पोस्टकार्ड एक सुगम संदेशवाहक
देश दुनिया में भले ही इंफारमेशन टेक्नॉलॉजी का दौर चल रहा हो... हाईप्रोफाइल मोबाइल से लेकर इंटरनेट पर ग्लोबल वल्र्ड का जुड़ाव भले ही तमाम सेवाओं-सुविधाओं व जानकारियों से लबरेज हो लेकिन गांव-गिरांव में आज भी आाम आदमी परम्पराओं संग चल रहा है।
हालांकि मोबाइल सेवायें आम आदमी तक पहंुच रही हैं। फिर भी डाक सेवायें संदेश वाहक के तौर पर अभी भी कहीं बेहतर मान्य हैं। देश के एक कोने से दूसरे कोने तक अपने किसी सगे सम्बंधी तक संदेश पहंुचाने के लिए गांव-गवंईयों के बीच डाक सेवायें बेहद आसान व सस्ती हैं। डाक सेवाओं में पोस्टकार्ड किफायत पर देश के किसी भी हिस्से या क्षेत्र में संदेश पहंुचाने का सुलभ तरीका है। संदेश चाहे खुशी का हो या संदेश गम का हो.... डाकिया पोस्टकार्ड के जरिये आपका संदेश आपके घर-गांव तक आसानी से पहंुचायेगा।
भारतीय डाक में पोस्टकार्ड का इतिहास करीब एक सौ पैंतिस साल पुराना है। देखा जाये तो भारतीय डाक विभाग का यह पोस्टकार्ड एक निश्चित आकार का कार्ड होता है। इस कार्ड पर संदेश लिखा जाता है। संदेश लिखित यह कार्ड डाक के जरिये गन्तव्य तक पहंुचता है। इस कार्ड का आकार सामान्य तौर पर 14 सेंटीमीटर व 9 सेंटीमीटर लम्बाई चौड़ाई में होता है। पोस्ट कार्ड सामान्य तौर पर दो तरह का उपलब्ध होता है। केवल एक पोस्टकार्ड संदेश भेजने के लिए होता है जबकि दोहरा पोस्टकार्ड जवाबी पोस्टकार्ड कहलाता है। जवाबी पोस्टकार्ड में संदेश पाने वाले को अतिरिक्त पोस्टकार्ड पर अपना जवाब देना होता है। इसमें संदेश पाने वाले को कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता है।
संलग्न पोस्टकार्ड होने से जवाब मिलने में अत्यधिक देरी नहीं होती।जवाबी पोस्टकार्ड में एक संदेश भेजने के लिए और दूसरा संदेश का जवाब पाने के लिए होता है। संदेश भेजने वाले को जवाबी पोस्टकार्ड की कीमत देनी होती है जिससे संदेश का जवाब देने वाले को कोई शुल्क न अदा करना पड़े। पोस्टकार्ड का उपयोग-इस्तेमाल केवल भारत में ही एक कोने से दूसरे कोने तक संदेश के आदान-प्रदान के लिए किया जा सकता है। कोई व्यक्ति या संस्था भी अपने कर्मचारियों या उपभोक्ताओं को संदेश भेजने के लिए पोस्टकार्ड छपवा सकती हैं लेकिन यह सब भारतीय डाक व्यवस्था के तहत किया जा सकता है। इस प्रकार के पोस्टकार्डों का आकार-साइज भी सरकारी पोस्टकार्ड जैसा ही होना चाहिए।
यह अत्यधिक पतला भी नहीं होना चाहिए और इनका आकार और मोटाई भी छपे हुए सरकारी पोस्टकार्ड के समान व उस जैसी होनी चाहिए। भारतीय पोस्टकार्ड का इतिहास एक सौ पैंतिस साल पुराना है। भारतीय डाक घर- विभाग ने पहली बार जुलाई 1879 में चौथाई आना (यानी एक पैसा) का पोस्ट कार्ड जारी किया था। इसका लक्ष्य भारत की सीमा में एक स्थान से दूसरे स्थान तक डाक भेजना था या यूं कहें कि आमजन के संदेश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से पहंुचाने की व्यवस्था सुनिश्चित करना था। भारतीय बाशिंदों के लिये अब तक का यह सबसे सस्ती डाक सेवा है।भारतीय डाक विभाग की यह सेवा बेहद कामयाब रही।
भारत के लिए वृहद डाक प्रणाली शुरू हो जाने पर डाक बहुत दूर-दूर तक जाने लगी। पोस्टकार्ड पर लिखा संदेश बिना किसी अतिरिक्त डाक टिकट के देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने में आसान रही। जहां नजदीक में कोई डाकखाना भी नहीं होता था, वहां भी पोस्टकार्ड डाकिया पहंुचाते रहे। इसके बाद अप्रैल 1880 में ऐसे पोस्टकार्ड शुरु हुए, जो केवल सरकारी इस्तेमाल के लिए थे। जवाबी पोस्टकार्ड 1890 में शुरु हुए। पोस्टकार्ड की यह सुविधा आज भी देश में जारी है। देश-दुनिया में देखें तो 1861 में फिलेडलफिया में जन पी चार्लटन ने एक गैर-सरकारी पोस्टकार्ड सेवा की शुरुआत की थी। इसके लिए उन्होंने कपीराइट भी हासिल किया था।
