अब पोलियो नहीं, टीबी की चुनौती
देश के बाशिंदों को खुश होना चाहिए कि अब भारत पोलियो मुक्त हो चुका है। जी हां, करीब एक दशक या इससे अधिक समय से भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में पोलियो संक्रमण के खिलाफ एक जंग छेड़ी गयी। पोलियो संक्रमण के खिलाफ इस जंग में सरकारी तंत्र से लेकर समाजसेवियों व एनजीओ की फौज जुट गयी। वैक्सीनेशन बाक्स लेकर स्वास्थ्य टोलियां घर-घर, गली-मोहल्लों में घूमने लगीं।
आखिरकार देश ने पोलियो संक्रमण के खिलाफ जंग जीत ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देश के स्वास्थ्य मंत्री को बाकायदा 'पोलियो मुक्त भारत" का प्रमाण पत्र सौंपा था। देश के बाशिंदों को खुश होना चाहिए कि अब उनके बच्चों को इस खतरनाक संक्रमण से कोई खतरा नहीं रहा। हालांकि उनको टीकाकरण की राह तो अपनानी ही होगी। विशेषज्ञों की मानें तो वर्ष 1996 में पोलियो पीड़ितों-प्रभावितों की संख्या पचास हजार सामने आयी थी लेकिन 10 साल से देश में एक भी पोलियो संक्रमित सामने नहीं आया। 10 साल पहले पश्चिम बंगाल में एक बालिका पोलियो संक्रमण से प्रभावित हुयी थी।
इसके बाद कोई संक्रमित बच्चा सामने नहीं आया। 'पोलियो मुक्त भारत" की खुशफहमी से देश को सतर्क व सावधान रहना चाहिए क्योंकि पोलियो संक्रमण से देश भले ही मुक्त हो गया हो लेकिन संक्रमण के खतरे अभी खत्म नहीं हुये हैं। देश के सामने तपेदिक अर्थात टीबी का संक्रमण एक बडे़ खतरे को लेकर खड़ा है। इस संक्रमण से बचना देश के सामने एक बड़ी चुनौती है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2006 में एक कार्य योजना तपेदिक अर्थात टीबी की रोकथाम के लिए बनायी थी। इसमें बीस अरब डालर खर्च करने की योजना थी। कोशिश थी कि टीबी की बीमारी को भले ही खत्म न किया जा सके लेकिन इतना अवश्य हो जाये कि वर्ष 2015 तक तपेदिक संक्रमण फैलना बंद हो जाये जिससे देश दुनिया के बाशिंदे तपेदिक की चपेट में न आने पायें।
विशेषज्ञों की मानें तो दुनिया में हर बीस सेकेण्ड में तपेदिक अर्थात टीबी से एक मौत हो जाती है। दुनिया में सालाना नब्बे लाख से एक करोड़ बाशिंदे प्रभावित-पीड़ित या संक्रमित होते हैं। चीन भी इस दिशा में शोध कर रहा है। टीबी से बचाव व मुक्ति के इस शोध पर चीन करीब दस करोड़ डालर खर्च कर रहा है।
हालात-ए-गौर करें तो देश में तपेदिक अर्थात टीबी संक्रमण के खतरे कम नहीं हैं क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद व्यवस्थायें सुनिश्चित नहीं हो सकीं। देश के करोड़ों बाशिंदों को कूड़ा करकट व गंदगी व संक्रमण के बीच जीवन का गुजर-बसर करना पड़ रहा है। संक्रमण से बचाव के लिए आवश्यक है कि बाशिंदों को साफ सुथरा रिहायशी परिवेश मिले। साफ सुथरा पीने का पानी उपलब्ध हो। बेहतर स्वास्थ्य सेवायें-सुविधायें उपलब्ध हों। टीबी के संक्रमण से बचाव के लिए टीकाकरण के साथ साथ अनुकूल परिवेश भी देश के बाशिंदों को उपलब्ध होगा, तभी सार्थक परिणाम आ सकेंगे। इस चुनौती को देश के नीति-नियंताओं को गम्भीरता से लेना चाहिए।
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