बालिकाओं का खिलंदड़पन बचायें
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" को आंदोलन बनाने की आखिर आवश्यकता क्यों पड़ी ? जी हां, देश का सर्वसमाज... कोई भी माता-पिता... कोई भी अभिभावक बेटियों को वात्सल्य, स्नेह, प्रेम-प्यार व अपनापन से लबरेज रखता है लेकिन कहीं न कहीं उसके अंर्तमन में शंकायें-चिंतायें घेरती है जिससे सर्वसमाज बेटियों की सुरक्षा-सरंक्षा से लेकर उसके बेहतर भविष्य को लेकर चिंतित रहता है। बात चाहे दहेज उत्पीड़न की हो या सामाजिक सुरक्षा-संरक्षा की हो या फिर आर्थिक सुरक्षा-संरक्षा की हो।
शासन-सत्ता से लेकर सर्वसमाज को बालिका सुरक्षा-संरक्षा का ताना-बाना खड़ा करना चाहिए। इसके लिए कानून से कहीं अधिक नैतिक बल एवं आत्मविश्वास का बलवती होना आवश्यक है क्योंकि कानून तो बहुतायत में बनते-बिगड़ते हैं लेकिन नैतिक बल व आत्मबल सामाजिक दिशा बदलने का एक सशक्त संबल रखता है। बालिकाओं को सुरक्षा-संरक्षा देने में महिलाओं को ही मुख्य तौर से आगे आना चाहिए क्योंकि महिलाओं के संरक्षण में ही बालिका पलती, बढ़ती व पढ़ती है।
बालिकाओं की शिक्षा-दीक्षा व संस्कार में भी भेदभाव नहीं होना चाहिए। सर्वसमाज खास तौर से महिलाओं को अपनी इस सोच में बदलाव-परिवर्तन लाना चाहिए कि बेटी तो पराया धन है... उसे तो पराये घर जाना है...। बेटी घर की मान-मर्यादा भी तो है। इसका भी तो ख्याल रखना चाहिए। सोच बदलेंगे तो बेटी पढ़ेगी भी आैर बेटी बढ़ेगी भी। बेटियां बोझ नहीं होतीं... बेटियां तो घर परिवार की इज्जत-मान-मर्यादा होती है। भारत सरकार ने 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ" आंदोलन का शंखनाद किया। जाहिर सी बात है कि बालक-बालिकाओं के असंतुलन से सर्वसमाज ही नहीं देश की सरकार भी चिंतित है वर्ना कोई वजह नहीं थी कि इस आंदोलन को आयाम दिया जाये।
साफ जाहिर है कि बालक-बालिकाओं का यह असंतुलन खत्म नहीं किया गया तो सामाजिक असंतुलन बिगड़ेगा। भारत सरकार ने देश के सामने सवाल यूं ही नहीं खड़ा कर दिया कि 'बेटी नहीं बचाओगे तो बहू कहां से लाओगे".... यह कड़ुवा सच है। इस पर सर्वसमाज को गम्भीरता से चिंतन-मनन-विचार-विमर्श करना चाहिए। आधी आबादी के लिए गम्भीर होना पड़ेगा। कहीं ऐसा न हो कि कल आपको यह न सोचना पड़े कि बेटे के लिए बहू कहां से लायेंगे ? इस लिए बेटियों को सुरक्षा-संरक्षा दीजिए। चाहे बेटी आपकी हो या फिर बेटी आपके पड़ोसी की हो। सोच रखिये कि बेटी-बेटी है। बेटियों के लिए सामाजिक सुरक्षा का आवरण बनना चाहिए।
भारत सरकार व सर्वसमाज 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" पर संयुक्त कदमताल करेगा तो कोई वजह नहीं है कि बालक-बालिकाओं का यह असंतुलन खत्म न हो। फिर अगर देखेंगे तो अपने ही देश के दक्षिण भारतीय प्रांतों में बालकों के अनुपात में बालिकाओं की संख्या कहीं अधिक है। भारत सरकार ने 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" योजना प्रारंभ में देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सौ चुनिंदा जिलों में राष्ट्रीय अभियान के तौर पर लेने का फैसला लिया है। खास तौर से जहां बालक-बालिकाओं का अनुपात बेहद कम है। खास बात यह है कि 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" योजना का शुभारंभ हरियाणा से इसलिए किया गया क्योंकि हरियाणा में बालक-बालिका अनुपात देश में सबसे कम यानी अत्यंत खराब स्थिति में है।
