Thursday, 19 January 2017

आदर्श नहीं मुस्कान लाने की कोशिश  


              'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो..." जी हां, यह चंद अल्फाज भर नहीं। इसमें इच्छाशक्ति की प्रबलता दिख रही।

              बात चाहे शहरों को स्मार्ट बनाने की हो या गांव को आदर्श रुप-रंग देने की नीति-नियति हो या फिर आंगनवाड़ी केन्द्रों को व्यवस्थाओं की विस्तृतता देने की हो। देश में लाखों आंगनवाड़ी केन्द्र संचालित हैं लेकिन अधिसंख्य आंगनवाड़ी केन्द्र तमाम कोशिशों के बावजूद सार्थक आयाम नहीं ले सके। शिक्षा व पोषकता को रेखांकित करने वाले आंगनवाड़ी केन्द्र खुद को सीमित दायरे से बाहर नहीं ला सके। हालांकि शासन-सत्ता ने इन आंगनवाड़ी केन्द्रों को समृद्ध बनाने की कोशिश की लेकिन अधिसंख्य आंगनवाड़ी केन्द्र संचालकों-व्यवस्थापकों के रोजी-रोटी व कमाने-खाने के धंधे बन गये।

              ऐसा नहीं कि  आंगनबाड़ी के गोरखधंधे से शासन-सत्ता व नीति-नियंता बेखबर हों। शायद, इसीलिए आंगनवाड़ी केन्द्रों को अब गरीब-गुरबा व कमजोर वर्ग का 'शक्तिदाता" बनाने की कोशिश होती दिख रही है। शासकीय व्यवस्थाओं से कहीं अधिक विश्वास निजी संस्थाओं पर दिख रहा है। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने इस मिशन में वेदांता को सहयोगी बनाने की कोशिश की है। जिससे 'नेक्स्ट जेनेरेशन" को वाकई शक्तिवान बना सके।

            भारत सरकार का महिला एवं बाल विकास मंत्रालय व वेदांता संयुक्त तौर से मलिन बस्तियों से लेकर गरीबों की आबादी में शिक्षा, तकनीकि व स्वास्थ्य की नई इबारत गढ़ेंगे। गरीब को गरीबी से उबारने आैर उसे स्वस्थ्य बनाने के मकसद से सरकार व निजी क्षेत्र ने हाथ मिलाये हैं। फिलहाल 'अगली पीढ़ी" के लिए चार हजार आंगनवाड़ी केन्द्र 'शक्तिदाता" बनेंगे। इस मिशन पर करीब चार सौ करोड़ खर्च होंगे। यह आदर्श आंगनवाड़ी केन्द्र वास्तविक शक्तिदाता के रुप में होंगे। इसमें स्वस्थ्य एवं शिक्षित भारत की परिकल्पना को साकार करने की कोशिश की जायेगी।

           एक ऐसा परिवेश गढ़ने का ताना-बाना बुना जायेगा जिसमें बच्चों की शिक्षा हो, बालिकाओं-महिलााओं का सशक्तिकरण हो, विकास के लिए सामूहिक सहभागिता हो, गरीबी उन्मूलन की व्यवस्थायें हों, कुपोषण को हटाने-मिटाने की व्यवस्थायें हों। आशय यह कि एक समृद्ध राष्ट्र दिखे। शिक्षा केवल कहने के लिए शिक्षा न हो बल्कि शिक्षा का स्तर भी गुणवत्तापूर्ण हो। महिला एवं बाल विकास  मंत्रालय एवं वेदांता के संयुक्त प्रयास से खुलने वाले यह चार हजार आदर्श आंगनवाड़ी केन्द्र फिलहाल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, महाराष्ट्र, ओडिसा, राजस्थान, तेलंगाना आदि प्रांतों में खुलेंगे। बहुआयामी क्षमताओं वाले यह आदर्श आंगनवाड़ी केन्द्र पच्चीस से तीस के क्लस्टर्स में बनेंगे।

