पानी के बाजारीकरण की खिलाफत
'सीख" कहीं किसी से भी लेने में परहेज नहीं होना चाहिए। सिर्फ आलोचना के लिए आलोचना नहीं होनी चाहिए क्योंकि आलोचना कार्य-विकास को संतुलित रफ्तार या आयाम देती है तो वहीं आलोचना के लिए आलोचना विकास की रफ्तार-धार को कुंद भी करती है।
बात चाहे चीन की हो या फिर सैन फ्रांसिस्को की हो... यदि देश-दुनिया में कहीं कुछ भी बेहतर हो रहा हो तो सीखने-समझने में परहेज नहीं करना चाहिए। चीन की जनता ने पीली नदी को इच्छाशक्ति से साफ सुथरा कर लिया तो सैन फ्रांसिस्को ने पानी की बर्बादी को रोकने की एक सार्थक कोशिश की है। इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि देश ने अपने परम्पराओं व सोच से मुंह मोड़ लिया, उन परम्पराओं, सोच-विचारधारा को सैन फ्रांसिस्को ने अपनाया। हालात यह हैं कि सैन फ्रांसिस्को ने पानी का बाजारीकरण पूरी से बंद कर दिया।
सैन फ्रांसिस्को शायद दुनिया को पहला शहर बन गया, जहां बोतलबंद पानी की बिक्री पूूरी तरह से रोक दी गयी। यह निर्णय कोई एक दिन में नहीं लिया गया बल्कि नौ माह चली लम्बी बहस के बाद लिया गया कि अब इस शहर में बोतलबंद पानी नहीं बिकेगा। सैन फ्रांसिस्को ने एक स्वर में निर्णय रहा कि शहर के नागरिक अपनी बोतल में शासकीय व्यवस्थाओं से संचालित 'वाटर प्वांइट" से पानी मुफ्त में लेंगे। सर्वजन ने स्वीकार किया कि प्राकृतिक संसाधनों या प्राकृतिक उपहार को न बर्बाद होने देंगे आैर न इसका बाजारीकरण ही होने देंगे।
इसी परिप्रेक्ष्य में पानी का बाजारीकरण न होने देने का निर्णय लिया गया। ऐसा नहीं कि देश में सार्थक निर्णय नहीं लिए जा सकते ? आबादी को पीने का पानी उपलब्ध कराने की व्यवस्था स्थानीय निकाय के हवाले रहती है।
शासकीय व्यवस्थाओं की जलापूर्ति कम खर्चीली व कम लागत वाली होती है। बोतलबंद पानी कहीं अधिक मंहगा होता है। आप यह भी नहीं समझ सकते कि अमुक बोतलबंद पानी मानकों की कसौटी पर खरा है या नहीं ? स्थानीय निकाय जल परीक्षण के लिए बकायदा प्रयोगशाला होती है। भले ही यह प्रयोगशालाएं अत्यधिक सक्रिय न हों लेकिन कुछ तो परिणाम होते ही हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में भले ही इस दिशा में कुछ न हो सकता हो लेकिन अधिकार सम्पन्न स्थानीय निकाय क्षेत्रों पानी की बर्बादी व पानी की उपयोगिता सुनिश्चित की जा सकती है।
ऐसा नहीं कि देश में कुछ नहीं हो रहा। पूर्ववर्ती केन्द्र सरकार की 'नदी जोड़" योजना देश के लिए निश्चय ही 'जल संसाधन" क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो सकती है, बशर्ते क्रियान्वयन में शत-प्रतिशत ईमानदारी हो। इससे देश में बाढ़ के खतरे भी कम होंगे तो वहीं ग्राउण्ड वाटर रिचार्ज होता रहेगा। जान-माल की क्षति होने से बचा जा सकेगा तो वहीं लाखों-करोड़ों की राहत राशि बचेगी जिसका उपयोग अन्य आव्श्यकताओं की पूर्ति में किया जा सकेगा।
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