जल संसाधन की स्वच्छता बड़ी चुनौती
इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। जी हां, हकीकत तो यही है कि सोच-चिंतन-मंथन, कार्य संस्कृति व कार्य के प्रति लगाव-लगन निश्चित हो जाये तो कोई शक-संदेह नहीं कि लक्ष्य हासिल न हो सके।
जल संसाधन की उपलब्धता की बात हो या जल संसाधन को प्रदूषण मुक्त करने की कोशिश हो। यह कोशिशें तब तक सार्थक आयाम नहीं ले सकतीं, जब तक इच्छाशक्ति न होगी। केवल नीतियां तय करने, योजनायें बनाने व कानून बनाने से कोई सार्थक परिणाम आने वाले नहीं। करीब तीन दशक पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने मातृतुल्य गंगा को प्रदूषण मुक्त करने-कराने के लिए गंगा एक्शन प्लान दिया था। हालात यह रहे कि इन तीस वर्षों में गंगधारा के जल से कहीं अधिक धनराशि बह गयी लेकिन गंगा को चाहे कानपुर हो या बनारस या पश्चिम बंगाल कहीं भी गंगा को प्रदूषण मुक्त नहीं बना सके।
विश्व परिदृश्य पर देखे तो पायेंगे चीन की पीली नदी या यलो रिवर कभी दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में थी लेकिन शासकीय व्यवस्थाओं के साथ चीन के बाशिंदों की इच्छाशक्ति ने पीली नदी की दशा-दिशा बदल दी। चीन की पीली नदी न केवल प्रदूषण मुक्त हुयी बल्कि एक पिकनिक स्पॉट में तब्दील हुयी।गंगाजल हो उसकी सहोदरी यमुना कलुषित हो गयीं। प्रदूषण खत्म करना तो दूर की बात गंगा व यमुना में अनवरत बढ़ते प्रदूषण को रोक भी नहीं सके। गंगा जल को ही लें चाहे कानपुर हो इलाहाबाद व बनारस कोलीफॉम की तादाद पांच लाख से अधिक पहंुच जाती है। यह गंगाजल आचमन व पीने लायक तो छोड़ दीजिए स्नान करने के लायक भी नहीं।
धार्मिक मान्यता है कि मृत्यु शैय्या पर व्यक्ति को गंगा जल का पान अवश्य कराना चाहिए लेकिन अब सवाल उठता है कि गंगधारा तो है लेकिन गंगाजल है कहां ? गंगा नदी को प्रदूूषण से मुुक्त करने-कराने के परिप्रेक्ष्य में अभी हाल में उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि गंगा नदी क्षेत्र में पॉलीथिन उपयोग को पूर्णत: प्रतिबंधित किया जाये। आदेश सिरोधार्य होना चाहिए। उपयोग पर भारी जुर्माना की व्यवस्था भी कर दी गयी। उत्तर प्रदेश सरकार ने पॉलीथिन के निर्माण से लेकर खरीदने-बेंचने तक सभी क्रियाकलाप पर प्रतिबंध लगा दिया। उल्लंघन पर छह माह की सजा व पांच लाख की धनराशि के जुर्माना का प्रावधान कर दिया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने व्यवस्था दी है कि उल्लंघन पर पर्यावरण (सरंक्षण) अधिनियम-1986 की धारा 19 के तहत आवश्यक एवं अपेक्षित कार्यवाही की जायेगी।
