प्रदूषण नियंत्रण नहीं आसान, बनें सख्त कानून
कूड़ा कचरा को अब कूड़ा नहीं समझना चाहिए। जी हां, कूड़ा कचरा का अपेक्षित व वैज्ञानिक उपयोग सुनिश्चित हो जाये तो कोई अतिश्योक्ति न होगी कि कूड़ा कचरा राष्ट्रीय आय के एक बड़े संसाधन के तौर पर विकसित हो जाये।
भाभा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डा. एस.पी. काले की मानें तो देश में कूड़ा प्रबंधन के क्षेत्र में वैज्ञानिक शोध व तकनीकि अपनाने की आवश्यकता है। कूड़ा प्रबंधन में वैज्ञानिक शोध व अत्याधुनिक तौर तरीके अपनाये गये। जिससे बेहद अच्छे, सार्थक व उपयोगी परिणाम सामने आये हैं। चेन्नई, मुम्बई व पूणे आदि शहरों में वैज्ञानिक तौर तरीकों ने कूड़ा प्रबंधन की दशा व दिशा ही बदल दी। शोधकर्ताओं व वैज्ञानिकों की मानें तो अब कूड़ा कचरा नहीं रहा बल्कि उसने एक सम्पत्ति या एसेस्ट्स का रूप ले लिया। एक टन कचरा से काफी तादाद में मिथेन गैस उपलब्ध हो जाती है। आंकलन है कि देश में एक लाख टन कचरा नित्य निकलता है।
अब इस कूड़ा कचरा का सही एवं अपेक्षित वैज्ञानिक प्रबंधन किया जाये तो आसानी से रोजाना दो लाख गैस सिलेण्डर तैयार किये जा सकते हैं। इससे एक तो गैस उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी तो वहीं कूड़ा कचरा निस्तारण-प्रबंधन की अत्याधुनिक तौर तरीकों को बल मिलेगा। ऐसा नहीं है कि देश में कूड़ा प्रबंधन को लेकर वैज्ञानिक शोध नहीं हो रहे हैं लेकिन इन शोध को प्रयोगशालाओं से निकाल कर मूर्तरूप में लाना होगा या व्यवहारिक धरातल पर अमल करना होगा। भाभा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक डा. काले की मानें तो शोध के उपरांत एक खास बकेट (विशेष टोकरी) विकसित की गयी है।
इस टोकरी की खासियत है कि कचरा खुद ब खुद खाद में तब्दील हो जाता है। इस टोकरी का उपयोग घरेलू कूड़ा कचरा के निस्तारण में आसानी से किया जा सकता है। घरेलू कचरा इस खास टोकरी में एकत्र करते जायें। इसमें खाद्य सामग्री का कचरा खास तौर से फल, सब्जियां, छीलन व किचन का कचरा एकत्र किया जा सकता है। टोकरी में पडे़ इस कचरा से न तो कोई बदबू-सडांध आयेगी आैर न किसी प्रकार का कोई संक्रमण ही फैलेगा। इतना ही नहीं न तो कोई लार्वा बनेगा आैर न कचरा पर मक्खियां ही दिखेंगी। एक से दो सप्ताह में यह कचरा स्वत: खाद में तब्दील हो जायेगा। इस कचरा का उपयोग घरेलू या सार्वजनिक बाग-बगीचा में किया जा सकता है। इसी प्रकार ठोस कूड़ा, इलेक्ट्रानिक कूड़ा, जैव चिकित्सा कूड़ा, प्लास्टिक कूड़ा कचरा का निस्तारण किया जा सकता है। भले ही इनमें से कतिपय प्रकार के कूड़ा कचरा के निस्तारण से कोई लाभ न हो लेकिन इतना तो अवश्य होगा कि खतरनाक कूड़ा का अपेक्षित निस्तारण तो हो जायेगा।
प्रदूषण चाहे कूड़ा कचरा जनित हो या फिर अन्य किसी भी प्रकार का प्रदूषण हो, पर्यावरण से लेकर इंसान तक सभी के लिए खतरनाक व संक्रमण का कारक है। विशेषज्ञों की मानें तो यह प्रदूषण कैंसर, एलर्जी, अस्थमा सहित अनेक प्रकार की व्याधियां देता है तो वहीं शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर करता है। हालांकि ऐसा नहीं कि केन्द्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकारें चिंतित नहीं हैं लेकिन अभी तक कहीं कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आये। करीब एक से डेढ़ दशक पहले केन्द्र सरकार ने जवाहर लाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूवल मिशन के तहत देश भर के नगर निकायों को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की परियोजनायें दी थी। हालात यह रहे कि इन अधिसंख्य नगर निकायों में अभी तक परियोजनायें अपेक्षित आकार नहीं ले सकीं।
