Thursday, 22 December 2016

फ्लाई एश का प्रदूषण भी कम नहीं


     'शोध-अनुसंधान" एवं  'खोज तथा विकास" की रीति नीति निश्चय ही देश में बदलाव लायेगी। बदलाव के लिए आवश्यक है कि शासन-सत्ता से लेकर नीति नियंताओं को विचार-विमर्श-मंथन पर बल देना चाहिए क्योंकि विचार-विमर्श-मंथन निश्चय ही विकास के पथ खोलने में सहायक सिद्ध-साबित होंगे। 

देश में कोयला की उपलब्धता व विद्युत उत्पादन में वृद्धि करना किसी चुनौती से कम नहीं। इससे भी बड़ी एक आैर चुनौती देश व समाज के सामने है। यह चुनौती है विद्युत उत्पादन से निकलने वाली फ्लाई एश का अपेक्षित एवं समुचित उपयोग सुनिश्चित करना। देश में करीब सत्तर से बहत्तर प्रतिशत विद्युत उत्पादन में कोयला का उपयोग किया जाता है। करीब अस्सी विद्युत उत्पादन इकाईयों में कोयला का उपयोग होता है। विशेषज्ञों की मानें तो इनसे लगभग सौ मिलियन टन फ्लाई एश सालाना निकलती है। फ्लाई एश का भण्डारण विद्युत उत्पादन इकाईयों के लिए एक बड़ी समस्या है तो वहीं विद्युत उत्पादन में चिमनियों से फ्लाई एश निकलना इलाकाई बाशिंदों के लिए परेशानी का सबब भी है। 

फ्लाई एश से परिवेश तो दूषित होता ही है बाशिंदों के सामने स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों का होना भी लाजिमी है। विशेषज्ञों की मानें तो फ्लाई एश से कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन आबादी-बाशिंदों के लिए एक बड़ा खतरा है। कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन में अमेरिका व चीन के बाद भारत सबसे बड़ा उत्सर्जक है। इस तरह देखें तो वायु मण्डल प्रदूषण में भारत विश्व का तीसरा बड़ा देश है। जन स्वास्थ्य के गम्भीर खतरा को देखते हुये कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन से बचना चाहिए। बचाव पूरी तरह से न हो पाये तो इसे न्यूनतम अवश्य करना चाहिए। विद्युत उत्पादन इकाईयों के सामने भी समस्या कम नहीं है क्योंकि फ्लाई एश के भण्डारण के लिए धनराशि व भूमि का प्रबंधन करना आवश्यक है। 

अब फ्लाई एश के अपेक्षित उपयोग की वकालत होनी चाहिए क्योंकि इससे एक तो फ्लाई एश की उपयोगिता सुनिश्चित हो जायेगी तो वहीं फ्लाई एश से उत्पादित वस्तु-सामग्री का राष्ट्र निर्माण में  अपेक्षित उपयोग भी सुनिश्चित हो सकेगा। फ्लाई एश का उपयोग सड़क बनाने, सीमेंट का उत्पादन, कंक्रीट के ब्लाक अर्थात टाइल्स बनाने में किया जा सकता है। भारत सरकार के केन्द्रीय र्इंधन अनुसंधान केन्द्र ने खोज तथा विकास कार्यक्रम में फ्लाई एश से र्इंट बनाने की वकालत की है। हालांकि र्इंट बनाने के लिए फ्लाई एश का उपयोग पहले से ही हो रहा है लेकिन अभी यह उपयोग कमतर हो रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो अभी र्इंट बनाने के लिए फ्लाई एश का उपयोग चालीस से पैंतालिस प्रतिशत तक ही हो रहा है। र्इंट बनाने के लिए फ्लाई एश का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए। इससे देश व समाज को कई फायदे होंगे। एक तो र्इंट उत्पादन के लिए मिट्टी की खोदाई नहीं करनी होगी तो वहीं फ्लाई एश का उपयोग हो जायेगा जिससे विद्युत उत्पादन इकाईयों को धन व भूमि का प्रबंधन करने से काफी हद तक निजात मिल जायेगी।

 फ्लाई एश के भण्डारण को न्यूनतम करने से भू-गर्भ जल व भूमि को प्रदूषित होने से भी बचाया जा सकेगा। भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाये रखने या बचाने के लिए आवश्यक है कि फ्लाई एश की उपयोगिता प्राथमिकता पर सुनिश्चित करनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि अभी तक इस दिशा में कोई प्रयास नहीं हुये लेकिन प्रयास सार्थक आयाम नहीं ले सके। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने वर्ष 1999 में अधिसूचना जारी कर देश के स्थानीय निकाय व डेवलपमेंट अथारिटी को दिशा निर्देश दिये थे कि भवन उप विधियों व नियमों में व्यवस्था करें कि भवन निर्माण, सड़क निर्माण, तट बंध व अन्य निर्माण में फ्लाई एश आधारित उत्पादों का उपयोग शामिल व सुनिश्चित किया जाये।

 अफसोस, यह आदेश-व्यवस्था अभी तक सार्थक आयाम नहीं ले सकी। अभी हाल में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने फ्लाई एश उपयोग के लिए आवश्यक नियम व व्यवस्थायें तय करने के दिशा निर्देश दिये हैं। शासकीय व्यवस्थाओं से ताल्लुक रखने वाले नीति नियंताओं को फ्लाई एश का अपेक्षित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए विचार-विमर्श-मंथन करना चाहिए। ऐसी नीति-रीति तय या सुनिश्चित करनी चाहिए जिससे उसके सार्थक परिणाम देश व समाज के सामने दिखें। यथार्थ में उपयोगिता सुनिश्चित हो सके। रीति-नीति केवल बनने के लिए न बने। कारण देश व समाज के लिए वही रीति-नीति मायने रखती है आैर सार्थक रहती है जिसका लाभ समग्र-सम्पूर्ण समाज को मिले।


                          

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