Wednesday, 11 January 2017

गांव को 'स्मार्ट" बनाने की चुनौती


      'इच्छाशक्ति" हो तो कोई भी छोटा-बड़ा कार्य नामुमकिन नहीं। किसी भी विकास योजना या कार्य को अंजाम देने के लिए आवश्यक है कि इच्छाशक्ति हो.... राजनीतिक नफा-नुकसान को नजर अंदाज कर परस्पर सहयोग की भावना हो.... लक्ष्य पानेे की चुनौती स्वीकार करने का साहस हो.... लक्ष्य हासिल करने के लिए हर कसौटी को कसने का मनोयोग हो।

        दिल्ली को वल्र्ड क्लास सिटी बनाने की कोशिशें आैर देश के 98 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद के साथ ही अब गांव-गिरांव का पिछड़ापन दूर करने की परिकल्पना को पंख लगे दिख रहे। केन्द्र सरकार ने गांव-गिरांव को भी स्मार्ट बनाने की परिकल्पना की है। सोच अच्छी है, गांव को भी स्मार्ट बनना चाहिए। होना तो यह चाहिए कि गांव का अपना सोंधापन भी बरकरार रहे आैर गांव बुनियादी सेवाओं-सुविधाओं से लबरेज हों। केवल कंक्रीट का ढ़ांचा ही विकास का पर्याप्त आधार नहीं होता। इसमें स्वास्थ्य सेवाओं व बैंकिंग सिस्टम से लेकर रोजगार के पर्याप्त अवसरों की उपलब्धता भी सुनिश्चित होनी चाहिए। 

             शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजी-रोजगार के बिना 'स्मार्टनेस" का कहीं कोई मतलब नहीं। गरीब किसान या गरीब मजदूर भूखा पेट होगा तो उस गांव में चमकदार सड़कों का होना व रोशनी की पर्याप्त व्यवस्थाओं का कोई विशेष मतलब नहीं होगा। मौजूदा हालात में 'स्मार्ट गांव" बनाना किसी चुनौती से कम नहीं। जी हां, देश के गांव-गिरांव को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का विचार-मंथन व योजना निश्चय ही एक सराहनीय फैसला है लेकिन परिकल्पना या इस सपने को विधिवत साकार करना एक बड़ी चुनौती है। हालात यह हैं कि देश के अधिसंख्यक गांव-गिरांव आज भी बद से बदहाल दशाओं की गिरफ्त हैं क्योंकि कहीं पीने का पानी नहीं है तो कहीं बिजली नहीं तो कहीं सम्पर्क मार्ग अर्थात सड़क तक नहीं है। 

          देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सत्तासीन होते ही गांव-गिरांव की रंग-रंगत बदलने का फैसला किया था। यह खाका 'सांसद आदर्श ग्राम योजना" के तौर पर सामने आया। भले ही भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य दलों के सांसदों ने सांसद आदर्श ग्राम योजना को क्रियान्वित होने या अमल में लाने में कुछ देर की हो लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योजना को बनाने के साथ ही अमल में लाने की कोशिश रंगत लाते हुये दिखा दी। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह योजना देश के गांवों के समग्र विकास को लेकर है। हकीकत तो यही है कि 'असल भारत तो गांव में ही बसता है"।

            भारत सरकार ने 11 अक्टूबर 2014 को देश.... खास तौर से गांववासियों के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना  लांच की। संसदीय क्षेत्र का कोई भी एक गांव चुनना आैर उसका अपेक्षित विकास करना-कराना सांसद के उत्तरदायित्व में शामिल कर दिया गया। नीति-नियंताओं की सोच रही कि देश के छह लाख से अधिक गांव-गिरांव की पगडंड़ी से लेकर उसके गलियारों की रंगत बदली जाये। 'सांसद आदर्श ग्राम योजना" में फिलहाल ढ़ाई हजार गांव को आदर्श बनाने का लक्ष्य रखा गया है। विशेषज्ञों की मानें तो 'सांसद आदर्श ग्राम योजना" के तहत चयनित गांव को हर हाल में वर्ष 2016 तक पूर्ण व अपेक्षित विकास करने की रीति-नीति तय की गयी थी। वर्ष 2016 तक सांसद को एक गांव को पूर्ण विकसित करने के बाद अपेक्षित विकास के लिए संसदीय क्षेत्र के दो अन्य गांव का चयन कर उनको वर्ष 2019 तक विकसित करना-कराना है। 

       अभी सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत चयनित गांव का पूर्ण विकसित होने का इंतजार ही कर रहे थे कि भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी की तर्ज पर गांव-गिरांव को स्मार्ट बनाने का फैसला लिया। फिलहाल स्मार्ट गांव बनाने की इस योजना के पहले चरण में सिर्फ तीन सौ गांव को स्मार्ट बनाने की कोशिश है। भारत सरकार गांव को स्मार्ट बनाने पर फिलहाल करीब पांच हजार दो सौ करोड़ की धनराशि खर्च करेगी। परिकल्पना है कि इस योजना के तहत गांव का सामाजिक, आर्थिक व बुनियादी ढ़ांचागत विकास किया जाये। सांसद आदर्श ग्राम योजना में गांव का पूर्ण विकास करने का लक्ष्य दो वर्ष रखा गया था तो गांव को स्मार्ट बनाने के लिए तीन वर्ष की अवधि तय की गयी है। 

