निर्मलता-अविरलता के लिए गंगा मांगे 'भागीरथ"
संकल्प करें तो क्या नहीं हो सकता.... बस मन में दृढ़इच्छाशक्ति हो.... विपरीत परिस्थितियों में कुछ कर गुजरने की लालसा हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। मातश्री गंगा को धरती पर लाने के लिये भागीरथ का संकल्प था। तप बल से भागीरथ मातश्री गंगा को धरती पर लाने में सफल रहे। अफसोस मातश्री गंगा की निर्मलता-अविरलता को अब हम सब बरकरार न रख सके क्योंकि व्यवस्था गंगधारा को कलुषित-दूषित करती रही।
गोमुख से गंगासागर तक करीब 2525 किलोमीटर लम्बी गंगधारा में नित्य अरबों लीटर सीवरेज व अन्य गंदगी गिर रही है। राजनीतिक लंबरदार हों या संत समाज हो या फिर गंगा के हित चिंतक.... आंदोलन से लेकर बात तो गंगा निर्मलीकरण-अविरलता की करेंगे किन्तु हमारे सार्थक प्रयास क्या होने चाहिए जिससे गंगा जल अपना निर्मल स्वरूप हासिल कर सके.... इस पर चिंतन-मनन-विमर्श कम ही दिखता है। 'हम सुधरेंगे-जग सुधरेगा" का दर्शन शास्त्र कहीं नहीं दिखता। गंगा जल की निर्मलता के लिए खुद हमें भी तो कुछ-कतिपय साध्य-साधन करने चाहिए। जी हां, गंगा निर्मलीकरण के लिए केवल शासन-सत्ता के भरोसे नहीं रहा जा सकता।
इसके सार्थक उपाय समाज को भी खोजने चाहिये। 'बूंद-बूंद से सागर भरने..." की कहावत चरितार्थ हो सकती है बशर्ते कुछ सार्थक उपाय चिंतन-मनन-विमर्श में आयें। कुछ इसी तरह का संकल्प काशी में लिया गया। 'भागीरथी सेवार्चन" ने संकल्प लिया कि गंगा को निर्मल भी बनायेंगे आैर गंगा जल को श्रद्धालुओं तक पहंुचायेंगे भी। खास तौर से देश के दूरदराज के इलाकों के श्रद्धालुओं-बाशिंदों तक गंगा जल पहंुचायेंगे, जिनकी पहंुच से दूर है गंगा-जल। 'भागीरथी सेवार्चन" ने गंगा-जल को पैकिंग कर देश के बाशिंदों-श्रद्धालुओं तक निशुल्क पहंुचाने की व्यवस्था की है। देश के किसी भी कोने के बाशिंदे-श्रद्धालु 'भागीरथी सेवार्चन" की वेबसाइट 'डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू भागीरथी सेवार्चन डॉट ओआरजी" का उपयोग कर गंगा जल निशुल्क हासिल कर सकते हैं। संस्था की मानें तो अब तक आठ हजार से अधिक श्रद्धालुओं-बाशिंदों को गंगा जल निशुल्क भेजा जा चुका है।
श्रद्धालुओं-बाशिंदों को सिर्फ कोरियर या डाक खर्च का भुगतान गंगा जल प्राप्त होने पर करना होगा। संस्था की मानें तो अब तक मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक व उडीसा सहित देश के विभिन्न इलाकों में निर्मल गंगा जल पैक कर भेजा जा चुका है। गंगा जल का निर्मलीकरण भी बिना मशीनीकरण से किया जाता है। 'भागीरथी सेवार्चन" ने गंगा को प्रदूषण से बचाने का भी संकल्प लिया है। पूजा-अर्चना में गंगा में बड़ी तादाद में फूल-मालाओं-पत्तियों का विसर्जन होता है। संस्था इस फूल-माला-पत्तियों को गंगा जल से संग्रहित कर जैविक खाद बनायेगी। इस जैविक खाद को किसानों को लागत मूल्य पर उपलब्ध कराया जायेगा। इससे गंगा जल में फूल-मालायें व पत्तियां नहीं सड़ेंगे आैर गंगा जल में प्रदूषण नहीं होगा भले ही यह प्रदूषण आशिंक हो लेकिन यह सार्थक कोशिश कहीं न कहीं अपना रचनात्मक प्रभाव डालेगी। सभ्य समाज को गंगा का अमृत्व जल निर्मल बनाने के लिए खुद को संकल्पि करना होगा कि कम से कम हम गंगा में कचरा व गंदगी फेंक कर गंदा नहीं करेंगे। कोई बड़ी बात नहीं कि यह संकल्प एक बड़े अभियान की शक्ल ले ले जिससे गंगा का अमृत जल निर्मल हो जाये। सोचना तो यही चाहिये कि हम सुधरेंगे-जग सुधरेगा।
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