Tuesday, 3 January 2017

दुनिया में एक सौ तीस करोड़ टन खाद्यान्न बर्बाद !

       खाद्यान्न बर्बाद न हो तो शायद कोई भूखा न रहे। प्राकृतिक आपदाओं को छोड़ दिया जाये तो खाद्य पदार्थों-खाद्यान्न को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो देश-दुनिया में सालाना आैसत एक सौ तीस करोड़ टन खाद्य पदार्थ-खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। इसमें विकासशील देशों में करीब तिरसठ करोड़ टन आैर आैद्योगिक दशों में करीब सरसठ करोड़ टन खाद्यान्न-खाद्य पदार्थ बर्बादी की भेंट चढ़ जाता है। एक ओर इतनी बड़ी तादाद में खाद्यान्न की बर्बादी हो जाती है तो वहीं बीस करोड़ से अधिक आबादी को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता। 

          इस बर्बादी को रोक कर देश-दुनिया के करोड़ों इंसानों को भरपेट भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है तो भूख से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। भूख से मौतों को रोका नहीं जा सकता तो कम अवश्य किया जा सकता है। हां, यह अवश्य है कि उपलब्ध खाद्यान्न-खाद्य पदार्थ जरुरतमंद तक पहंुचाना भी आसान नहीं होता लेकिन कुशल एवं बेहतर प्रबंधन से सब कुछ संभव होगा। देश में खाद्यान्न-खाद्य पदार्थों की बर्बादी तीस से पचास प्रतिशत का आंकड़ा करीब-करीब हर साल पार कर जाती है। यह बर्बादी कहीं तीस तो कहीं पचास प्रतिशत होती है। 

            अब उत्तर प्रदेश को ही लें तो सालाना पैंतीस से चालीस प्रतिशत सब्जी व फल नष्ट-खराब हो जाते हैं। समुचित प्रबंधन व खाद्य प्रसंस्करण से इस बर्बादी को रोका जा सकता है। हालांकि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय वर्ष 2008 से देश भर में मेगा फूड पार्क की योजना क्रियान्वित कर रहा है। मेगा फूड पार्क की स्थापना के लिए भारत सरकार का यह मंत्रालय पचास करोड की आर्थिक सहायता भी उपलब्ध करा रहा है। इस योजना के तहत खेत-खलिहान से खुदरा बाजार व मेगा मॉल्स तक आधुनिक बुनियादी ढ़ांचागत सुविधाओं के विकास व स्थापना के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जा रही है। आवश्यक है कि इसके लिए न्यूनतम पचास एकड़ क्षेत्र भूमि हो। 

           इसमें आधुनिक भण्डारण, शीत भण्डारण, पैकेजिंग सिस्टम, बिजली,पानी व सड़क जैसी आवश्यक सुविधायें शामिल हैं। व्यवस्थायें हैं कि पर्यावरण व सुरक्षा के मानकों का पालन सुनिश्चित करने के साथ उत्पाद गुणवत्ता की कसौटी पर भी खरे हों क्योंकि तभी उत्पाद राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय मार्केट में मुकाबला कर सकेंगे। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय अब तक देश में 42 मेगा फूड पार्क की स्थापना की स्वीकृति दे चुका है। इनमें से दो दर्जन से अधिक मेगा फूड पार्क विकसित हो रहे हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की इस योजना के लांच होने के बाद वर्ष 2008 से अब तक उसके सामने सत्तर से अधिक प्रस्ताव आये। फिलहाल देश के 11 राज्यों के 21 प्रस्तावों को मंत्रालय की हरी झण्डी दी जा चुकी है। इन नव चयनित 21 मेगा फूड पार्कों की स्थापना के बुनियादी ढ़ांचागत विकास में करीब दो हजार करोड़ की धनराशि का निवेश होगा तो वहीं इन पार्को में पांच सौ से अधिक आैद्योगिक संस्थान होंगे। 

          इनमें करीब चार हजार करोड़ का निवेश होगा। इन आैद्योगिक संस्थानों का सालाना कारोबार आठ हजार करोड़ होने का अनुमान है। खास बात यह है कि इन आैद्योगिक संस्थानों के व्यवस्थित संचालन से अस्सी हजार से एक लाख रोजगार के अवसर बनेंगे। इतना ही नहीं पांच लाख से अधिक किसान-काश्तकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभान्वित होंगे। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विकसित होना व उनका व्यवस्थित तौर से संचालित होना भी किसी चुनौती से कम नहीं क्योंकि इस राह में रोड़े भी कम नहीं होते। भारत सरकार का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय मेगा फूड पार्क की स्थापना के लिए भले ही आर्थिक सहायता उपलब्ध करा हो लेकिन भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित करना-कराना प्रदेश सरकारों का उत्तरदायित्व है।