'कन्या भ्रूण हत्या" जैसी घटनायें बदस्तूर जारी हैं। इस जघन्य अपराध-पाप के लिये कोई और नहीं, बल्कि इन अजन्मी बेटियों के नासमझ माता-पिता या यूं कहें कि इनके अपने ही जिम्मेदार हैं। कहीं शिक्षित तो झोला छाप डाक्टर घरेलू तरीकों से अजन्मी बच्चियों की जान ले रहे हैं। कानून के बावजूद गांव, देहात से लेकर मेगाटाउन्स में कहीं खुले आम तो कहीं लुके-छिपे कन्या भ्रूण हत्या हो रही है। गौर करें तो कोई आैर वजह नहीं है कि बालिकाओं का अनुपात विराम लेता। देश का इतिहास गवाह है कि देश की इसी धरती पर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, किरण बेदी, महादेवी वर्मा, ऐश्वर्या राय बच्चन, किरण शा मजुमदार, सानिया मिर्जा, सानिया नेहवाल, चंदा कोचर और लता मंगेशकर जैसी भारतीय समाज को गर्व से भर देने वाली महिलाओं ने जन्म लिया।
इसके बावजूद यह स्थिति बेहद दुखद... इस बात को शायद लोग भूल जाते हैं कि बेटियां भी अपने माता-पिता का नाम रोशन करती हैं और वक्त आने पर, खासकर बुढ़ापे में उनका सहारा भी बन सकती हैं। भारत सरकार, गैर सरकारी संगठन इस घृणित सामाजिक रवैया को रोकने की कोशिशों के बावजूद कन्या भ्रूण हत्याएं हो रही हैं। भारत सरकार ने देश के माथे पर लगे इस बदनुमा दाग को धोने-साफ करने का निर्णय लिया है। इसी के तहत 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" को एक आंदोलन....एक अभियान के रूप में लेने की घोषणा भारत सरकार ने की है। 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ" योजना निश्चय ही देश के सामाजिक परिवेश में एक आयाम लेगी।
इस योजना का मुख्य लक्ष्य 'बालक-बालिका" अनुपात को बढ़ाना है। बालक-बालिका अनुपात से यह पता चलता है कि किसी भी राज्य या शहर अथवा देश में हर 1000 बालकों के अनुपात में कितनी बालिकाएं हैं। एक दुखद सच यह है कि कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं के कारण भारत में यह अनुपात लगातार नीचे जा रहा है। वर्ष 1991 में 1000 बालकों पर 945 बालिकाएं थीं, लेकिन वर्ष 2011 में 1000 बालकों पर 918 बालिकाएं थीं। आंकड़ों की मानें तो इस दौरान हरियाणा में सबसे कम यानि 877 महिलायें जबकि केरल में सर्वाधिक यानि 1000 के पीछे 1084 महिलायें हैं। देखें तो इस स्थिति में सुधार लाने के लिये व बेटियों को उनका हक दिलाने के लिए यह अभियान भारत सरकार ने शुरू किया है।
इस योजना का मुख्य लक्ष्य 'बालक-बालिका" अनुपात को बढ़ाना है। बालक-बालिका अनुपात से यह पता चलता है कि किसी भी राज्य या शहर अथवा देश में हर 1000 बालकों के अनुपात में कितनी बालिकाएं हैं। एक दुखद सच यह है कि कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं के कारण भारत में यह अनुपात लगातार नीचे जा रहा है। वर्ष 1991 में 1000 बालकों पर 945 बालिकाएं थीं, लेकिन वर्ष 2011 में 1000 बालकों पर 918 बालिकाएं थीं। आंकड़ों की मानें तो इस दौरान हरियाणा में सबसे कम यानि 877 महिलायें जबकि केरल में सर्वाधिक यानि 1000 के पीछे 1084 महिलायें हैं। देखें तो इस स्थिति में सुधार लाने के लिये व बेटियों को उनका हक दिलाने के लिए यह अभियान भारत सरकार ने शुरू किया है।
जिससेबालिकाओं के साथ भेदभाव खत्म हो। इतना ही नहीं कन्या भ्रूण हत्या रोकने की दिशा में तेजी व प्रभावी कदम उठा कर भारत सरकार बेहतर आज और सुनहरा कल बनाने की कोशिश में है। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर बेटियों के साथ भेदभाव खत्म करने और समानता का माहौल बनाने की अपील की गयी थी। 'बेटी बचाओ-बेटी बढ़ाओ" योजना भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं स्वास्थ्य मंत्रालय की संयुक्त कोशिश है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अनुसार यह योजना लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने और उन्हें सुरक्षा पर भी केंद्रित होगी।
