पाण्डु नदी को अस्तित्व का खतरा
नदियों का सौन्दर्य, नदियों की आगोश, आबो-हवा.... मंद-मंद प्रवाहित शीतलता शनै-शनै लुप्त हो गयी। नदियों की शीतलता मन-मस्तिष्क को प्रफुल्लित कर देती थी लेकिन अब यह सब बीते कल की बातें हो गयीं क्योंकि अब तो नदियां खुद अपने अस्तित्व के लिए ही संघर्ष करने लगीं।
राष्ट्रीय नदी गंगा की सहोदरी 'पाण्डु नदी" को ही लें तो उसका अस्तित्व खतरे में दिख रहा है क्योंकि अब नदी का मार्ग तो दिखता है लेकिन नदी में जल का 'प्रवाह" नहीं रहा। राष्ट्रीय नदी गंगा की सहोदरी 'पाण्डु नदी" उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद से प्रारम्भ होकर करीब एक सौ बीस किलोमीटर लम्बी यात्रा कर फतेहपुर में गंगा में विलीन हो जाती है। पाण्डु नदी का उद्गम भी गंगा की गोद से होता है आैर विलय भी गंगा की आगोश में होता है। दशकों से पाण्डु नदी का जल खेती-बारी को फलित-पुष्पित करता चला आ रहा था लेकिन उत्तर प्रदेश के ही कानपुर के आैद्योगिक क्षेत्र व बदइंतजामी ने पाण्डु नदी को कलुषित कर डाला क्योंकि कानपुर के पनकी, दादा नगर सहित कई आैद्योगिक क्षेत्रों की छह हजार से अधिक छोटे, बड़े व मंझोले श्रेणी के उद्योग, कल-कारखानों ने आैद्योगिक कचरा प्रवाहित कर नदी के जल को मैला-विषैला कर डाला। मेहरबान सिंह का पुरवा हो या कुंदौली या फिर बिनगंवा हो, इन सहित पचास से अधिक गांव-गिरांव की आबादी कभी पाण्डु नदी के जल से खेती-बारी को सिंचित-अभिसिंचित करती थी। पाण्डु नदी को कलुषित-दूषित-प्रदूषित करने में शासकीय व्यवस्थायें भी पीछे नहीं रहीं क्योंकि पनकी थर्मल पॉवर प्लांट की फ्लाई ऐश का एक बड़ा हिस्सा पाण्डु नदी की आगोश में हर दिन दफन किया जाता रहा। आप केवल परिकल्पना करें कि पॉवर प्लांट की गर्म फ्लाई ऐश पाण्डु नदी में फेंकी जाती होगी तो नदी के जल जन्तुओं का क्या हाल होता होगा....? क्योंकि गर्म फ्लाई ऐश से नदी का जल उबलने लगता है। ऐसे में जल जन्तुओं की मौत होना स्वाभाविक व लाजिमी है। पॉवर प्लांट से हर दिन आैसत चालीस टन फ्लाई ऐश नदी की आगोश में फेंकी जाती रही। इतना ही नहीं शहरी आबादी की गंदगी भी सीओडी नाला के जरिये सीधे पाण्डु नदी में गिरती है। मल-मूत्र व घरेलू गंदगी हर दिन आैसत बीस करोड़ लीटर नदी के जल को 'ब्लैक वॉटर" में तब्दील कर देता है।
ऐसा नहीं है कि पाण्डु नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए कोई पहल नहीं की गयी लेकिन पहल कोई सार्थक परिणाम नहीं दे सकी। रमन मैगसेसे एवार्ड से अलंकृत जल पुरुष राजेन्द्र सिंह ने नदी को बचाने के लिए हरकोर्ट बटलर टेक्नीकल इंस्टीट्यूट (एचबीटीआई) के छात्रों को जागरुक भी किया लेकिन पाण्डु नदी बच न सकी। पाण्डु नदी को बचाने के लिए शासकीय प्रयास के साथ साथ आबादी को भी जागरुक होना चाहिए कि हम न तो नदी को गंदा करेंगे आैर न किसी को नदी गंदी करने देंगे क्योंकि भले ही विकास के अनेक आयाम विकसित हो गये हों लेकिन पाण्डु नदी लाखों गरीबों-गांव-गिरांव के बाशिंदों व गवंईयों की लाइफ लाइन आज भी है। नदी के जल से आसपास के खेतों की सिचाई होती है तो वहीं पशुओं को पीने का पानी भी नदी में उपलब्ध होता है। एक सार्थक कोशिश की आवश्यकता है जिससे पाण्डु नदी का अस्तित्व बच सके।
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