             भूमि की व्यवस्था का उत्तरदायित्व स्थानीय निकाय एवं ग्राम पंचायतों का सौंपा गया है। खास बात यह है कि आंगनवाड़ी की मौजूदा व्यवस्थाओं में इंफारमेशन टेक्नॉलॉजी से लेकर कौशल विकास की बेहतर व अपेक्षित व्यवस्थायें होंगी जिससे यह आदर्श आंगनवाड़ी केन्द्र केवल शो पीस बन कर न रह जायें। ई-लर्निंग शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता को बेहतर बनायेगी तो वहीं कौशल विकास रोजी-रोजगार के अवसर विकसित करेगा। रोग प्रतिरक्षण की व्यवस्थायें सुनिश्चित होंगी तो वहीं संवेदनशीलता एवं भावनात्मकता से भी समुदाय को आपस में जोड़ने की कोशिश होगी। स्वास्थ्य की अपेक्षित देखभाल के रूप में भी यह केन्द्र काम करेंगे। विशेषज्ञों की मानें तो कोशिश है कि जीवन को उच्चस्तरीय व कौशल सम्पन्न बनाया जाये जिससे महिला हों या पुरुष भविष्य में किसी पर निर्भर न रहें। शायद इसी लिए आदर्श आंगनवाड़ी केन्द्र में पचास प्रतिशत समय शिक्षा व्यवस्था पर केन्द्रीत होगा तो वहीं पचास प्रतिशत समय कौशल विकास की प्रबलता को दिया जायेगा। अब कौशल विकास को देखें तो अब तक 38.32 लाख लोगों को आवास के साथ ही कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

               हालांकि कौशल विकास की यह योजनायें कोई नयी नहीं है। वर्ष 1997 में शहरी गरीबों के लिए  स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना व राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन प्रारम्भ की गयीं थीं। गौरतलब है कि कौशल विकास की यह योजनायें करीब दो दशक से चली आ रहीं हैं। नीति-नियंताओं की कोशिश होनी चाहिए कि कौशल विकास प्रशिक्षण यथार्थ में हो क्योंकि तभी उसकी सार्थकता होगी, जब व्यक्ति उस प्रशिक्षण  के लाभार्थ रोजी रोजगार हासिल कर सके। परिवार का भरण-पोषण कर सके। शायद यह कोशिश आदर्श आंगनवाड़ी केन्द्र के जरिये हो रही है।

             कौशल विकास प्रशिक्षण पर गौर करें तो पायेंगे कि इसमें मध्य प्रदेश पूरे देश में अग्रणी रहा। मध्य प्रदेश ने 5.06 लाख व्यक्तियों को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया। इसके बाद महाराष्ट्र में 4.86 लाख, उत्तर प्रदेश में 4.51 लाख, कर्नाटक में 4.08 लाख, तमिलनाडु में 3.33 लाख, आंध्र प्रदेश में 3.25 लाख, गुजरात में 2.22 लाख, बिहार में 2.11 लाख, पश्चिम बंगाल में 1.98 लाख, राजस्थान में 1.07 लाख युवाओं को कौशल विकास प्रशिक्षण दिया गया। कौशल विकास प्रशिक्षण पर गौर करें तो देखेंगे कि चाहे गुजरात हो या बिहार, पश्चिम बंगाल व राजस्थान अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक पीछे रहे। शायद, इन सभी कारणों को देखते हुये भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को निजी क्षेत्र-निजी संस्थाओं से हाथ मिलाने पड़े। 

             नीतियां बनाने व अपेक्षित धनराशि उपलब्ध कराने से ही परिणाम फलीभूत नहीं हो जाते। इसके लिए आवश्यक होगा कि पात्र व्यक्ति को नीति एवं योजनाओं का लाभ अवश्य मिले। इतना ही नहीं नीति व योजनाओं की अपेक्षित जानकारी भी समाज के निचले स्तर तक आसानी से पहंुचे क्योंकि जब दलित, गरीब, किसान व मजदूर के घर का चुल्हा आसानी से जल सकेगा, तभी नीति-नियंताओं की कुशलता साबित हो सकेगी।

                           

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