जिसे बाद में उन्होंने एच.एल. लिपमैन को हस्तानांतरित कर दिया था। उस पोस्टकार्ड के चारों ओर छोटी सी पट्टी की सजावट थी और उस पोस्टकार्ड पर लिखा था लिपमैन्ज पोस्टल कार्ड। यह पोस्टकार्ड बाजार में 1873 तक चले। इसके बाद पहला सरकारी पोस्ट कार्ड शुरू हुआ। अमरीका ने 1873 में पहले से मुहर लगे पोस्ट कार्ड जारी किए। अमरीका की डाक सेवा में केवल शासकीय स्तर पर पोस्टकार्ड छापने की अनुमति रही। यह स्थिति 19 मई, 1898 तक रही। अमरीकी संसद ने प्राइवेट मेलिंग कार्ड एक्ट पास कर इस सेवा को सर्वसुलभ बनाया। जिसमें प्राइवेट फर्मों को भी पोस्टकार्ड बनाने-छापने की अनुमति दी गयी। प्राइवेट मेलिंग कार्डों की डाक लागत एक सेंट थी, जबकि पोस्टकार्ड की दो सेंट थी। जो पोस्टकार्ड अमरीकी डाक सेवा की व्यवस्थाओं के तहत छपे नहीं होते थे, उन पर प्राइवेट मेलिंग पोस्टकार्ड अंकित करना या छापना जरुरी होता था।
पोस्टकार्ड की उल्टी तरफ सिर्फ सरकार को पोस्टकार्ड शब्द छापने की अनुमति थी। गैर-सरकारी कार्डों पर सवेनेर कार्ड, करेस्पांडेंस कार्ड और मेल कार्ड छपा होता था। डाक विभाग का अंतर्देशीय पत्र कार्ड पोस्टकार्ड से अलग होता है। इसमें संदेश खुले में नहीं लिखा जाता आैर न इस संदेश को कोई अन्य पढ़ सकता है क्योंकि संदेश को पढ़ने के लिए इसके फ्लैप को खोलना पड़ता है, जबकि पोस्टकार्ड के मामले में ऐसा नहीं होता, जिसके हाथ से भी पोस्टकार्ड गुजरे, वह संदेश पढ़ सकता है। तकनीकी तौर पर अंतर्देशीय पत्र कार्ड एक निश्चित आकार के कागज पर लिखा संदेश होता है। इसे मोडकर बंद किया जाता है। अंतर्देशीय पत्र कार्ड भारत के अंदर ही प्रेषण के लिए होता है। विदेशों में संदेश भेजने के लिए अधिक लागत का विशेष अंतर्देशीय पत्र कार्ड होता है।
इसे एयरोग्राम कहा जाता है।पोस्टकार्ड का संग्रह भी किया जाता है। ऐशलैंड ओहियो के प्रोफेसर रैंडल रोडेस ने 1945 में डील्टोलजी शब्द की रचना की, जिसे बाद में चित्र पोस्ट कार्डों के अध्ययन की विद्या के रूप में दुनिया में जाना गया। दुनिया भर में डील्टोलजी को डाक टिकट संग्रहण और सिक्का बैंक नोट संग्रहण के बाद तीसरी सबसे बड़ी हाबी माना जाता है। पोस्टकार्ड इसलिए लोकप्रिय हुये क्योंकि लगभग हर समय के चित्र पोस्टकार्ड पर छपते रहते हैं। पोस्ट कार्डों के जरिए इतिहास की भी जानकारी हासिल की जा सकती है। भारतीय पोस्टकार्ड पर प्रसिद्ध इमारतों, महत्वपूर्ण व्यक्तियों, विविघ कला स्वरुपों और इस तरह के अनेकानेक कई विषय मिल जाते हैं।
डाक टिकट संग्रह के मुकाबले किसी पोस्टकार्ड के प्रकाशन और स्थान का समय पता करना असंभव कार्य होता है, क्योंकि पोस्टकार्ड आमतौर पर बहुत सामान्य तौर तरीके से छापे जाते हैं। इसलिए कई संग्रहकर्ता केवल ऐसे कार्डों का ही संग्रह करते हैं, जो किसी विशिष्ट कलाकार, प्रकाशन या समय अथवा स्थान से संबंधित हों। इस डाक कार्ड विद्या का सबसे अधिक लोकप्रिय पक्ष शहरों व स्थानों से संबंधित रहता है। इनमें किसी शहर या क्षेत्र के वास्तविक चित्र होते हैं।
अधिकतर संग्रहकर्ता केवल ऐसे शहर के पोस्ट कार्ड इकट्ठे करते हैं। जहां वे रहते हैं या जहां वे पले-बढ़े हैं। पोस्टकार्ड संग्रहण एवं संरक्षण के लिए आवश्यक है कि कुछ जरूरी बातों को ध्यान में रखा जाये। पोस्टकार्डों के सबसे बड़े शत्रु -दुश्मन आग, नमी, धूल- मिट्टी, धूप और कीड़े होते हैं। सबसे अच्छा यही होगा है कि अपने संग्रह को किसी बाक्स में रखें। यह बाक्स ठंडा और सूखा होना चाहिए । पॉलीथिन या प्लास्टिक वाले एलबम का उपयोग कतई नहीं करना चाहिए।
इससे पुराने कागज को कुछ समय बाद रासायनिक तत्व से नुकसान पहुंच सकता है। प्रदर्शनी के उद्देश्य से पोस्टकार्डों का अलग-अलग विवरण दर्ज करना चाहिए। ध्यान रखें कि पोस्टकार्ड पर पेंसिल का इस्तेमाल न हो। प्रदर्शनी के बोर्ड पर पोस्टकार्ड को चिपकाने के लिए टेप या इस तरह की किसी चीज उपयोग-इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।जब भी पुराने पोस्टकार्डों का प्रदर्शन किया जाए तो इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पोस्टकार्ड सीधे धूप के सामने न हों।
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