            खाद्य प्रसंस्करण की योजनायें बनाना तो आसान दिख रहा है लेकिन भूमि की उपलब्धता में दिक्कतें आना लाजिमी व स्वाभाविक है। एक मैसेज वायरल हुआ। मैसेज यह कि 'दस साल पहले तैयार किया गया था भूमि अधिग्रहण बिल, 46 इंच के सीने ने योजना बनायी, 56 इंच सीने वाले चिल्लाये, अब 34 इंच सीने वाले लागू करेंगे"... इस सोच-विचार को बदलना होगा। लाभ-क्रेडिट मिलने की राजनीतिक-रीति-नीति से दलों को परहेज करना होगा। विकसित राष्ट्र की अवधारणा केवल चिंतन-मनन-विमर्श व मंथन से साकार नहीं होगी। इसके लिए राजनीतिक लाभ-क्रेडिट को मन-मस्तिष्क से हटा कर यर्थाथ पर सोचना चाहिए क्योंकि तभी योजनायें फलीभूत होंगी। मेगा फूड पार्क की योजना भले ही भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने तैयार की हो लेकिन इनके क्रियान्वन-अमल में प्रदेश सरकारों की भूमिका अहम होगी। 

       अब देश के सबसे बड़े राज्यों में गिने जाने वाले उत्तर प्रदेश को ही लें तो उत्तर प्रदेश में छोटे-मध्यम व बड़े खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की संख्या पैंतीस हजार से अधिक है फिर भी पैंतीस से चालीस प्रतिशत सब्जी व फल की सालाना बर्बादी होती है। हालांकि देश में भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की ओर से 21 मेगा फूड पार्क को स्वीकृति दी चुकी है। इनमें से कई एक शासकीय आैद्योगिक विकास क्षेत्र में प्रस्तावित हैं तो वहीं बड़ी संख्या में प्राईवेट सेक्टर (निजी क्षेत्र) में प्रस्तावित हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय से स्वीकृत प्रस्तावों के तहत केरल के अलापुझा में, तेलंगाना के खाममाम में, हरियाणा के सोनीपत में, ओडिसा के खुरदा में, पंजाब के लुधियाना में आैर आंध्र प्रदेश के कृष्णा में मेगा फूड पार्क बनेंगे। इन मेगा फूड पार्क के लिए शासकीय आैद्योगिक विकास क्षेत्र में भूमि का प्रबंध किया गया है।

            इसी तरह गुजरात के कच्छ में, महाराष्ट्र के वर्धा में, मध्य प्रदेश के देवास में, तमिलनाडु के कृष्णागिरि में, तेलंगाना के महबूब नगर में, हरियाणा के पानीपत में, बिहार के बक्सर में तमिलनाडु के थिरुवैल्लयूर में, केरल के पलक्कड में, पंजाब के कपूरथला व महाराष्ट्र के अहमद नगर में मेगा फूड पार्क बनेंगे। इन सभी मेगा फूड पार्क के लिए भूमि का प्रबंध निजी क्षेत्र ने किया है। लाजिमी है कि इन क्षेत्रों में आैद्योगिक विकास होने से आर्थिक सम्पन्नता के रास्ते खुलेंगे। राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि होगी तो वहीं रोजगार के अवसर विकसित होंगे। जाहिर सी बात है कि रोजगार के अवसर विकसित होंगे तो अधिकतम रोजगार के अवसर  स्थानीय बाशिंदों के लिए होंगे। इससे प्रदेश में भी आैद्योगिक विकास की रफ्तार बढ़ेगी। बात चाहे आैद्योगिक विकास की हो या विकसित राष्ट्र की हो.... विकसित राष्ट्र होंगे या फिर समृद्ध देशों की श्रंखला में होंगे तभी किसी अन्य या राष्ट्र की सहायता या मदद में हाथ बढ़ा सकेंगे। 
          अब उदाहरण के तौर पर लें तो नेपाल में भूकम्प आपदा के बाद नेसले ने दो लाख मैगी नूडल्स, आईटीसी ने दो लाख ईप्पी नूडल्स, वाईवाई नूडल्स ने 12 हजार नूडल्स, हल्दीराम ने 25 हजार पैकेट नमकीन, बीकानेर वाला ने पांच हजार पैकेट नमकीन, बीटीडब्ल्यू ने चार हजार पैकेट नमकीन व पेप्सिको इण्डिया ने 60 हजार से अधिक पानी की बोटल्स नेपाल राहत सामग्री के तौर पर भेजे थे। यह सब तभी हो सका, जब आैद्योगिक विकास को रफ्तार दी गयी। नीति व नियति से खाद्य पदार्थ व खाद्यान्न की बर्बादी पर भी विराम लगेगा आैर आैद्योगिक विकास को भी रफ्तार मिलेगी।

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