीमती पूजा देवी ने सिर्फ इसलिये ससुराल जाने से इंकार कर दिया क्योंकि
उसकी ससुराल में शौचालय नहीं था। हालांकि कोई नवयुवती इतना साहस व हौसला नहीं जुटा पाती कि वह सिर्फ शौचालय न होने से ससुराल जाने से इंकार कर दे,
वह भी जब शादी को छह माह हुये हों लेकिन पूजा ने शौचालय न होने पर ससुराल
की चौखट पर जाने से साफ इंकार कर दिया। हालांकि घर में शौचालय न होने से
विरोध की यह कोई पहली घटना नहीं थी। बिहार के ही पटना के अदालतगंज की
श्रीमती पार्वती ने घर में शौचालय की व्यवस्था न होने पर महिला हेल्प लाइन
में शिकायत दर्ज करायी कि उसे तलाक दिलायें क्योंकि उसके घर में शौचालय
नहीं है।
जिससे उसे शौच जाने में दिक्कत होती है। यह स्थिति उसके लिए
अपमानजनक महसूस होती है। पार्वती के इस हौसले व साहस को सुलभ इंटरनेशनल के
प्रणेता डा. बिन्देश्वर पाठक ने न केवल सराहा बल्कि पार्वती के घर में
शौचालय बनवाया बल्कि सुलभ स्वच्छता सम्मान से अलंकृत किया। इस सम्मान में
सुलभ इंटरनेशनल की ओर से डेढ़ लाख की धनराशि बतौर पुरस्कार दी गयी।
शौचालय की समस्या केवल पूजा व पार्वती के सामने ही नहीं है बल्कि देश में
करोड़ों महिला-युवतियों के सामने है। देश के गांव-गिरांव में साठ प्रतिशत
आबादी के सामने शौचालय न होने की गम्भीर समस्या खड़ी है।
विशेषज्ञों की
मानें तो ग्रामीण क्षेत्रों में 59.4 प्रतिशत व शहरी क्षेत्र में 8.80
प्रतिशत आबादी के पास शौचालय नहीं है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
ने भी अपनी नीतियों-रीतियों में शौचालय निर्माण को प्राथमिकता पर रखा
है। 'पहले शौचालय फिर देवालय" की रीति-नीति को पसंद किया गया। ऐसा नहीं कि
शासकीय स्तर पर शौचालय बनाने-बनवाने की कोशिशें नहीं की गयीं या नहीं की जा
रहीं। केन्द्र सरकार ने शौचालय निर्माण की योजनाओं के लिए अरबों की धनराशि
खर्च की। अब तो मनरेगा के तहत भी गांव-गिरांव में शौचालय बनाये जा सकेंगे।
निर्मल भारत अभियान के तहत शौचालय का निर्माण कराने पर नौ हजार एक सौ की आर्थिक सहायता केन्द्र सरकार से उपलब्ध होती है तो लाभार्थी को नौ सौ ƒ
की धनराशि खुद खर्च करनी होती है।
हालांकि अार्थिक संकट से परेशान
गांव-गिरांव के बाशिंदों के सामने शौचालय बनाने-बनवाने की दिक्कत एकबारगी
हो सकती है लेकिन ऐसा नहीं है कि शौचालय का निर्माण नहीं करा सकते। इसके
लिए आवश्यक है कि शासकीय योजनाओं की जानकारी हो आैर शौचालय की आवश्यकता
को शासन-प्रशासन के सामने बेहतर तौर-तरीके से रख सकें। शौचालय स्वच्छता
अभियान का एक हिस्सा होने के साथ साथ एक सभ्य व सुन्दर समाज की आवश्यकता भी
है। महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान के लिए घर-परिवार में शौचालय होना आवश्यक
भी है। ऐसा नहीं है कि शौचालय न होने की समस्या केवल हिन्दुस्तान में ही
है। अभी हाल में दक्षिण अफ्रीका के बाशिंदों ने शौचालय की अपेक्षित
व्यवस्थायें न होने पर विरोध प्रदर्शन किया था। इससे साफ जाहिर है कि देश
दुनिया में शौचालय न होना एक गम्भीर समस्या है। इसका समाधान सभी को मिल कर
करना चाहिए।
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