उद्योग उत्पादित प्रदूषण भी कम खतरनाक नहीं होता। उद्योग उत्पादित प्रदूषण में कार्बनडाई आक्साइड धरती व पर्यावरण सहित चौतरफा प्रदूषण फैलाता है। रसायनिक उद्योग, तेल रिफायनरीज, आणविक अपशिष्ठ स्थल, कूड़ाघर, प्लास्टिक-पॉलीथिन उद्योग, कार-मोटर साइकिल उद्योग, पशुवधशाला आदि गम्भीर व खतरनाक प्रदूषण पैदा करते हैं। इन कल-कारखानों से हाईड्रोकार्बन, भारी तत्व में लेड, कैडमियम, क्रोमियम, जिंक, आर्सेनिक, बैनजीन आदि प्रदूषण तत्व होते हैं। ऐसा नहीं कि देश में प्रदूषण पर अंकुश या नियंत्रण के लिए कानून नहीं हैं।
केन्द्र की सत्ता में आने वाली करीब-करीब हर सरकार कानून बनाती है। बात तो तब है, जब कानून बनें आैर सख्ती के साथ लागू भी हों क्योंकि तभी कानून की सार्थकता है। कानून का लाभ देश की आम आवाम को मिलना चाहिए क्योंकि तभी कानून की सार्थकता है। हालांकि केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने देश के दो हजार उद्योगों को नोटिस जारी किया है। नोटिस का मंतव्य है कि उद्योग संचालक स्थल पर ऐसे संयंत्र लगायें जिससे प्रदूषण के स्तर को मापा जा सके। अब मंत्रालय की मानें तो एक हजार उद्योग संचालकों ने संयंत्र लगा भी लिये। मंत्रालय के लिए नोटिस जारी करना ही पर्याप्त न होगा। नोटिस पर अमल भी होना चाहिए क्योंकि मंत्रालय की रीतियां-नीतियां अमल में आयेंगी तो कहीं न कहीं प्रदूषण नियंत्रण का प्रभाव दिखेगा।
हालात यह हैं कि देश खास तौर से देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण कहीं अधिक या यूं कहें कि प्रदूषण खतरनाक व गम्भीरतम स्थान तक पहंुच चुका है। हालांकि भारत सरकार देश के बाशिंदों को भरोसा दिलाती है कि सरकार शीघ्र ही इस गम्भीर व खतरनाक समस्या का हल निकालेगी। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो दिल्ली में डीजल चालित वाहनों के परिचालन पर अंकुश लगाने की कोशिश की गयी। जिससे दिल्ली के वाहन जनित प्रदूषण को कम किया जा सके। अब विशेषज्ञों की मानें तो विश्व के विश्वस्तरीय परिवेश वाले लंदन में भी प्रदूषण कम नहीं है। लंदन में पिछले वर्ष वायु प्रदूषण के विभिन्न कारकों से नौ हजार से अधिक मौतें हो गयीं। इसी यूरोप में ओजोन का प्रदूषण, नेवाड़ा में धूल जनित प्रदूषण व कैलिफोर्निया सहित अमेरिका के कई शहरों में प्रदूषण चरम पर है।
विशेषज्ञों की मानें तो दुनिया के बीस सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से 18 एशियाई देशों में हैं। इनमें सर्वाधिक तेरह शहर तो भारत के हैं। देश, सरकार, नीति-नियंताओं व व्यवस्थाधारकों के लिए यह गम्भीर चिंता का विषय होना चाहिए। एशियाई देशों के 18 शहरों में 13 शहर हिन्दुस्तान के होने से देश के सम्पूर्ण परिवेश के प्रदूषण का आंकलन खुद-ब-खुद कर सकते हैं कि आखिर हम पर्यावरण संवर्धन व प्रदूषण नियंत्रण में नीतियां, कानून, उनका अमल, चिंतन-विचार-विमर्श व मंथन में कहां खड़े हैं।
गौरतलब है कि भले ही भारत सरकार प्रदूषण नियंत्रण का कोई बड़ा खाका खींच रही हो या कोई बड़ा कानून लाने जा रहा हो लेकिन अभी तक कोई ऐसी बड़ी योजना सामने तो नहीं आयी। कुल मिलाकर देश के नीति-नियंताओं को पर्यावरण संवर्धन व प्रदूषण नियंत्रण के गम्भीर मसले पर गम्भीरता से विचार कर व्यवस्थायें लागू करनी चाहिए। जिससे देश का परिवेश प्रदूषण मुक्त हो सके। व्यवस्थापकों को कानून बनाने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, उसके क्रियान्वयन तक निगहबानी सुनिश्चित करनी चाहिए।
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