सड़क हादसों में हर घंटे बीस मौत
भोजन-पानी, घर-घरौंदा,कपड़ा लत्ता की आवश्यकतायें पूरी होने के साथ ही सुरक्षा अहम है। सुरक्षा चाहे देश की हो या समाज या फिर व्यक्ति की हो, खास मायने रखती है। सुरक्षा को लेकर देश-दुनिया में कानून भी हैं लेकिन कानून के साथ-साथ सुरक्षा को लेकर खुद भी सावधान-सतर्क रहना चाहिए क्योंकि हर जगह-स्थान पर कानून साथ खड़ा नहीं रहता। खुद सावधान-सतर्क रहेंगे तो कहीं अधिक सुरक्षित रहेंगे। अब देखें तो देश में आैसत हर घंटे सड़क हादसों में पन्द्रह से बीस व्यक्तियों की मौत हो जाती है।
ऐसा नहीं कि इन आप्राकृतिक घटनाओं-दुर्घटनाओं को रोका नहीं जा सकता लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि शासकीय सेवाओं-व्यवस्थाओं के साथ-साथ खुद भी सावधान-सतर्क रहें। हालांकि समय के साथ मोटर कानून में भी बदलाव-संशोधन होना चाहिए क्योंकि सख्त एवं व्यवहारिक कानून न होने से उसे क्रियान्वित या लागू करने में दिक्कतें होती है। जिससे समाज या व्यक्ति को सीधा लाभ-फायदा नहीं मिल पाता। अब देखें तो पायेंगे कि मोटर व्हीकल एक्ट अभी भी बाबा-आदम जमाने अर्थात ब्रिाटिशकालीन चला रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो सड़क हादसों में मामूली जुर्माना होकर घटना-दुर्घटना का मामला रफा-दफा हो जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो सालाना करीब पांच लाख व्यक्तियों की मौत विभिन्न कारणों से हो जाती है। इनमें दो लाख व्यक्तियों की मौत केवल सड़क हादसों से होती है। इससे व्यक्ति की जान की क्षति तो होती ही है, माल की भी क्षति होती है। सड़क हादसों से दो लाख करोड़ धनराशि की आर्थिक क्षति होती है। जान-माल की इस क्षति को रोका जा सकता है।कम से कम न्यूनतम तो किया ही जा सकता है।
हालांकि सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक-2014 लाने की कोशिश चल रही है। सड़क हादसों को रोकने व न्यूनतम करने के लिए आवश्यक है कि सख्त व व्यवहारिक कानून हो, जनता जागरुक हो तो वहीं सड़क नेटवर्क बेहतर डिजाइन का हो। सड़क नेटवर्क बेहतर होना चाहिए क्योंकि सड़क नेटवर्क में अपेक्षित विस्तार न होने या वृद्धि न होने से वाहन चालकों के सामने दिक्कतें आती हैं। सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण सड़क नेटवर्क का बेहतर न होना भी है तो वहीं सड़कों का डिजाइन भी दुर्घटनाओं के लिए कम जिम्मेदार नहीं। खुद को भी दुर्घटनाओं से बचने के लिए सचेष्ट रहना चाहिये क्योंकि कई बार छोटा सा कारण भी दुर्घटना का कारण बन जाता है। कर्तव्य निवर्हन पर ध्यान देंगे तो काफी कुछ सुधरा दिखेगा क्योंकि कर्तव्य निवर्हन से व्यवस्थायें सुचारु हो जाती हैं। कर्तव्य निवर्हन से अधिकार खुद-ब-खुद हासिल हो जाते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो वाहन की यांत्रिक स्थिति ठीक न होने के कारण तीन प्रतिशत दुर्घटनायें होती हैं। खराब सड़क के कारण बारह प्रतिशत दुर्घटनायें होती हैं।
इसी तरह से चालक की गलती-लापरवाही से सत्तर प्रतिशत दुर्घटनायें होती हैं। खराब मौसम के कारण सात प्रतिशत दुर्घटनायें होती हैं। देश में सड़कों का संजाल करीब चौंतीस लाख किलोमीटर लम्बा है जबकि वाहनों की संख्या साढ़े नौ करोड़ है। आजादी के समय देश में सड़कों की लम्बाई 3.98 हजार किलोमीटर थी जबकि वाहनों की संख्या तीन लाख थी। अब देखें तो सड़कों पर वाहनों का दबाव काफी बढ़ा लेकिन सड़क नेटवर्क में उस रफ्तार से सुधार-बदलाव नहीं हो सका। इस पर स्थानीय निकायों से लेकर केन्द्रीय शासन-सत्ता में बैठे नीति-नियंताओं को गम्भीरता से विचार-विमर्श करना चाहिए क्योंकि यह जान एवं माल की सुरक्षा से ताल्लुक रखने वाला गम्भीर विषय है क्योंकि क्षति तो क्षति होती है।अब क्षति चाहे व्यक्ति की हो या फिर आर्थिक हो लेकिन व्यक्ति की क्षति कहीं अधिक महत्वपूर्ण होती है क्योंकि व्यक्ति की क्षति की पूर्ति करना असंभव व नामुमकिन होता है। व्यक्ति की अपनी जिम्मेदारियां-उत्तरदायित्व व कर्तव्य सहित बहुत कुछ उसमें निहीत होता है।
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