'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान के तहत मुख्य तौर पर ग्राम पंचायतों में गुड्डा व गुड्डी के बोर्ड लगाये जायेंगे। प्रत्येक माह इस बोर्ड में गांव के बालक-बालिका अनुपात को प्रदर्शित किया जाएगा। जिससे वस्तुस्थिति से गांव के बाशिंदे वाकिफ हो सकें। ग्राम पंचायत क्षेत्र में लड़की का जन्म होने पर उसके परिवार को सरकार तोहफा या उपहार भेजेगी। ग्राम पंचायत साल में कम से कम एक दर्जन लड़कियों का जन्मदिन मनाएगी। जिससे परिवारों का हौसला बढ़ेगा। ग्राम पंचायत क्षेत्र में बाशिंदों को 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का संकल्प व शपथ दिलायी जायेगी। गांव में बालक-बालिका अनुपात बढ़ता है तो वहां की ग्राम पंचायत को सम्मानित किया जाएगा।
इस योजना के तहत बाल विवाह पर अंकुश लगाने की भी कोशिश है क्योंकि बाल विवाह के लिए अब ग्राम प्रधान को जिम्मेदार व उत्तरदायी माना जाएगा। गांव में बाल विवाह होने की दशा में ग्राम प्रधान के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित कराने की व्यवस्था है। कन्या भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाने के लिए बाशिंदों को जागरुक किया जायेगा। जागरुकता के लिए स्थानीय स्कूलों और कालेजों का सहयोग लिया जाएगा। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से गर्भावस्था के पंजीकरण को प्रोत्साहित करेगा। साथ ही सभी आवश्यक व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करेगा।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय बालिकाओं का पंजीकरण सुनिश्चित करायेगा, स्कूलों में बालिकाओं की अनुपस्थिति दर में कमी लाने की कोशिश करेगा, विद्यालयों में बालिकाओं के अनुरूप मानक बनाने की रीति तय करेगा, शिक्षा के अधिकार अधिनियम पर सख्ती से अमल सुनिश्चित कराये जायेंगे, स्कूलों में बालिकाओं के लिए शौचालय का निर्माण सुनिश्चित कराया जायेगा।
बालिकाओं के सशक्तिकरण पर आधारित इस महत्वपूर्ण योजना 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" पर केंद्र सरकार फिलहाल 100 करोड़ रुपये खर्च करेगी। कन्या भ्रूण हत्या करने वालों पर सख्त कार्रवाई की व्यवस्था होनी चाहिए। जिससे ऐसा करने वालों के मन में भय पैदा हो। जाहिर है कि इसके लिए एक कड़ा कानून बनाना होगा। इसी तरह गर्भधारण व बालक-बालिका के जन्म से पहले जांच करने वाले डाक्टरों पर भी कड़ाई से अकंुश लगना चाहिये।
स्कूली शिक्षा की अवधि में बालिकाओं के साथ समानता का व्यवहार व भाव बालकों के मन-मस्तिष्क में पैदा करने की कोशिश भी होनी चाहिये। तभी बालक-बालिका के बीच भेदभाव करने से बच सकेंगे। आर्थिक संकट में भी बालिकाओं को शिक्षित कराने वाले अभिभावकों को सार्वजनिक तौर पर पुरस्कृत व सम्मानित किया जाना चाहिए। जिससे समाज के लिए वह नजीर बनें। इससे संकुचित सोच वाले लोग उनसे प्रेरणा ले सकेंगे। इसके साथ ही बहादुरी के कारनामे दिखाने वाली बालिकाओं-लड़कियों को सार्वजनिक तौर पर सम्मानित किया जाना चाहिए।
बालिकाओं एवं महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मसलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जिससे बालिकायें स्वस्थ्य रहें। इसके लिए विशेष सरकारी एवं निजी अस्पताल खोले जाने की जरूरत है। इसी तरह नई पीढ़ी का मार्गदर्शन भी अभी से ही करना जरूरी है। इन सब का सकारात्मक असर हमारे समाज पर अवश्य पड़ेगा और आगे चलकर लड़कियों एवं महिलाओं के साथ समानता का भाव लोगों के मन में पैदा होगा।
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