बेकार नहीं कबाड़ करें बेहतर उपयोग
'पॉलीथिन-प्लास्टिक" उपयोग होने के बाद भले ही बेकार-कबाड़ समझ लिया जाता हो लेकिन उसकी उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता। हालांकि देश-दुनिया के स्थानीय निकायों को पॉलीथिन-प्लास्टिक के कारण 'सिस्टम" को चलाने में अनेक दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। साइंस एण्ड टेक्नॉलॉजी इंजीनियर्स ने 'पॉलीथिन-प्लास्टिक" के कबाड़ को 'विलेन" से 'हीरो" बना दिया क्योंकि देश-दुनिया में अब 'पॉलीथिन-प्लास्टिक" के कबाड़ का बेहतर उपयोग किया जा रहा है। 'पॉलीथिन-प्लास्टिक" के कबाड़ से कहीं सड़क बन रही है तो कहीं आलीशान 'आशियाना' आकार ले रहा है।
इसके लिए बस आपकी सोच सकारात्मक होनी चाहिए । विशेषज्ञों ने 'पॉलीथिन-प्लास्टिक" का अपेक्षित उपयोग कर करीब एक दशक के दौरान बंगलोर सहित कई इलाकों में दो हजार किलोमीटर लम्बी सड़कों का संजाल बिछा दिया। खास बात यह है कि 'पॉलीथिन-प्लास्टिक" का उपयोग कर बनी सड़कों का रखरखाव खर्च न्यूनतम हो गया तो वहीं इन सड़कों पर पानी व तापमान का कोई असर-प्रभाव नहीं होता। विशेषज्ञों की मानें तो देश में पॉलीथिन-प्लास्टिक का उत्पादन करने वाले बड़े उद्योगों की संख्या पच्चीस हजार से अधिक है। इनमें बड़ी तादाद में बाटल्स का उत्पादन होता है। विशेषज्ञों की मानें तो प्लास्टिक की बाटल्स को नष्ट होने में 450 वर्ष से भी अधिक समय लगता है। मैक्सिको हो या अफ्रीका, प्लास्टिक बाटल्स का आशियाना बनाने में बेहतर उपयोग हो रहा है। खास बात यह है कि प्लास्टिक बाटल्स से बने खास आशियाना बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं। मेक्सिको की क्वाड्रो इको साल्यूशंस के विशेषज्ञ प्लास्टिक की प्लेट्स बना रहे हैं। इन प्लेट्स का उपयोग आशियाना बनाने के लिए किया जा रहा है। करीब बीस वर्ग मीटर का आशियाना बनाने में करीब डेढ़ टन प्लास्टिक का उपयोग होता है। सामान्य तौर पर पचास से साठ वर्ग मीटर क्षेत्रफल का आशियाना बनाने में 3.50 लाख से चार लाख की धनराशि का खर्च होता है। नाइजीरिया में तो कबाड़ प्लास्टिक को पिघलाया भी नहीं जाता क्योंकि इसके लिए एक अन्य रास्ता खोज निकाला गया।
नाइजीरिया के बाशिंदों ने प्लास्टिक की बाटल्स को आशियाना बनाने में उपयोग किया। प्लास्टिक की खाली कबाड़ बाट्ल्स में बालू या मिट्टी भर कर नॉयलॉन की रस्सी से एक दूसरे को बांध दिया। बाद में इसे गारा से जोड़ दिया गया। इन आशियानों को भूकम्परोेधी भी माना जाता है। गौरतलब है कि दुनिया के तमाम देशों में सालाना करीब दस करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है। इसका बड़ा हिस्सा बाट्ल्स के रूप में होता है। इन बाट्ल्स का 80-90 प्रतिशत हिस्सा कबाड़ में तब्दील हो जाता है। इस कबाड़ का विकास कार्य में बेहतर उपयोग किया जा सकता है क्योंकि विकास एक सतत प्रक्रिया है। 'पॉलीथिन-प्लास्टिक" के कबाड़ का वैज्ञानिक निस्तारण सुनिश्चित होना चाहिए जिससे पॉलीथिन-प्लास्टिक का कबाड़ समाज-सोसाइटी के लिए खलनायक न बने बल्कि उसकी इमेज एक हीरो की तरह सामने आये। इस कबाड़ को वैज्ञानिक तौर तरीके से डिस्पोजल करने के लिए सांइस एण्ड टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे विकास को भी एक नया आयाम मिलेगा तो वहीं यह कबाड़ स्थानीय निकायों के सिस्टम को चलाने में बाधायें भी पैदा नहीं करेगा। इतना ही नहीं इससे रोजगार के कुछ नये अवसर भी पैदा होंगे। सरकार को इस दिशा में सार्थक पहल-प्रयास भी करने होंगे।
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