मंगलामुखी का आशीर्वाद
शिक्षा-दीक्षा व्यक्ति को संस्कारवान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन करती है लेकिन देश में समाज के 'मंगलामुखी" किन्नरों के कल्याणार्थ कोई व्यापक या समग्रता वाली रीति-नीति नहीं दिखती जिससे किन्नर समाज खुद को सामाजिक व आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस करते। सवाल उठता है कि सर्वसमाज के कल्याण व मंगल की कामना करने वाले 'मंगलामुखी" किन्नरों के दु:ख-दर्द को कौन समझेगा...? जी हां, किन्नरों के दु:ख-दर्द को समझने के लिए संवेदना होनी चाहिए क्योंकि बिना संवेदना किसी भी व्यक्ति के दु:ख-दर्द को समझा जाना नहीं जा सकता।
'बीच" वाला कह कर अक्सर लोग-बाग 'मंगलामुखी" किन्नरों पर व्यंग्यबाण कसने से नहीं चूकते लेकिन कभी उनकी तकलीफों व पीड़ा को महसूस करने की जहमत नहीं उठाते क्योंकि तकलीफों को महसूस करने के लिए दिल में एक 'चुटकी संवेदना" होनी चाहिए। 'अभिजात्य" वर्ग से लेकर 'कॉमनमैन" तक को एक बार चिंतन अवश्य करना चाहिए कि आखिर 'मंगलामुखी" किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से कैसे जोड़ा जाये जिससे वह समाज में सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार हासिल कर सकें। केन्द्र सरकार हो या फिर देश की राज्य सरकारें हों... सभी को किन्नरों की शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य की रीति-नीति तय करनी चाहिए, जिससे वह समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें। व्यवसाय से लेकर आवास उपलब्ध कराने की दिशा तय करनी चाहिए जिससे उनमें स्वावलम्बन की भावना विकसित हो सके। हालांकि ऐसा नहीं हैं कि देश में 'मंगलामुखी" किन्नरों के लिए कुछ नहीं हो रहा है लेकिन प्रयास पर्याप्त नहीं हैं क्योंकि किन्नर समाज देश के गांव-गिरांव से लेकर मैट्रोपोलिटेन सिटीज तक फैला हुआ।
हालांकि किन्नरों की शिक्षा-दीक्षा व व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए बरेली में 'आस" नाम से स्कूल के रूप में सहपुर्नवास केन्द्र खोल गया है। इस स्कूल में सामान्य शिक्षा के साथ साथ रोजगारपरक व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। 'आस" से उनको उज्जवल भविष्य की रोशनी तो मिलेगी लेकिन यह रोशनी देश में फैलनी चाहिए क्योंकि तभी किन्नर समाज का अपेक्षित कल्याण हो सकेगा। देश में किन्नरों की संख्या नौ से दस लाख अनुमानित है लेकिन अधिसंख्य किन्नर अशिक्षा के अंधकार में भटकते दिखते हैं क्योंकि इनकी शिक्षा के लिए कोई व्यापक प्रबंध केन्द्र व राज्य सरकारों की रीतियों-नीतियों में नहीं दिखते। हालांकि इनको देश में मतदान से लेकर चुनाव लड़ने का अधिकार हासिल है। इसके बावजूद किन्नरों को समाज में हेय या तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है। फिलहाल किन्नर नाच-गा कर या बधाई देकर नजराना पाकर अपना गुजर-बसर करते हैं। तमिलनाडु में राशनकार्ड में इनका अपना एक अलग वजूद दिखता है तो केन्द्र सरकार ने पासपोर्ट में इनके लिए एक अलग कॉलम निधार्रित किया है। इतना ही नहीं भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ने देश के साढ़े बारह हजार से अधिक किन्नरों को 'आधार कार्ड" जारी कर एक पहचान देने की सार्थक कोशिश की है।
अभी हाल ही में पाकिस्तान ने किन्नरों को चुनाव में मत देने का अधिकार दिया है। सागर में आयोजित किन्नर सम्मेलन में देश भर से जुटे किन्नरों ने केन्द्र सरकार से एक स्वर से मांग की थी कि केन्द्र सरकार 'किन्नर आयोग" का गठन करे जिससे किन्नरों के हितों की रक्षा हो सके। अभी कुछ समय पहले लखनऊ नगर निगम की कार्यकारिणी ने फैसला लिया था कि किन्नरों का स्वास्थ्य परीक्षण कर पहचान-पत्र जारी करेगा। इतना ही नहीं नगर निगम के स्कूलों में किन्नरों को निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी। यह एक अच्छी व रचनात्मक पहल है। सरकारी नौकरियों में किन्नरों को आरक्षण देने का फैसला भी कार्यकारिणी ने लिया है लेकिन नगर निगम कार्यकारिणी का यह फैसला तभी लागू हो सकेगा, जब शासन भी इस पर अपनी मुहर अंकित करेगा। इसके बावजूद किन्नरों के लिए रीति-नीति निर्धारित करने की आवश्यता है जिससे मंगलामुखी किन्नर राष्ट्र व समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें।
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