नीति निर्धारण, कानून व व्यवस्थायें तय करना नीति-नियंताओं के लिए कोई बहुत अधिक मुश्किल न होगा लेकिन अमल एवं क्रियान्वयन मुश्किलों से कम नहीं होता। किसी भी कानून की सार्थकता तभी है, जब उस पर अमल हो। करीब डेढ़ दशक पहले उच्चतम न्यायालय, भारत सरकार व प्रांतीय सरकारों ने आदेश जारी किया था कि बीस माइक्रान से पतले पॉलीथिन का उपयोग-बिक्री व उत्पादन पूर्णत: निषिद्ध कर दिया जाना चाहिए लेकिन इन डेढ़ दशक में कोई सार्थक परिणाम तो नहीं दिखे। इतना ही नहीं उच्च न्यायालय के यह भी आदेश हैं कि गंगा नदी क्षेत्र के दो सौ मीटर में मल-मूत्र का परित्याग प्रतिबंधित किया जाये लेकिन हकीकत तो यह है कि करोड़ों लीटर मल-मूत्र व अन्य गंदगी सीधे गंगा की गोद में गिर रही है। ऐसा भी नहीं है कि गंगा यमुना की मलिनता को खत्म करने के प्रयास नहीं हो रहे हैं। प्रयास भी हो रहे हैं, नीतियां भी बन रहीं हैं लेकिन सार्थक परिणाम नहीं आ रहे।
भारत सरकार ने एक बार फिर 'नमामि गंगे" के सूक्तिवाक्य से गंगाजल की निर्मलता की कोशिश की है। इसके लिए केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरोद्धार मंत्रालय ने मानव संसाधन मंत्रालय से सहयोग की अपेक्षा कर हाथ मिलाये हैं। सहयोग की यह दीर्घकालीन योजना है। निश्चय ही इस नीति-व्यवस्था के सार्थक परिणाम आयेंगे, भले ही इन परिणामों के आने में कुछ वक्त लगे। नमामि गंगे की इस नीति-मंथन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, शैक्षणिक संस्थानों सहित गांव-गिरांव के सामान्य जन से लेकर समाज के प्रबुद्ध वर्ग को जोड़ने की कोशिश है। इसमें सबसे महत्वपूूर्ण योगदान-सहयोग मानव संसाधन मंत्रालय ही कर सकेगा।
भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान गंगा स्वच्छता में तकनीकि सहयोग करेगा तो वहीं शैक्षणिक संस्थान बाशिंदों को जागरुक करेंगे। नदियों में गंदगी न फेंके... गंदगी न जाने दें... इसके नफा नुकसान समझने-समझाने का दौर चलेगा। पर्यावरण संरक्षण से लेकर कूड़ा प्रबंधन तक बहुत कुछ नमामि गंगे में शामिल है। नमामि गंगे में मुख्यत: गंगा के जल को आचमन योग्य बनाने की कोशिश है। जल निर्मलता के इस अभियान में गंगा की सहयाद्री नदियों को भी शामिल किया गया है। इसमें राम गंगा, कालिन्द्री-काली व यमुना सहित दर्जनों सहनदियां शामिल हैं। इन सबमें सबसे बड़ी चुनौती गंगा जलधारा को निर्मल बनाने की है क्योंकि गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक करीब 2525 किलोमीटर लम्बी गंगा में आैसत प्रति वर्ष बीस करोड़ बाशिंदे व श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं। कुंभ में डुबकी लगाने वालों की यह संख्या काफी बढ़ जाती है। चुनौती गंगा में गिरने वाले बड़े नालों के साथ छोटे नालों की गंदगी है। कारण छोटे नालों की संख्या काफी बड़ी तादाद में है। नमामि गंगे में छोटे-बड़े सभी नालों की गंदगी को शत-प्रतिशत शोधित करने की है। अब गंगधारा में जल की उपलब्धता भी एक बड़ा संकट है क्योंकि जब गंगा में जल ही नहीं होगा तो निर्मलता व अविरलता कैसे व कहां से लायेंगे।
एक डेढ़ दशक पहले नदी जोड़ कार्ययोजना बनी थी लेकिन कार्ययोजना फलीभूत नहीं हो सकी। लिहाजा गंगा सहित अन्य नदियों में जल उपलब्धता का जबर्दस्त संकट है। नरोरा बांध से गंगा में गंगा नदी में सामान्य जल प्रवाह के लिए कम से कम एक लाख क्यूसेक जल छोड़ने की आवश्यकता होती है लेकिन आैसतन दस हजार क्यूसेक जल ही छोड़ा जाता है। नरोरा बांध से छोड़ा गया यह जल कानपुर तक आते-आते बहुत क्षीण तादाद में नदी के प्रवाह में होता है क्योंकि नरोरा से कानपुर के बीच सहायक छोटी नदियों की जल आवश्यकता में जल चला जाता है। यह तो गंगा की सहोदरी यमुना का योगदान है, जो संगम (इलाहाबाद) में विलय होकर गंगा को प्रवाहमान करती हैं अन्यथा काशी व पटना में कहीं भी गंगधारा के अपेक्षित दर्शन भी न हो सकेंगे।
