'इच्छाशक्ति" से ही बनेंगे 'स्मार्ट सिटी"
सोच अच्छी हो... सोच विकास की हो... दिशा रचनात्मक हो तो कोई वजह नहीं कि कायाकल्प न हो। शहरों का न केवल कायाकल्प होना चाहिए बल्कि आदर्श-आइडियल शहर विकसित होने चाहिए।
कोरी लफ्फाजी, दोहरी नीति-रीति व आरोप-प्रत्यारोप शहरों की दशा-दिशा नहीं बदल सकते। शय-मात के खेल नहीं होने चाहिए। विकास को राजनीति के चश्में से नहीं देखना चाहिए। नफा-नुकसान नहीं सिर्फ विकास की रफ्तार होनी चाहिए। फिर चाहे दिल्ली को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने की बात हो या फिर हैदराबाद या कोलकाता का कलेवर चेंज करना हो, कोई मुश्किल काम नहीं होगा। वायु प्रदूषण से लेकर साफ सफाई तक की समग्र व्यवस्थाओं के सुधार यथार्थ में बदलने चाहिए क्योंकि आज देश के अधिसंख्य शहरों में वायु प्रदूषण एवं शहरी क्षेत्रों में साफ-सफाई की दशा बेहद बदहाल है। जिसका सीधा दुष्प्रभाव शहरी बाशिंदों की सेहत व स्वास्थ्य पर पड़ता है। यह स्थिति से शहरी जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
देश समाज व सरकार सभी के लिए यह गम्भीर चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि जनस्वास्थ्य से कहीं न कहीं-कभी न कभी सभी का सरोकार रहता है। बात पानी की हो तो बिजली की भी होनी चाहिए। कोशिश हो कि शहरी विकास का एक समग्र डिजाइन तैयार हो जिसमें सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट से लेकर एनर्जी डेवेलपमेंट सहित सभी कुछ शामिल हो।आवश्यक है कि भवन निर्माण नीति में इस तरह की व्यवस्थायें आयें जिससे बिजली की खपत को कम किया जा सके। विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा करने से वर्ष 2021 तक 42,000 मेगावाट बिजली बचाई जा सकेगी। 'टेरी" की रिपोर्ट में इस आशय के संकेत भी दिये गये हैं। आवश्यक है कि कूड़ा कचरा सहित अन्य सभी संसाधनों का अपेक्षित उपयोग सुनिश्चित हो। विकास की सतत प्रक्रिया होनी चाहिए। जिसमें संसाधनों का तर्कसंगत इस्तेमाल सुनिश्चित करने के साथ-साथ पर्यावरण एवं सामाजिक पहलुओं का भी पूरा ध्यान रखा जाता हो।
शहरों में फैले कूड़ा-कचरा को उर्जा, ईंधन, उर्वरक एवं सिंचाई जल में तब्दील करने की योजनायें बननी चाहिए जिससे निस्तारण भी हो आैर आवश्यकताओं की पूर्ति भी हो। इसमें आैद्योगिक घरानों व उद्योग जगत की भूमिका विशेष व महत्वपूर्ण हो सकती है। भारत सरकार का शहरी विकास मंत्रालय इस दिशा में कोशिश कर रहा है लेकिन कोशिशें सार्थक आयाम लेते दिखनी चाहिए क्योंकि सार्थक परिणाम ही देश की आवाम-देश की आबादी को अपेक्षित लाभ दे सकेंगी। भारत सरकार का शहरी विकास मंत्रालय इस दिशा में कार्यरत देश-विदेश की कम्पनियों व संस्थाओं की खोजबीन कर रहा है। कोशिश है कि इससे कूड़ा कचरा एवं सीवेज की व्यवस्थाओं में सुधार आयेगा। दोबारा इस्तेमाल के लिए किफायती समाधान (सोल्यूशंस) भी सामने आयेंगे। यह सभी रीतियां-नीतियां शहरी विकास के स्वच्छ भारत मिशन, स्मार्ट सिटी व धरोहर शहरी विकास का हिस्सा होंगी। देश के करीब पांच सौ शहरों एवं कस्बों में इस तरह की योजनायें फिलहाल लाने की हलचल दिख रही है।
शहरी विकास मंत्रालय की माने तो प्रथम श्रेणी व द्वितीय श्रेणी में आने वाले शहरों से नित्य-प्रतिदिन एक लाख तेंतीस हजार मीट्रिक टन कूड़ा-कचरा व ठोस अपशिष्ठ उत्पन्न होता है। इतना ही नहीं इन शहरों से हर दिन तकरीबन अडतीस हजार पांच सौ मिलियन लीटर सीवेज उत्पन्न होता है। देश के शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का कार्य भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा। शहरी विकास मंत्रालय सहित अन्य मंत्रालयों की कोशिश है कि देश में एक सौ स्मार्ट सिटी बनाये जायें। शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने से पहले शहरी विकास मंत्रालय ने राज्यों व नौकरशाहों से विचार-विमर्श व मंथन कर जानना चाहा कि वह वाकई शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के प्रति गम्भीर हैं अथवा नहीं क्योंकि भारत सरकार अपेक्षित धनराशि तो उपलब्ध करा सकता है लेकिन क्रियान्वयन या अमल में लाना तो राज्य सरकारों व नौकरशाहों का उत्तरदायित्व होगा। कारण इच्छाशक्ति ही योजनाओं को आकार दे सकती है।