           विशेषज्ञों की मानें तो तीन सौ गांव समूह का अपेक्षित विकास होने के बाद भारत सरकार इस योजना को देश भर में लागू करेगी जिससे गांव-गिरांव का अपेक्षित विकास हो सके आैर गांव के बाशिंदे विकास की मुख्यधारा से जुड़ सकें। विशेषज्ञों की मानें तो स्मार्ट गांव बनाने की चयन प्रक्रिया भी स्मार्ट होगी। भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के वैज्ञानिक, वैज्ञानिक तकनीकि से गांव का चयन करेंगे। इन गांव के विकास का उत्तरदायित्व प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन के सुपुुर्द होगा। भारत सरकार का एलान है कि गांव के विकास पर खर्च करने के लिए तीस प्रतिशत धनराशि अधिक मुहैया करायी जायेगी। अब गांव के चयन से लेकर उसके अपेक्षित विकास की चुनौती है क्योंकि गांव को स्मार्ट बनाने की योजना भारत सरकार की है तो विकास का उत्तरदायित्व प्रदेश सरकार के कंधों पर रहेगा। ऐसे में इच्छाशक्ति, अहम व राजनीतिक नफा-नुकसान का सोच-विचार कहीं न कहीं आड़े आयेगा। 

           करीब एक दशक पहले केन्द्र सरकार ने शहर की बुनियादी सेवाओं-सुविधाओं के सुधार व गंगा में प्रदूषण जाने से रोकने के लिए जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन योजना दी थी। इस योजना के लिए एक लाख करोड़ से अधिक धनराशि के खर्च का प्रावधान किया गया। खास बात यह रही कि अधिसंख्य प्रोजेक्ट देश के दक्षिण भारतीय प्रदेशों ने झटक लिये। उत्तर भारतीय प्रदेशों में जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन के प्रोजेक्ट अधिसंख्य शहरों में अभी तक पूर्ण नहीं हो सके। स्मार्ट गांव के चयन में ग्राम पंचायतों के गांव का समूह तैयार किया जायेगा। खास तौर से इस योजना में ऐसे गांव का चयन किया जायेगा जिनकी आबादी पच्चीस हजार से पचास हजार के बीच हो। पहाड़ी, रेगिस्तान व आदिवासी क्षेत्रों में आबादी का यह मानक पांच हजार से पन्द्रह हजार के बीच रहेगा।

           स्मार्ट गांव में खास तौर से विकास के क्रम में यह सुनिश्चित किया जायेगा  कि कौशल विकास को आर्थिक गतिविधियों-क्रियाकलाप से जोड़ा जाये, कृषि आधारित उद्योग विकसित हो, डिजिटल शिक्षा की व्यवस्था हो, स्वच्छता हो, पेयजल की पर्याप्त व अपेक्षित व्यवस्था हो, कूड़ा-कचरा प्रबंधन की व्यवस्था हो, नाला-नाली व खरंजा सब व्यवस्थित हों, स्ट्रीट लाइट्स के पर्याप्त प्रबंध हों, चलता फिरता स्वास्थ्य केन्द्र हो, उच्च शिक्षा की व्यवस्था हो, आसपास के गांव को जोड़ने के लिए पर्याप्त सम्पर्क मार्ग-सड़कें हों, नागरिक सुविधा केन्द्र हों, बिजली आपूर्ति के अपेक्षित प्रबंध हों, ई-ग्राम व सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था हो एवं एलपीजी गैस सहित सभी आवश्यक सेवायें-सुविधायें सुनिश्चित हों। अब सुदूरवर्ती गांव में यह सभी सेवायें-सुविधायें विकसित करना या जुटाना कोई आसान तो नहीं। 

          जाहिर सी बात है कि यह नीति नियंताओं से लेकर कार्यदायी संस्थाओं के लिए एक बड़ी चुनौती से कम न होगा। अब देखें तो पायेंगे कि देश आजाद होने के बाद अभी तक शहरी क्षेत्र से लगे हजारों गांव में बिजली की रोशनी तक नहीं पहंुच सकी। आबादी को देखें तो करीब पच्चासी करोड़ आबादी अभी भी गांव-गिरांव में ही निवास करती है।  आबादी के इस बड़े हिस्से को मूलभूत बुनियादी सेवायें-सुविधायें तो मिलनी ही चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि नीति नियंताओं से लेकर कार्यदायी संस्थाओं में अपेक्षित विकास की इच्छाशक्ति हो। तर्क-कुतर्क के बजाय, सोच यह होनी चाहिए कि आखिर कार्य को अंजाम कैसे दिया जाये। यह सोच ही गांव-गिरांव को स्मार्ट बनायेगी। केवल आर्थिक संसाधन उपलब्ध होने से गांव स्मार्ट नहीं हो सकेंगे। इसके लिए सभी का लक्ष्य सिर्फ गांव को स्मार्ट बनाने का होना चाहिए।  

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