नदियों के जल प्रवाह में वृद्धि करने व देश के बाढ़ प्रभाव को न्यूनतम करने के लक्ष्य को पूर्व में केन्द्र सरकार ने नदी जोड़ो कार्ययोजना तैयार की थी लेकिन शायद अपरिहार्य कारणों से जल संसाधन की यह बहुआयामी कार्ययोजना आयाम नहीं ले सकी थी। अब पुन: एक बार फिर नदी जोड़ कार्ययोजना की सक्रियता दिख रही है। यदि नदी जोड़ कार्ययोजना फलीभूत होती है तो निश्चय जल संसाधन को अपेक्षित दशा व दिशा मिलेगी। कारण बाढ़ के समय नदी का अतिरिक्त जल अन्य सहयोगी नदियों में प्रवाहित होकर सामान्य स्थिति बनाने में सहायक होगा तो वहीं जल संकट की त्रासदी से गुजर रहीं नदियों को दिशा भी मिलेगी आैर दशा में भी अपेक्षित सुधार आयेगा। जल संसाधन की यह एक आपसी सहयोग की कार्ययोजना है। इसमें केन-बेतवा लिंक परियोजना, दमन गंगा-पिंजल लिंक परियोजना एवं पार तापी नर्मदा परियोजना मुख्यत: शामिल हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इसके प्रथम चरण में करीब 6.35 लाख हेक्टेयर भूमि को सिचाई के लिए जल-पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो जायेगी। इस परियोजना पर करीब 9393 करोड़ धनराशि खर्च होने का अनुमान है। इससे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व बुंदेलखण्ड की आबादी को पीने का करीब 49 एमसीएम पेयजल की उपलब्धता होगी। नदी जोड़ परियोजना के क्रियान्वयन से नदियों में जल प्रवाह अर्थात जल उपलब्धता का भी संकट नहीं रहेगा।
जिससे जल प्रदूषण पर भी अंकुश-नियंत्रण संभव है। कारण जल प्रवाह काफी कुछ प्रदूषण को खुद-ब-खुद बहा ले जायेगा। गौरतलब है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की काशी यात्रा पर गंगधारा को निर्मल बनाने अर्थात साफ सुथरा करने के लिए 'वाटर हार्वेस्टर" मशीन का उपयोग करना पड़ा। वाटर हार्वेस्टर की क्षमता एक बार में पांच टन कचरा साफ करने अर्थात जलधारा से निकालने की है। यह मशीन जलधारा में तैरते कूड़ा कचरा व गंदगी सहित मानव व पशु शव आदि को भी उठाने-निकालने की क्षमता रखती है। जलधारा की स्वच्छता में यह मशीन काफी कारगर साबित-सिद्ध हुयी। इसकी अनुमानित लागत दो करोड़ के आसपास है।
अभी तक गंगा की साफ सफाई में ही इस तरह की मशीन का उपयोग नहीं किया गया बल्कि गोमती की साफ सफाई में यह मशीन उपयोग में है। आशय यह है कि नदी जोड़ परियोजना क्रियान्वित होने से इस तरह की मशीनों की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। जल प्रवाह प्रदूषण कम करेगा तो वहीं जल में आक्सीजन का स्तर भी स्वत: स्फूूर्त बढ़ेगा जिससे जल जीवन की अपेक्षित रफ्तार मिल सकेगी।
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