स्मार्ट सिटी बनाने के लिए स्मार्ट नेतृत्व, स्मार्ट गवर्नेंस, स्मार्ट टेक्नॉलॉजी व स्मार्ट नागरिक भी होने चाहिए क्योंकि इन सभी के संयुक्त प्रयास से शहर स्मार्ट बनेंगे। शहर स्मार्ट तभी होंगे, जब शहर साफ सुथरे होंगे। बीमारियां दूर रहेंगी। इससे अर्थव्यवस्था भी सुधरेगी। जनस्वास्थ्य का सीधा असर अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। शहरों में पर्याप्त व अपेक्षित साफ सफाई व स्वच्छता न होने से बीमारियां फैलती हैं। शहरी विकास मंत्रालय की मानें तो इस कारण प्रत्येक वर्ष सकल घरेलू उत्पाद का 6.40 प्रतिशत यानी 54 बिलियन डालर का बोझ देश की आर्थिक व्यवस्था पर पड़ता है। इतना ही नहीं प्रत्येक वर्ष डायरिया से 18 लाख लोग मर जाते हैं। हालात यह हैं कि अस्सी प्रतिशत बीमारियां जल जनित हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद 19 प्रतिशत शहरी घरों में शौचालय नहीं है। इतना ही नहीं 13 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं।
स्वच्छता के लिए मानसिकता बदलने के साथ-साथ व्यापक स्तर पर जागरुकता की आवश्यकता है। तभी स्वच्छ भारत, स्वच्छ समाज व स्मार्ट सिटी की परिकल्पना साकार होगी। देश की राजधानी दिल्ली को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने की बात हो या देश के प्रमुख शहरों को स्मार्ट सिटी के रुप में विकसित करने की परिकल्पना हो या फिर देश के खास शहरों को सांस्कृतिक-पौराणिक-धार्मिक या धरोहर शहर के रूप-रंग में तब्दील करने की वैचारिकी हो.... यह सभी तभी फलीभूत होंगें, जब देश व प्रदेश संयुक्त तौर पर विकास पथ पर कदमताल करेंगे। करीब एक दशक पहले जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन के तहत उत्तर प्रदेश के कवाल टाउन्स कानपुर, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, लखनऊ सहित देश के कई शहरों में लाख करोड़ की विकास योजनायें लागू की गयी थीं।
जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन (जेएनएनयूआरएम) की यह विकास योजनायें अभी तक आयाम नहीं ले सकीं। भले ही कारण कुछ भी रहे हों लेकिन देश की आम जनता को अभी तक न तो सुगम परिवहन सेवायें सुलभ हो सकीं आैर न साफ सुथरा पीने का पानी ही उपलब्ध हो सका बल्कि सप्ताह के सात दिन चौबीस घंटे पीने का पानी उपलब्ध कराने का खाका खींचा जा रहा है। चाहे पीने का पानी हो या फिर परिवहन सेवायें, विकास योजनायें बननी ही चाहिए लेकिन विकास योजनाओं को फलीभूत होने के लिए समयवद्ध उत्तरदायित्व तय होने चाहिए क्योंकि तभी विकास योजनाओं से देश का कॉमनमैन लाभान्वित हो सकेगा। आवश्यक है कि इसके लिए केन्द्र सरकार व देश की राज्य सरकारें दलगत राजनीति से उपर उठ कर विकास योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर उसकी गुणवत्ता के प्रति गम्भीर हों। जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन की योजनाओं के लिए केन्द्र सरकार ने पचास प्रतिशत धनराशि बतौर अनुदान जारी की जबकि इसमें तीस प्रतिशत अंशदान स्थानीय निकाय व बीस प्रतिशत अंशदान प्रदेश सरकार को वहन करने का प्रावधान किया गया था लेकिन केन्द्र सरकार की व्यवस्थाओं में बदलाव दिखे।
अब शहरी विकास के लिए केन्द्र सरकार ने कई मायनों में राज्य सरकारों पर निर्भरता की रीति-नीति को छोड़ दिया। धरोहर शहर विकास योजना के तहत अब केन्द्र सरकार परियोजना खर्च खुद उठायेगगा। धरोहर शहर विकास योजना के तहत फिलहाल देश के मुख्य 12 शहर चयनित किये गये हैं। इन एक दर्जन शहरों के लिए केन्द्र सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने पांच सौ करोड़ रुपये की धनराशि का प्रावधान किया है। इसके पीछे शाायद मंशा यह है कि 'संस्कृति व विरासत की अनदेखी कर कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता"। शायद इसी सोच के तहत केन्द्र सरकार ने देश के चुंनिदा शहरों को अपेक्षित विकास की स्पीड़ देने का निर्णय लिया है। विशेषज्ञों की मानें तो धरोहर शहर विकास योजना का लक्ष्य शहरों की