Thursday, 5 January 2017

काश प्रधानमंत्री देश को गोद लेते


            काश प्रधानमंत्री देश को गोद ले लेते। जी हां, यह कोई कटाक्ष या व्यंग्य नहीं बल्कि हकीकत है कि देश को गोद ले लेते तो शायद देश की तस्वीर ही बदल जाती। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सत्तासीन होते ही गांव का रंग-रंगत बदलने का खाका तैयार किया। 

        यह खाका 'सांसद आदर्श ग्राम योजना" रहा। भले ही भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य दलों के सांसदों ने आदर्श ग्राम योजना को क्रियान्वित होने या अमल में लाने में कुछ देर की हो लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योजना को बनाने के साथ ही अमल में लाने की कोशिश रंगत लाते हुये दिखा दी। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह योजना देश के गांवों के समग्र विकास को लेकर है। हकीकत तो यही है कि 'असल भारत तो गांव में ही बसता है"। भारत सरकार ने 11 अक्टूबर 2014 को देश.... खास तौर से गांववासियों के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना  लांच की। 

            संसदीय क्षेत्र का कोई भी एक गांव चुनना आैर उसका अपेक्षित विकास करना-कराना सांसद के उत्तरदायित्व में शामिल कर दिया गया। नीति-नियंताओं की सोच रही कि देश के छह लाख से अधिक गांव-गिरांव की पगडंड़ी से लेकर उसके गलियारों की रंगत बदली जाये। 'सांसद आदर्श ग्राम योजना" में फिलहाल ढ़ाई हजार गांव को आदर्श बनाने का लक्ष्य रखा गया। विषय विशेषज्ञों की मानें तो 'सांसद आदर्श ग्राम योजना" के तहत चयनित गांव को हर हाल में वर्ष 2016 तक पूर्ण व अपेक्षित विकास करने की रीति-नीति तय की गयी थी। वर्ष 2016 तक सांसद को एक गांव को पूर्ण विकसित करने के बाद अपेक्षित विकास के लिए संसदीय क्षेत्र के दो अन्य गांव का चयन कर उनको वर्ष 2019 तक विकसित करना-कराना है।          

            देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस के जयापुुर गांव को सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चयनित किया। बात जब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र की हो तो.... चाहे भारत सरकार के अफसर हों या फिर प्रदेश सरकार के अफसर हों, स्वभाविक है कि सभी का ध्यान सांसद अंगीकृत गांव की ओर होगा। प्रधानमंत्री के चयनित गांव जयापुर गांव को निखारने में गुजराती समुुदाय-समाज का अपेक्षित सहयोग व योगदान रहा। बनारस मुख्यालय से करीब पच्चीस किलोमीटर दूर तहसील राजा तालाब के निकट स्थित जयापुुर गांव आज देश-दुनिया में खास चर्चा में आ गया। करीब छह सौ परिवारों व चार हजार दो सौ आबादी वाला जयापुर गांव आज विकास की रोशनी से चकाचौंध दिखने लगा। जयापुर गांव भले ही बहुत अधिक आबादी वाला न हो लेकिन गांव के बाशिंदों को बचत खाता से पैसा निकालने के लिए अब शहर की राह नहीं पकड़नी पड़ती क्योंकि गांव में ही अब तीन-तीन सरकारी बैंक व एटीएम हैं। एटीएम में कार्ड लगाइये आैर खरे-करारे नोट लेकर घर जाइये। एक एटीएम काम  न करे तो दूसरा तो है। कभी मिट्टी के गली-गलियारों वाले जयापुर गांव की गलियां व सड़कें अब इण्टरलाकिंग टाइल्स से चमचमाती दिखती है। 

              गांव के करीब 18 किलोमीटर लम्बे गली-गलियारों में कहीं इण्टरलाकिंग टाइल्स लगाने का कार्य चल रहा है तो कहीं पूरा हो चुका है। बताते हैं कि इण्टरलाकिंग की इन गली-गलियारों से चालीस टन वजन का कोई भी वाहन आसानी से गुजर जायेगा तो भी इन सड़कों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसी गांव के एक तीन सौ वर्ष पुराने पेड़ को संरक्षित करने की कोशिशें चल रही हैं। इतना ही नहीं नैतिकता व आदर्श का ज्ञान देने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम पर आधारित नाटक का मंचन भी किया गया। संदेश यह था कि राम का आदर्श अपनायें। गांव बदलेगा, समाज बदलेगा... देश बदलेगा। कहने का आशय यह है कि विकास केवल कंक्रीट तक ही सीमित न रहे। सामाजिक बदलाव भी दिखे। रोशनी के लिए जयापुुर में 135 सोलर लाइट्स लगे हैं। दर्जनों बायो टायलेट गांव में हैं लेकिन सफाई हो या रोशनी, अन्तर्मन तक हो। अभी देश के प्रधानमंत्री ने जानना चाहा कि उनके गोद लिये गांव जयापुुर में कितने पौधे लगाये गये आैर कितने घरों-परिवारों में बच्चियों ने जन्म लिया। यह एक सामाजिक दृष्टि से दिखने वाला फैसला है। बेटी हो या पौधा दोनों की ही देखभाल आवश्यक  है। 

           भारतीय राजनीति के अन्य योद्धा समाजवादी पार्टी के मुखिया मुुलायम सिंह यादव ने भी अपनी सोच व इच्छाशक्ति से अपने गांव सैफई को राष्ट्रीय स्तर पर उभारा। सैफई में आज क्या नहीं है ? चाहे मेडिकल कालेज की बात हो या पब्लिक स्कूल की हो या चमचमाती सड़कों का संजाल हो। सभी कुछ तो है सैफई में। उत्तर प्रदेश के इटावा मुख्यालय से करीब बाइस किलोमीटर दूर सैफई में विशाल कृषक सभागार है तो पहलवानी से लेकर अन्य खेलकूद को प्रोत्साहित करने वाला विशाल मास्टर चंदगीराम स्टेडियम भी है। नहर इतनी साफ कि शायद प्रदेश में कहीं अन्य न दिखे। कभी एक छोटे से गांव के तौर पर जाना-पहचाने जाने वाला सैफई आज अपनी आगोश में हवाई पट्टी भी रखता है। आशय यह है कि इच्छाशक्ति हो तो आप कुछ भी कर सकते हैं वर्ना बहाने तो हजार हैं। 

       देश में ताकतवर व राष्ट्रीय राजनीति में अपना प्रभाव-दबदबा रखने वाले नेताओं की कोई कमी नहीं है। आईएएस, आईआरएस, आईपीएस सहित दर्जनाों प्रभावशााली सेवाओं से ताल्लुक रखने वाली हस्तियां हैं। बात चाहे राजनीति हस्तियों की हो या फिर प्रशासनिक हस्तियों की हो या फिर आैद्योगिक घरानों की हो.... इच्छाशक्ति हो तो कम से कम अपने गृह जनपद, गृह-गांव-गिरांव की तस्वीर आसानी से बदल सकते हैं। यह सब कुछ मुमकिन है शासकीय योजनाओं व शासकीय व्यवस्थाओं से.... बस केवल अपने दबााव-प्रभाव का जनहित में उपयोग करने की। इसके बाद शायद कोई वजह न होगी कि देश के गांवों की तस्वीर न बदले। इच्छाशक्ति हो तो देश के छह लाख गांव को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना न तो कोई बड़ी बात होगी आैर न ही नामुमकिन ही दिखेगा।


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