Sunday, 12 February 2017

2018 तक कुष्ठ रोग, 2020 तक खसरा व 2025 तक तपेदिक का उन्मूलन

             विकास लक्ष्यों के अनुसार दुनिया में मातृत्व मृत्यु दर अनुपात में एक लाख प्रसव के आधार पर 70 प्रतिशत तक की कमी लाई जाएगी। 1990 में 560 के मातृत्व मृत्यु के अनुपात की तुलना में देश ने 2011 में इसे घटाकर 167 कर दिया। 1990 में 5 साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 126 थी जो 2014 में 39 हो गई। 2017 के बजट के प्रकाश में सरकार ने शिशु मृत्यु दर 2014 में 39 से कम करके 2019 तक 28 तक लाने की योजना बनाई है। 

            इसी प्रकार 2011 की मातृत्व मृत्यु दर 167 को कम करके 2020 तक 100 तक करने का लक्ष्य है। देश के 6 राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में आज भी यह चुनौती बनी हुई है। इन राज्यों में देश की कुल आबादी का 42 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है और वार्षिक आबादी वृद्धि में 56 प्रतिशत हिस्सा इन राज्यों का है। भारत के जनस्वास्थ्य सुविधा और प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं का एक विशाल संगठन विकसित किया है। 

                 प्राथमिक और दूसरे स्तर के अस्पतालों के लिए बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन विकास पर जोर दिया जा रहा है। 2017 के बजट में 1.5 लाख स्वास्थ्य उप केंद्रों को स्वास्थ्य केंद्रों में उन्नत करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा देशभर में गर्भवती महिलाओं के लिए एक योजना चलाई जाएगी जिसके तहत प्रत्येक गर्भवती महिला को 6 हजार रुपये प्रदान किए जायेंगे। ये योजनाएं मुफ्त दवा, मुफ्त निदान और मुफ्त आपातकालीन सेवाओं के साथ चलेंगी। यदि प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली बेहतर रूप से काम करे तो ऊपर के अस्पतालों पर बोझ कम होता है। 2017 के बजट में इस पर ध्यान दिया गया है। 

                  सरकार देशभर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे कई संस्थान खोलने पर विशेष जोर दे रही है। 2017 के बजट में झारखंड और गुजरात में 2 नए आयुर्विज्ञान संस्थान खोले जाने का प्रस्ताव किया गया है। इस कदम से सार्वजनिक क्षेत्र में शानदार चिकित्सा सेवा संभव हो जाएगी। पहले, दूसरे और तीसरे स्तर की चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों का प्रावधान किया जा रहा है। इसके तहत सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने का रोडमैप तैयार होगा। 

            अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे अस्पताल खोलना काफी जटिल है क्योंकि इसके तहत सर्वोच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। वरिष्ठ विशेषज्ञों और सक्षम व्यक्तियों को खोजना और उन्हें संस्थान से जोड़े रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान देश और विदेश में जाना-माना संस्थान है जिसकी स्थापना 6 दशकों पहले हुई थी। स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्र में यह एक शानदार संस्थान है जिसकी मिशाल अन्यत्र नहीं मिलती। यह संस्थान चिकित्सा के अलावा शिक्षा और अनुसंधान में भी अग्रणी है। 

                   मौजूदा बजट में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का विशेष उल्लेख किया गया है। इसके विस्तार के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि भारतीय समाज के कल्याण का महान कार्य किया जा सके। उल्लेखनीय है कि तमाम रोगों का इलाज कराते – कराते लाखों लोग गरीब हो जाते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान इस दिशा में महत्वपूर्ण सहायता कर सकता है। भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं में मानव संसाधन अत्यंत महत्वपूर्ण घटक है। 2017 के बजट में प्रति वर्ष स्नात्कोत्तर की 5 हजार सीटों की व्यवस्था बनाए जाने का प्रस्ताव है ताकि दूसरे और तीसरे स्तर की स्वास्थ्य सुविधा को मजबूत करने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक मिल सकें। 

                 भारत सरकार ने चिकित्सा सुविधा और अभ्यास संबंधी नियमों में बदलाव लाने के लिए भी आवश्यक कदम उठाने का संकेत दिया है। देश में बढ़ी हुई स्नात्कोत्तर सीटों की उपलब्धता और एक केंद्रीय प्रवेश प्रणाली जैसे सुधारों ने चिकित्सा सुविधा की गुणवत्ता बढ़ाई है। स्नात्कोत्तर चिकित्सा शिक्षा का विस्तार सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि इनकी कमी के कारण देश में न सिर्फ विशेषज्ञ चिकित्सों का अभाव हो जाता है बल्कि मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी हो जाती है। स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए नीति बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरा काम है। इसकी पृष्ठ भूमि में यह बात उजागर होती है कि लोगों के पास स्वास्थ्य पर पैसा खर्च करने की क्षमता कम है और स्वास्थ्य सेवाएं बहुत महंगी हैं। 

               स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति मासिक आय के अनुपात में ग्रामीण इलाकों में 6.9 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 5.5 प्रतिशत लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। भारत में सरकारी अस्पतालों में प्रसव, नवजात और शिशुओं की देखभाल जैसी सेवाएं मुफ्त दी जाती हैं लेकिन इसके बावजूद अपनी जेब से भी बहुत पैसा देना पड़ता है। स्वास्थ्य नीति के तहत अगले पांच सालों में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत जनस्वास्थ्य पर खर्च किया जाएगा जो मौजूदा 1 प्रतिशत के स्तर से अधिक है। 2017 के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उल्लेखनीय इजाफा किया गया है। इसमें 2016-17 में 3706.55 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 47352.51 करोड़ रुपये कर दिया गया है। 

             इस प्रकार इसमें 27 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की गई है। इसके अलावा सरकार ने 2017 तक काला-अजार और फाइलेरिया, 2018 तक कुष्ठ रोग, 2020 तक खसरा और 2025 तक तपेदिक का उन्मूलन करने की कार्ययोजना तैयार की है। मेडिकल कॉलेजों और चिकित्सा अनुसंधान के बीच सहयोग को मजबूत किया गया है। भारत में सरकार द्वारा वित्त पोषित 32 स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग संस्थान हैं। इस संबंध में नीति, चिकित्सा उपकरणों में अभिनव प्रयोग, बुनियादी अनुसंधान, सस्ते अभिनव प्रयोग, नई दवाओं की खोज, अनुसंधान में भागीदारी और डेटाबेस का सृजन पर जोर दिया जा रहा है। 1970 के दशक में सबसे लिए स्वास्थ्य नामक नीति शुरू की गई थी, जो आज भी प्रासांगिक है।

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