विरासत को सुरक्षित व संरक्षित रखना है। साथ ही शहरों का समेकित, समावेशी और सतत विकास करना है। इसके तहत केवल स्मारकों के रख रखाव पर ही नहीं, बल्कि शहर के नागरिकों, पर्यटकों और स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देना है। यूनेस्को ने तीस से अधिक विरासत स्थलों को मान्यता देकर सुरक्षित व संरक्षित किया है। विशेषज्ञों की मानें तो भारत का एशिया में दूसरा और विश्व में पांचवां स्थान है, जो विरासत शहरों व स्थलों के प्रति गम्भीर है। देश में पर्यटन की संभावनाओं का अभी तक पूरा लाभ नहीं उठाया जा सका क्योंकि अपेक्षित विकास न होने से पर्यटन शहरों व स्थलों की ओर पर्यटकों को आकर्षित नहीं किया जा सका।
संभव है कि शहरी विकास मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय व पर्यटन मंत्रालय की नयी योजनायें कोई नया आकार गढ़ें। धरोहर शहर विकास योजना के तहत आबादी के आधार पर काशी-बनारस को 89.31 करोड़ रुपए, अमृतसर को 69.31 करोड़ रुपए, वारंगल को 40.54 करोड़ रुपए तथा अजमेर, गया व मथुरा को चालीस-चालीस करोड़ रुपए, कांचीपुरम को 23.04 करोड़ रुपए और वेलानकिनी, अमरावती, बदामी एवं द्वारका को करीब पच्चीस-पच्चीस करोड़ रुपए तथा पुरी को 22.54 करोड़ रुपए मिलेंगे। विकास की यह नयी चुनौतियों अब स्थानीय निकायों के सामने खरा उतरने की हैं। शहरी स्थानीय निकायों को परियोजनाओं के विकास के लिए धनराशि तो केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय उपलब्ध करायेंगे लेकिन योजनाओं को आकार देने का उत्तरदायित्व तो स्थानीय निकायों पर रहेगा।
हालात यह हैं कि शहरों के विकास में अब पारम्परिक चाल-ढ़ाल व रवैया नहीं चलेगा कि केन्द्र सरकार ने धनराशि जारी कर दी आैर राज्यों ने विकास की आैपचारिकतायें पूरी कर इतिश्री कर ली क्योंकि यदि शहरों का समग्र या सम्पूर्ण विकास चाहिए तो विकास को एक चुनौती के रूप में जनप्रतिनिधियों से लेकर नौकरशाहों को लेना होगा। शहरी प्रशासन में सुधार और नई चुनौतियों पर खरा उतरने की क्षमता शहरी स्थानीय निकायों में होनी चाहिए। इसी क्षमता के आधार पर शहरी विकास मंत्रालय स्मार्ट सिटी के लिए शहरों को चयनित करेगा। शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू खुद इस आशय के संकेत दे चुके हैं। भारत सरकार का शहरी विकास मंत्रालय फिलहाल देश के सौ स्मार्ट शहरों और पांच सौ शहरों व कस्बों में विकास के रंग भरने की योजनाओं पर कार्य कर रहा है। कोशिश है कि विकास के इस इन्द्रधनुष में जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन के अनुभव के रंग भरे जायें। व्यवस्थाओं को देखें तो देश में प्रति व्यक्ति प्रति दिन एक सौ पैंतीस लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए लेकिन उपलब्धता पचहत्तर लीटर से भी कम है। शहरी क्षेत्र में पचास फीसदी परिवारों या आवासों में पानी कनेक्शन हैं।
हालात यह हैं कि शहरी क्षेत्र में सिर्फ चालीस प्रतिशत में घरों में शौचालय की व्यवस्था है तो वहीं सोलह से बीस फीसदी सीवरेज शोधित हो पाता है। इतना ही नहीं शहरी क्षेत्र में कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या है। करीब बीस से पच्चीस फीसदी कचरा का अपेक्षित निस्तारण हो पाता है।कचरा रिसाइकिलिंग की व्यवस्था अत्यधिक कमजोर है क्योंकि बमुश्किल दस फीसदी कचरा ही रिसाइकिल हो पाता है। विशेषज्ञों की मानें तो अगले बीस वर्षों में बुनियादी ढ़ाचे में सुधार के लिए चालीस लाख करोड़ चाहिए होंगे। इसके साथ ही व्यवस्थाओं के संचालन एवं शहरी उपयोगिताओं के रखरखाव के लिए करीब बीस लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। आवासों की कमी को पूरा करने के लिए भी बड़ी धनराशि चाहिए होगी। विशेषज्ञों की मानें तो 15 लाख करोड़ रुपए आवास की कमी को पूरा करने के लिए और 60 हजार करोड़ रुपए स्वच्छता के लिए आवश्यक है। हालात पर गौर करें तो इन सबके लिए कुल एक हजार दो सौ बिलियन अमेरिकी डालर की आवश्यकता है। अब सरकार की कोशिश है कि इसका अधिसंख्य हिस्सा निजी क्षेत्र से आये।
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